{{{ॐ}}}
#वेदो_का_मनोमयी_कोश
मनस शरीर यानि मनोमय शरीर का विकास साधना के द्वारा किया जाता है यह इक्कीस वर्ष के बाद विकसित हो सकता है इसे विकसित होने सअतीन्द्रिय शक्ति आ जाती है जैसे सम्मोहन ,दुर संरेक्षण दसरो का मनपढ़ लेना शरीर से बहार निकल कर यात्रा करना अपने को शरीर से अलग करना वनस्पतियो के गुण पता लगना उपयोग करना आदि।
चरक और सुश्रुत ने इसी सिद्धि से शरीर के बारिक से बारिक अंगो का भी वर्णन किया था। सुषुम्ना नाडी़ ,कुण्डलिनी और षट् चक्रों को विज्ञान अभी भी नही खोज पाया।
इन विचार तरगों का प्रभाव पदार्थ पर भी पडता है संकल्प से वस्तु हिलाई व तोडी जा सकती है। विज्ञान ने भी इसके कई प्रयोग किये है योग की समस्त सिद्धियाँ जो पांतजलयोग दर्शन मे दी गयी है वे इसी शरीर के विकसित होने से आ जाती है कुण्डलिनी भी इसी शरीर की घटना है।
जादु चमत्कार इसी का विकास है और इसका केन्द्र है अनाहत चक्र जब अनाहत जाग्रत होता है तो ये सिद्धियाँ आ जाती है
इसके जाग्रत होने से काल व स्थान की दुरी मिट जाती है वह बिना मन इन्द्रियो के सीधा मन से देख व सुन सकता है।
कल्पना, इसकी संकल्प सम्भावनाएँ है ऐसा व्यक्ति शाप दे सकता है
पुराण शरीर को इसी उपलब्ध व्यक्तियों द्वारा लिखे गये है किन्तु उनकी भाषा प्रतीकात्मक होने से विज्ञानिक उन्हे समझ नही पाते ऐसे व्यक्तियों ने प्रेतात्मा को जाना मृत्यु के बाद जीवात्मा कहाँ जाती है कहां कैसे रहती है कैसा अनुभव करती है कौन इन आत्माओं को ले जाता है पुनर्जन्म कब और कैसे होता है गर्भ मे जीवात्मा का प्रवेश कब होता है । स्वर्ग और नरक कहां हैआदि की जानकारी ऐसे व्यक्ति ही दे सकते है जो मनोमय शरीर या मनस शरीर को सक्रिय कर लेते है
यही वेदातं का मनोमय कोष है
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें
vigyan ke naye samachar ke liye dekhe