एक समय पर तन्त्र का बहुत सम्मान होता था, तन्त्र द्वारा असम्भव कार्य को भी सम्भव कर लिया जाता था। उस समय पर जो युद्ध होते थे वो तन्त्र द्वारा लड़े जाते थे। जो श्री राम रावण का युद्ध हुआ, महाभारत युद्ध हुआ ये सब तन्त्र शक्ति द्वारा ही लड़े गए थे। जो अस्त्र शस्त्र थे वो तन्त्र शक्ति से चलते थे, रावण का वाहन तन्त्र शक्ति द्वारा ही उड़ता था, मारीच तन्त्र शक्ति द्वारा ही कोई भी रूप धारण कर सकता था, नल नील ने जल को बांधकर पुल बना दिया था, कितने ही दानव थे जो तन्त्र शक्तियो में पारंगत थे। अगर हम कहे कि रावण, श्रीराम जी आदि उच्च कोटि के साधक थे तो लोगो को अच्छा नही लगेगा क्योकि तन्त्र को हीन दृष्टि से देखते है। तन्त्र साधनाओ द्वारा सबने अलग अलग प्रकार की दिव्य शक्तिया प्राप्त की हुई थी।
ऐसे ही महाभारत का युद्ध लड़ा गया था, यदि सभी चीजो को ध्यान से देखो तो ये सब समझ आएगा लेकिन हम सिर्फ सोचते है कि वो बस शक्तिशाली था लेकिन कभी ये नही सोचते कि इतना शक्तिशाली बना कैसे, ये एक साधना होती है कि किसी का श्राप फलित हो जाये। लेकिन जब बाहरी लोग आए तो यहा की शिक्षा पद्ति को देखा तो घबरा गए कि इनसे जीतना सम्भव नही है। इनको जीतने के लिए इनकी शिक्षा प्रणाली को समाप्त करना होगा। और यही हुआ भी धीरे धीरे बाहरी शिक्षा को स्थापित कर दिया गया।
आप कहेंगे कि ये तो पुरानी बातें है सत्य में क्या हुआ था ये कोई नही जानता तो हम बता दे 1962 और 1971 में चीन के साथ युद्ध हुआ था इस युद्ध मे तंत्र शक्ति का प्रयोग हुआ था। जब भारत अपनी हार की तरफ बढ़ रहा था तब तत्कालीन प्रधानमंत्री नेहरू ने मध्यप्रदेश के दतिया में स्थापित माँ बगलामुखी की तन्त्र विद्या का प्रयोग करवाया था। इसमें 51 हवन कुंडों द्वारा कार्य हुआ था और 11वे दिन की अंतिम आहुति के साथ ही चीन ने अपनी सेना पीछे हटा ली थी। ये हवन कुंड आज भी आपको दतिया में देखने को मिल जाएंगे।
ये है तंत्र की शक्ति लेकिन ये विद्याएं बहुत खतरनाक थी इसलिए बाहरी लोगों ने इसको समाप्त करने के लिए बहुत प्रयास किये, इनको अंधविस्वास बता दिया गया। यदि सत्य में अंधविस्वास होता तो हमारे देश के तन्त्र द्वारा चैतन्य मंदिरों को तोड़ा नही जाता, गुरुकुल शिक्षा प्रणाली, तन्त्र स्थानों को नष्ट नही किया जाता।
शिव अघोरनाथ
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