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मंत्र विज्ञान

------------:मन्त्र जप और मन्त्र सिद्धि:------------
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परम श्रद्धेय ब्रह्मलीन गुरुदेव पण्डित अरुण कुमार शर्मा काशी की अध्यात्म-ज्ञानधारा में पावन अवगाहन

पूज्य गुरुदेव के श्रीचरणों में कोटि-कोटि नमन

      मन्त्र के बार-बार जपने से उसका प्रभाव होता है। मन्त्र शब्द के कम्पन से प्रकम्पित होकर मनुष्य के कोष उसके अनुकूल हो जाते हैं। जो कोष अनुकूल होते हैं, उनसे सम्बंधित विषय का बोध मनुष्य को स्वयं अपने आप होने लगता है। 
       मन्त्र का कार्य श्रद्धा पर आधारित है। मन्त्रों की क्रिया उनके उच्चारण पर निर्भर है।  मंत्रोच्चारण उनके अर्थ पर निर्भर होते हैं।
       मन्त्र के उच्चारण से जो कम्पन पैदा होता है, पहले कुछ समय तक वह वायु में रह कर धीरे-धीरे उसी में विलीन हो जाता है। लेकिन मन्त्र-जप की संख्या जब अधिक हो जाती है तो उसके कम्पन वायु की पर्तों  का भेदन कर सूक्ष्मतम वायु मंडल में चले जाते हैं और वहां से उस देवता का आकार-प्रकार बनाने लग जाते हैं जिस देवता का वह मन्त्र होता है। इसीलिए  मन्त्र-जप की संख्या निश्चित होती है। उस संख्या से जब अधिक जप होता है तभी सूक्ष्मतम वायुमंडल में देवता का आकार-प्रकार बनता है। जब वह पूर्णरूप से बन जाता है तो देवता अपने लोक से आकर उसमें स्वयं प्रतिष्ठित होते हैं। आकार-प्रकार का बनना मन्त्र-चैतन्य का लक्षण है। देवता का अपने आकार-प्रकार में प्रतिष्ठित होना ही मन्त्र-सिद्धि है। मन्त्र सिद्ध होने पर सम्बंधित देवता मन्त्र जपने वाले को उसका फल प्रदान करते हैं। 

-----:ॐ का सही उच्चारण:-----
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      सही ढंग से जो ॐ का उच्चारण करना जानता है ,उसके जैसा कोई साधक नहीं होता। ॐ के उच्चारण में श्वास-प्रश्वास के लय और उसकी गति को समझना आवश्यक है। ॐ का उच्चारण कई प्रकार से किया जाता है। प्रत्येक उच्चारण के स्वर एक दूसरे से भिन्न होते हैं और उनके प्रभाव भी भिन्न होते हैं। भिन्न-भिन्न प्रभाव से तत्काल वातावरण में परिवर्तन होता है।
       ॐ की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि शंख के माध्यम से निकली हुई ॐ की ध्वनि अति विचित्र और महत्व्पूर्ण होती है। इसलिए कि वह देवलोक और उसके ऊपर के लोकों तक सुनाई देती है। देवगण उसको सुनकर चमत्कृत होते हैं और होते हैं प्रसन्न।
       यह तो निश्चित है कि ॐ के उच्चारण की भिन्नता के कारण उसका फल भी भिन्न-भिन्न होता है। "ओ" पर चौगुना ज़ोर देकर दीर्घकाल तक उसका उच्चारण करने के बाद "म" का उच्चारण भी दीर्घकाल तक करना चाहिए। जितना समय ओ के उच्चारण में लगे, उतना ही समय म के उच्चारण में भी लगना चाहिए। ऐसा "म" अत्यधिक शक्तिशाली होता है। ऐसे ॐ के उच्चारण का प्रभाव उच्चारण करने वाले व्यक्ति के मन, मस्तिष्क और आत्मा पर तुरंत पड़ता है। इसके अतिरिक्त अदृश्य रूप से वातावरण में विद्यमान अपआत्माएं ( भूत-प्रेत) भी भाग जाती हैंऔर अच्छी आत्माएं आकर्षित होकर वहां आ जाती हैं और शंख बजाने वाले की सहायता करती हैं मानसिक रूप से। sabhar shivaram Tiwari Facebook wall

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