सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

स्किन फैक्टरी में बनेगी नकली त्वचा



चार साल से छोटे लड़कों के जननांग से निकाली गई त्वचा से बिलकुल नई स्किन बन सकती है. जर्मनी की फ्राउनहोफर यूनिवर्सिटी ने रिसर्च पूरी कर ली है. इससे नई दवाइयों और कॉस्मेटिक उद्योग में बड़े बदलाव आ सकते हैं.




स्किन फैक्टरी, यह नाम किसी साइंस फिक्शन फिल्म का लगता है. लेकिन फ्राउनहोफर इंस्टीट्यूट के वैज्ञानिकों ने सचमुच ऐसी मशीन बनाई है, जो त्वचा बनाती है. यह त्वचा दवाओं, रसायनों और कॉस्मेटिक के परीक्षण को आसान और सस्ता बना सकती है. साथ ही जानवरों पर इनके परीक्षण की जरूरत नहीं रह जाएगी.
त्वचा बनाने की यह मशीन सात मीटर लंबी, तीन मीटर चौड़ी और तीन मीटर ऊंची है. कांच की दीवार के पीछे रोबोट की छोटी बाहें काम कर रही हैं, पेट्री डिश को इधर उधर ले जा रहे हैं, खाल को खरोंच रहे हैं, एंजायम की मदद से ऊपरी त्वचा को सेल से अलग कर रहे हैं. संयोजी ऊतक और रंग वाली कोशिकाएं भी इस तरह पैदा की जाती हैं.
अहम रिसर्च
इस समय कोशिकाओं की आपूर्ति का काम चार साल तक के लड़कों के जननांग से निकाले गए अग्रभाग से किया जा रहा है. जर्मनी में श्टुटगार्ट शहर के फ्राउनहोफर इंस्टीट्यूट के प्रोडक्शन इंजीनियर आंद्रेयास टाउबे कहते हैं, "आदमी की उम्र जितनी बढ़ती जाती है, उसकी कोशिकाएं उतनी ही खराब काम करती हैं." कोशिकाएं विकसित करने के लिए स्टेमसेल पर भी शोध किया जा रहा है. टाउबे का कहना है, "महत्वपूर्ण बात यह है कि शुरुआती सेल एक जैसे स्रोत से आएं ताकि त्वचा के उत्पादन में अंतर से बचा जा सके."
डोनरों के हिसाब से हर नमूने से तीस लाख से एक करोड़ कोशिकाएं निकलती हैं जिनकी संख्या इंक्यूबेटर में सौ गुनी हो जाती है. एक सेंटीमीटर व्यास के 24 ट्यूबों वाले टिश्यू कल्चर प्लेट पर उनसे नई त्वचा का विकास होता है. नया एपीडर्मिस एक मिलीमीटर से भी पतला होता है. जब उन्हें शोधकर्ता जोड़ने वाली कोशिकाओं से जोड़ते हैं तो पूर्ण त्वचा बनती है जो पांच मिलीमीटर तक मोटी होती है. इस पूरी प्रक्रिया में छह हफ्ते तक लग सकते हैं. टाउबे कहते हैं, "इसे मशीन की मदद से भी तेज नहीं किया जा सकता, बल्कि जीव विज्ञान द्वारा निर्धारित होता है."
मुश्किल है रिसर्च
संयंत्र के अंदर सब कुछ पूरी तरह असंक्रमित होता है. इंक्यूबेटर के अंदर तापमान 37 डिग्री होता है. एक तापमान जिसमें बैक्टीरिया भी तेजी से बढ़ सकते हैं. त्वचा फैक्टरी में 24 टिश्यू कल्चर वाले 500 से अधिकों प्लेटों पर एक साथ काम होता है. फ्राउनहोफर इंस्टीट्यूट में इस तरह शोधकर्ता हर महीने त्वचा के 5000 नमूने तैयार करते हैं. लेकिन अब तक उन्हें कोई खरीदार नहीं मिला है क्योंकि अभी तक इस प्रक्रिया को यूरोपीय अधिकारियों से मान्यता नहीं मिली है. इसके लिए तुलनात्मक परीक्षणों की जरूरत होगी जो यह साबित कर सकें कि कृत्रिम त्वचा भी जानवरों की त्वचा जैसे नतीजे देते हैं. टाउबे कहते हैं, "मैं सोचता हूं कि नौ महीनों में हम शुरुआत कर सकते हैं." कृत्रिम त्वचा को खरीदने वाला उद्योग जगत होगा.
दवा उद्योग में बदलाव
जर्मनी में दवाइयां बनाने वाली कंपनियों के संघ के रॉल्फ होएम्के का कहना है कि नए तत्वों के विकास के लिए त्वचा के नमूनों का इस्तेमाल हो सकता है. वे कहते हैं, "हमारा विश्वास है कि कृत्रिम त्वचा की कोशिकाएं असली त्वचा जैसी हैं." अब तक त्वचा के नमूने छोटे पैमाने पर तैयार किए जाते थे, लेकिन होएम्के को उम्मीद है कि अब ऐसा बड़े पैमाने पर हो सकेगा. इसका इस्तेमाल कैंसर के शोध के अलावा पिगमेंट में गड़बड़ी, एलर्जी या फंगस की बीमारी के सिलसिले में किया जा सकेगा. श्टुटगार्ट में बनने वाली कृत्रिम त्वचा के नमूनों को सुरक्षा टेस्ट पास करने में सालों लग जाएंगे.इस तरह का परीक्षण दवाओं की मंजूरी के लिए भी जरूरी होता है. होएम्के कहते हैं, "इसमें अंतरराष्ट्रीय मानक बना हुआ है, उसकी प्रक्रिया को आप यूं ही बदल नहीं सकते."
चिकित्सा के क्षेत्र में भी कृत्रिम त्वचा की मांग है. 8 से 10 सेंटीमीटर चौड़े त्वचा के बैंडेज बाजार में उपलब्ध हैं और उन पर दो कंपनियों का कब्जा है. रिजेनरेटिव मेडिसीन सोसायटी की अध्यक्ष उलरिके श्वेमर कहती हैं कि और चौड़े बैंडेज के क्षेत्र में मांग बनी हुई है. टाउबे इसे भविष्य का सपना बता रहे हैं कि त्वचा फैक्टरी कभी न कभी इन्हें बनाना शुरू कर देंगी जिनका इस्तेमाल आग से जलने के कारण हुई घावों को भरने के लिए किया जा सकेगा. अभी तो आंख की त्वचा कोर्निया को बनाने पर काम चल रहा है.
रिपोर्ट: डीपीए/महेश झा
संपादन: ए जमाल  sabhar : DE-WORLD.DE

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

पहला मेंढक जो अंडे नहीं बच्चे देता है

वैज्ञानिकों को इंडोनेशियाई वर्षावन के अंदरूनी हिस्सों में एक ऐसा मेंढक मिला है जो अंडे देने के बजाय सीधे बच्चे को जन्म देता है. एशिया में मेंढकों की एक खास प्रजाति 'लिम्नोनेक्टेस लार्वीपार्टस' की खोज कुछ दशक पहले इंडोनेशियाई रिसर्चर जोको इस्कांदर ने की थी. वैज्ञानिकों को लगता था कि यह मेंढक अंडों की जगह सीधे टैडपोल पैदा कर सकता है, लेकिन किसी ने भी इनमें प्रजनन की प्रक्रिया को देखा नहीं था. पहली बार रिसर्चरों को एक ऐसा मेंढक मिला है जिसमें मादा ने अंडे नहीं बल्कि सीधे टैडपोल को जन्म दिया. मेंढक के जीवन चक्र में सबसे पहले अंडों के निषेचित होने के बाद उससे टैडपोल निकलते हैं जो कि एक पूर्ण विकसित मेंढक बनने तक की प्रक्रिया में पहली अवस्था है. टैडपोल का शरीर अर्धविकसित दिखाई देता है. इसके सबूत तब मिले जब बर्कले की कैलिफोर्निया यूनीवर्सिटी के रिसर्चर जिम मैकग्वायर इंडोनेशिया के सुलावेसी द्वीप के वर्षावन में मेंढकों के प्रजनन संबंधी व्यवहार पर रिसर्च कर रहे थे. इसी दौरान उन्हें यह खास मेंढक मिला जिसे पहले वह नर समझ रहे थे. गौर से देखने पर पता चला कि वह एक मादा मेंढक है, जिसके...

क्या है आदि शंकर द्वारा लिखित ''सौंदर्य लहरी''की महिमा

?     ॐ सह नाववतु । सह नौ भुनक्तु । सह वीर्यं करवावहै । तेजस्वि नावधीतमस्तु मा विद्विषावहै । ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः ॥  अर्थ :'' हे! परमेश्वर ,हम शिष्य और आचार्य दोनों की साथ-साथ रक्षा करें। हम दोनों  (गुरू और शिष्य) को साथ-साथ विद्या के फल का भोग कराए। हम दोनों एकसाथ मिलकर विद्या प्राप्ति का सामर्थ्य प्राप्त करें। हम दोनों का पढ़ा हुआ तेजस्वी हो। हम दोनों परस्पर द्वेष न करें''।      ''सौंदर्य लहरी''की महिमा   ;- 17 FACTS;- 1-सौंदर्य लहरी (संस्कृत: सौन्दरयलहरी) जिसका अर्थ है “सौंदर्य की लहरें” ऋषि आदि शंकर द्वारा लिखित संस्कृत में एक प्रसिद्ध साहित्यिक कृति है। कुछ लोगों का मानना है कि पहला भाग “आनंद लहरी” मेरु पर्वत पर स्वयं गणेश (या पुष्पदंत द्वारा) द्वारा उकेरा गया था। शंकर के शिक्षक गोविंद भगवदपाद के शिक्षक ऋषि गौड़पाद ने पुष्पदंत के लेखन को याद किया जिसे आदि शंकराचार्य तक ले जाया गया था। इसके एक सौ तीन श्लोक (छंद) शिव की पत्नी देवी पार्वती / दक्षिणायनी की सुंदरता, कृपा और उदारता की प्रशंसा करते हैं।सौन्दर्यलहरी/शाब्दिक अर्थ...

स्त्री-पुरुष क्यों दूसरे स्त्री-पुरुषों के प्रति आकर्षित हैं आजकल

 [[[नमःशिवाय]]]              श्री गुरूवे नम:                                                                              #प्राण_ओर_आकर्षण  स्त्री-पुरुष क्यों दूसरे स्त्री-पुरुषों के प्रति आकर्षित हैं आजकल इसका कारण है--अपान प्राण। जो एक से संतुष्ट नहीं हो सकता, वह कभी संतुष्ट नहीं होता। उसका जीवन एक मृग- तृष्णा है। इसलिए भारतीय योग में ब्रह्मचर्य आश्रम का यही उद्देश्य रहा है कि 25 वर्ष तक ब्रह्मचर्य का पालन करे। इसका अर्थ यह नहीं कि पुरष नारी की ओर देखे भी नहीं। ऐसा नहीं था --प्राचीन काल में गुरु अपने शिष्य को अभ्यास कराता था जिसमें अपान प्राण और कूर्म प्राण को साधा जा सके और आगे का गृहस्थ जीवन सफल रहे--यही इसका गूढ़ रहस्य था।प्राचीन काल में चार आश्रमों का बड़ा ही महत्व था। इसके पीछे गंभीर आशय था। जीवन को संतुलित कर स्वस्थ रहकर अपने कर्म को पूर्ण करना ...