पांच ज्ञानेंद्रयों की जो शक्ति है, वह मन की ही शक्ति है।
मन की शक्ति से ही ये इन्द्रियां कार्य करती हैं। पर यह भी जानना ज़रूरी है कि मनःशक्ति द्वारा एक समय में एक ही इन्द्रिय कार्य करती है, दूसरी नहीं।
गहरी सुप्त अवस्था में इन्द्रयों से मन का सम्बन्ध नहीं रहता है। स्वयं मन ही सभी इन्द्रियों का कार्य करता है उस समय।
मन का एक रूप और है जिसे हम 'अचेतन मन' कहते हैं।
चेतन मन और आत्मा के बीच अचेतन मन है।
चेतन मन और अचेतन मन आत्मा के ही अंग हैं।
आत्मा परमात्मा का ही एक रूप है और उस रूप में समस्त ब्रह्माण्ड की शक्ति विद्यमान है। आत्मा कालातीत है। सभी अवस्थाओं में वह समान है।
अचेतन मन एक विशेष सीमा तक आत्मशक्ति को क्रियान्वित करता है।
यही कारण है कि वैज्ञानिक अचेतन मन को अलौकिक शक्ति का भंडार कहते हैं।
जब हम कभी ऐसी स्थिति में होते हैं तो उस समय हमारे चेतन मन से आत्मा का सीधा सम्बन्ध स्थापित हो जाता है। फलस्वरूप भावी घटनाओं का संकेत और पूर्वाभास होता है।
चेतन मन का सम्बन्ध लौकिक जगत से है और अचेतन मन का सम्बन्ध पारलौकिक जगतों से है।
योगिगण ध्यानयोग के द्वारा चेतन मन की शक्ति को क्षीण कर देते हैं जिसके फलस्वरूप अचेतन और उसके बाद आत्मा से उनका सीधा संपर्क स्थापित हो जाता है।
योग का जो चमत्कार है उसका सम्बन्ध योगी के अचेतन मन का कौतुक होता है। आत्मा से सम्बन्ध स्थापित होने के कारण योगिगण लोक-लोकान्तरों में भ्रमण करते हैं और पारलौकिक ज्ञान प्राप्त करते हैं।
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