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ऊर्जाओं का रहस्य



इस सृष्टि के संचालन में सकारात्मक और नकारात्मक दोनो ऊर्जाओं का सहयोग है। सभी जीवो में दोनो प्रकार की ऊर्जा होती है। जब मनुष्य क्रोध करता है तो उसमे नकारात्मक ऊर्जा बढ़ जाती है इसी कारण सही गलत देख नही पाता और जो मनुष्य शुद्ध विचार और क्रोध ना करने वाला होगा उसमे सकारात्मक ऊर्जा की अधिकता होगी उसके पास जाने से ही शांति का अनुभव होगा जैसे हमारे साधु संत होते है। 

आप एक संत से कहो कि किसी की हत्या करदे तो वो नही करेगा चाहे आप उसे कुछ भी दे दे, लेकिन वही एक क्रोधित व्यक्ति को उनकी पसंद की वस्तु दे दो वो आपका कार्य तुरंत कर देगा। जब सृष्टि में अधर्म ( नकारात्मकता) बढ़ता है तो उसे संतुलन में लाने के लिए सकारात्मक शक्ति को नकारात्मक स्वरूप धारण करना पड़ता है। क्योकि नकारात्मक ऊर्जा की प्रवर्ति संहारक,हिंसात्मक होती है। 

जब प्रभु को ऐसे स्वरूप धारण करने पड़ते है तो  सकारात्मकता को भी उसे नियंत्रित करना पड़ता है। जैसे महाकाली ने दानवों के बाद देवो को मारना आरम्भ कर दिया था तब महादेव के सकारात्मक शिव स्वरूप महाकाली के चरणों मे आकर नकारात्मक ऊर्जा को  नियंत्रित किया था। 

नरसिंह भगवान ने हिरण्यकश्यपु का वध करके पृथ्वी को नष्ट करने लग गए थे तब भगवान शिव ने शरभ अवतार लेकर नरसिंह भगवान की नकारात्मक ऊर्जा को नियंत्रित किया था। 

जो अवतार क्रोध स्वरूप में है उनकी पूजन साधना में गलती होती है तो तुरंत दण्ड मिलता है चाहे आप उनके भक्त ही क्यो ना हो लेकिन सकारात्मक ऊर्जा के  स्वरूप में गलती होने पर क्षमादान मिल जाता है।

किसी ने महाकाली का प्रयोग कर दिया मारण के लिए तो महाकाली मारण कर देंगी चाहे सामने उसका भक्त ही क्यो न हो क्योकि उस क्रोध अवस्था मे महाकाली को  देव और दानव में भी भेद भूल गयी थी और सभी का संहार करने लगी थी।

यदि सामान्य मनुष्य की बात करे तो जब क्रोध करते है तो नकारात्मक ऊर्जा बढ़ जाती है तब सही गलत का बोध नही होता लेकिन जैसे ही क्रोध शांत होता है तो अपनी गलती का अहसास होता है। 

मनुष्य ने धारणा बना ली है कि नकारात्मक ऊर्जा सदैव अहित करती है लेकिन ऐसा नही है नकारात्मक ऊर्जा सृष्टि के लिए कल्याणकारी है। महाकाल, महाकाली, काल भैरव आदि सभी नकारात्मक ऊर्जा के स्वरूप है और सृष्टि का कल्याण करते है। 

शिव अघोरनाथ 

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