जन्म और मृत्यु


परम श्रद्धेय ब्रह्मलीन गुरुदेव पण्डित अरुण कुमार शर्मा काशी की अध्यात्म-ज्ञानगंगा में पावन अवगाहन

पूज्य गुरुदेव के श्रीचरणों में कोटि-कोटि नमन

 जीवितो यस्य कैवल्यम् विदेहो$पि स केवलः। 
समाधि निष्ठितामेत्य निर्विकल्पो भवानघ:।।

      अर्थात्--जिसको जीवन काल में ही कैवल्य उपलब्ध् हो गया है, वह शरीरसहित होने पर भी ब्रह्मरूप रहेगा। इसीलिये समाधिष्ठ होकर सभी प्रकार के विकल्पों से शून्य हो जाना चाहिए।
      उपनिषद के इस श्लोक में कितना गूढ़ अर्थ छिपा हुआ है। वास्तव में मनुष्य का जीवन कितना मूल्यवान है ? लौकिक और पारलौकिक  दृष्टि से जो कुछ मनुष्य को पाने योग्य वस्तु है, उसे जीवन के रहते ही पाया जा सकता है। लेकिन ऐसे बहुत से व्यक्ति भी हैं जो मृत्यु के बाद की प्रतीक्षा करते हैं। उनका कहना है कि इस संसार में, इस शरीर में रहते हुए मुक्ति को, ब्रह्म को नहीं प्राप्त किया जा सकता। यह सब मृत्यु के बाद ही सम्भव है।
       जो लोग ऐसा सोचते हैं, वास्तव में वे भारी भ्रम में हैं। सच बात तो यह है कि जो जीवन के रहते नहीं पाया जा सकता, वह मृत्यु के बाद भी नहीं पाया जा सकता।
        मनुष्य का जीवन एक अवसर है--एक स्वर्णिम अवसर, शीघ्र फिर न प्राप्त होने वाला अवसर। यह हमारे ऊपर निर्भर है कि इस अवसर को चाहे जैसे गँवा दें। नौकरी-व्यापार करके, धन-दौलत इकठ्ठा करके, मान-प्रतिष्ठा अर्जित करके गँवा दें, चाहे चोरी-डकैती, व्यभिचार करके गँवा दें अथवा चाहें तो पूजा-पाठ, ध्यान-धारणा तथा सत्य की खोज में बिता दें। जीवन एक 'तटस्थ' अवसर है। हमें क्या करना है, क्या पाना है, क्या बनना है ?--इन सबसे जीवन का कोई मतलब नहीं। हम कुछ भी करें, जीवन हमें रोकेगा नहीं। जो लोग यह सोचते हैं कि जीवन संसार के लिए है, भोग के लिए है तो वे अपने को धोखा देते हैं।
       मृत्यु अवसर नहीं है। मृत्यु तो है अवसर की समाप्ति। मृत्यु का मतलब है कि अब कोई अवसर नहीं बचा। अवसर समाप्त हो गया। मृत्यु से कुछ पाया नहीं जा सकता। कुछ पाने के लिए अवसर चाहिए और वह अवसर है--एकमात्र 'जीवन'।
       प्रायः यह देखा जाता है कि जब कोई व्यक्ति  मर रहा होता है तो लोग उसके कान में गायत्री मन्त्र पढ़ते हैं, गीता-रामायण सुनाते हैं, राम-नारायण का नाम फूंकते हैं। यह कितनी ना-समझी की बात है। वे गायत्री मंत्र पढ़ते हैं, राम नाम फूंकते हैं मगर उसे कुछ सुनाई ही नहीं पड़ता होता। मृत्यु के समय सारी इन्द्रियां जवाब दे रही होती हैं, आँखें देखना बन्द कर् देती हैं, कान सुनना बन्द कर् देते है, मुंह बोलना बन्द कर् देता है, वाणी अवरुद्ध हो जाती है, प्राण धीरे-धीरे लीन होने लगते हैं अपने मूल बीज में। उस स्थिति में मरने वाला व्यक्ति क्या गायत्री मंत्र सुन सकेगा ? राम-नाम का उच्चारण समझ जायेगा ? लेकिन लोग हैं कि सुनाए चले जाते हैं, गीता-पाठ किये चले जाते हैं।


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