श्री गुरु चरण सरोज रज :---
श्रीगुरुचरणों में जब से नमन किया है, सिर बापस उठा ही नहीं है, तब से झुका हुआ ही है और सदा झुका हुआ ही रहेगा| गुरु तत्व के साथ हम एक हैं| उन में और हमारे में कहीं कोई अंतर नहीं है| हमारा साथ शाश्वत है| शरीर तो पता नहीं कितनी बार छुटा है, मिला है, और छुटता रहेगा, पर गुरु का साथ शाश्वत है|
'श्री' शब्द में 'श' का अर्थ है श्वास, 'र' अग्निबीज है, और 'ई' शक्तिबीज| श्वास रूपी अग्नि और उसकी शक्ति ही 'श्री' है| श्वास का संचलन प्राण तत्व के द्वारा होता है| प्राण तत्व ..... सुषुम्ना नाड़ी में सोम और अग्नि के रूप में संचारित होता है| श्वास उसी की प्रतिक्रिया है| जब प्राण-तत्व का डोलना बंद हो जाता है तब प्राणी की भौतिक मृत्यु हो जाती है|
सहस्त्रार में दिखाई दे रही ज्योति गुरु महाराज के चरण-कमल हैं| उस ज्योति का ध्यान श्रीगुरुचरणों का ध्यान है| उस ज्योति-पुंज का प्रकाश "श्रीगुरुचरण सरोज रज" है| सहस्त्रार में स्थिति श्रीगुरुचरणों में आश्रय है| खेचरी-मुद्रा .... श्रीगुरुचरणों का स्पर्श है| जिन्हें खेचरी सिद्ध नहीं है वे साधनाकाल में जीभ को ऊपर पीछे की ओर मोड़कर तालू से सटाकर रखें और आती-जाती श्वास के प्रति सजग रहें| तालव्य-क्रिया के नियमित अभ्यास से खेचरी सिद्ध होती है|
संध्याकाल ..... दो श्वासों के मध्य का संधिकाल "संध्या" कहलाता है जो परमात्मा की उपासना का सर्वश्रेष्ठ अबूझ मुहूर्त है| हर श्वास पर परमात्मा का स्मरण होना चाहिए क्योंकि परमात्मा स्वयं ही सभी प्राणियों के माध्यम से साँसें ले रहे हैं| हर एक प्रश्वास जन्म है, और हर एक निःश्वास मृत्यु|
हमारा मन जब मूलाधार व स्वाधिष्ठान केन्द्रों में ही रहता है तब वह धर्म की हानि है| हर श्वास में ईश्वरप्रणिधान का सहारा लेकर आज्ञाचक्र तक व उससे ऊपर उठना धर्म का अभ्युत्थान है| आज्ञाचक्र और उस से ऊपर धर्मक्षेत्र है, उसके नीचे कुरुक्षेत्र|
यह मनुष्य देह इस संसार सागर को पार करने की नौका है, गुरु कर्णधार हैं, व अनुकूल वायु .... परमात्मा का अनुग्रह है| परमात्मा सदा हमारी चेतना में रहें|
ब्रह्मरंध्र से परे की अनंतता से भी परे .... परमशिव है| वहाँ स्थित होकर जीव स्वयं शिव हो जाता है| कुण्डलिनी महाशक्ति का परमशिव से मिलन ही योग है| हमारा मन सदा श्री गुरु चरण सरोज रज में लोटपोट करता रहे| ॐ तत्सत्!!
कृपा शंकर
२२ मार्च २०२०
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