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#_रहस्य_
तंत्र के मुख्य दो ही मार्ग है इन्हीं विभिन्न सम्प्रदायों का उदय हुआ है १ ,वैदिकमार्ग २, शैवमार्ग। इनमे से वैदिकमार्ग को दक्षिणमार्ग और शैवमार्ग को भी वाममार्ग कहते है । गोरखनाथ जी के द्वारा शाबर मंत्र, जैनमार्ग, बौद्धमार्ग, मे भी साधनाए की जाती है पर वे सब वाममार्ग से ही प्रभावित है। आज ये दोनो मार्ग आपस मे मिलकर खिचड़ी बन गये है। अपितु ये आज से नही मिले आज से हजारो वर्ष पहले प्रजापति दक्ष के यज्ञ मे हुए युद्ध के समय मिल गये थे।
अतः आज बडे बडे तंत्रमार्गी एवं विद्वान भी इनमे भेद कर पाने स्थित नें नही है विशेषकर दक्षिणमार्गी ! वे आज वाममार्ग के देवी देवताओं को पूजा अर्चन कर रहे है इनमें भगवती (आधाशक्ति), दुर्गा, महालक्ष्मी, आदि है और गणेशजी भी वाममार्ग के ही देवता है, क्योंकि ये शिवकुल के देवता है , विष्णुकूल के नहीं।
इसी प्रकार महालक्ष्मी को विष्णुकुल ने समुद्र मथंन(सामाजिक- धार्मिक-आध्यात्मिक- मथंन जो दक्ष के युद्ध के बाद हुआ) के पश्चात विष्णु से जोड दिया(स्मरण करें पौराणिक रूपक) आज ये सभी दक्षिणमार्ग एवं वाममार्ग दोनो मे पूजे जाते है।
वैदिक देवता तीन सौ से अधिक है पर उनमे मुख्य अग्नि, इन्द्र, सूर्य, विष्णु, रूद्र ,अश्विनी ही है । वैदिक रूद्र ,शिव नही है। जैसा कुछ लोग अर्थ लगाते है । ये तेज की उग्र भावना के प्रतीक है । शिव आदि परमात्मा के। ये विष्णु के पर्याय समझे जा सकते है। तथापि सांस्कृतिक भावना के अन्तर के कारण इनके वर्णन मे भावान्तर है रूद्र की आराधना शिव के प्रधान गुण शक्ति के रूप मे वाममार्ग मे भी की जाती है ।
राम,कृष्ण, हनुमान, आदि अवतार रूप साकार ईश्वर की मान्यता के पश्चात दक्षिणमार्ग की पूजा पद्धति से जुडे है। वैदिक ऋषिओं की दृष्टि मे किसी मनुष्य या जीवधारी का ईश्वररूप असम्भव था। महान व्यक्तित्व देव रूप तो हो सकते है, किन्तु उन्हें निराकार, सच्चिदानंद परमात्मा मानने की वे कल्पना भी नही कर सकते थे। आज इन सभी रूपों, की आराधना को दक्षिण पंथ मे विष्णु रूप मे की जाती है।
सभी वैदिक देवताओं की साधना का वर्णन छोटी सी पोस्ट मे नही हो सकता है ।जो लोग इनमे से किसी देवता की साधना करनी चाहते है उन्हें वेद पढने चाहिए।ऋग्वेद मे अनुष्ठान विधि नही है । यह अथर्ववेद मे है । और यह सुत्र स्मरण रखें कि अग्नि, रूद्र, आदि उग्र देवा की साधना आग्नेय कोण मे रक्तिम आसन व फूलों से की जाती है वायु ,वरूण, (जल)आदि देवताओं की वायव्य कोण में और विष्णु, सूर्य, ऊषा आदि देवताओं की साधना आराधना ईशान कोण मे की जाती है ।
शास्त्रीय तंत्र साधना की विधियाँ अत्यन्त जटिल है। वे यहाँ उपलब्ध नही की जा सकती है
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