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सृष्टि और प्रलय

{{{ॐ}}}

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इस समस्त जड़ चेतनात्मक जगत का एक  मात्र निमित्त एवं उपादान कारण वह परब्रह्म ही है यही वह मूल तत्व है जिससे सृष्टि कि रचना होती है उसी से संचालित होती है तथा प्रलय काल मे उसी मे विलीन हो जाती है यह सृष्टि उसी सी अभिव्यक्ति है जो ब्रह्म से भिन्न नही है
यह जड प्रकृति सृष्टि या कारण नही है प्रलय काल मे वह सबको अपने मे विलीन  करने ये कारण ही उसे भोक्ता कहा गया है
कल्प ये आरम्भ मे सृष्टि सी रचना उसी प्रकार होती है जैसी पूर्व कल्प मे हुई थी वेद भी नित्य है प्रत्येक कल्प मे इनकी नई रचना नही होती है
हर कल्प मे उसी नाम रूप और ऐश्वर्य वाले देवता उत्पन्न होते है किन्तु उनके जीव बदल जाते है इसलिए वे नित्य है तथा जन्म मरण से मुक्त है
जगत के कारण के समाधान ये लिए वेदानुकुल स्मृतियाँ सी प्रमाण है सांख्य और योग दर्शन वेदानुकुल नही होने से प्रमाण नही है
जिस प्रकार बीज मे सम्पूर्ण वृक्ष सी सत्ता विधमान है उसी प्रकार यह जगत अप्रकट रूप से शक्ति रूप से ब्रह्म मे विधमान है प्रलय काल मे भी यह शक्ति रूप से उस परब्रह्म मे विधमान रहता है तथा रचना काल मे वही शक्ति जड चेतन ये रूप मे प्रकट होती है प्रलय काल मे जगत अव्यक्त रूप से ब्रह्म मे विधमान रहता है सत्ता या कभी नाश नही होता रूपान्तरण मात्र होता है 
सृष्टि सी रचना मे ब्रह्म से सर्वप्रथम आकाश उत्पन हुआ आकाश से वायु  वायु से तेज तेज से जल  जल से पृथ्वी उत्पन्न हुई sabhar sakti upasak agyani facebook

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