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ओफियूशस नामक तारामंडल में मिला एक ब्लैक होल

वाशिंगटन : इसे एक अप्रत्याशित खोज ही कहा जा सकता है कि वैज्ञानिकों ने पृथ्वी से करीब 22,000 प्रकाश वर्ष दूर, ओफियूशस नामक तारामंडल में एक ब्लैक होल देखा है। पिछले साल जब मिशिगन स्टेट यूनिवर्सिटी के एक प्रोफेसर की अगुवाई में खगोलविदों ने ग्लोबुलर क्लस्टर नामक तारों के समूह में दो ब्लैक होल की खोज की थी तब दल को यह अनुमान नहीं थी कि ब्लैक होल की मौजूदगी सामान्य है या फिर एक दुर्लभ प्रक्रिया है। अनुसंधानकर्ताओं ने ग्लोबुलर क्लस्टर में एक और ब्लैक होल ‘एम 62’ के सबूत खोजे हैं। एमएसयू में भौतिकी और खगोल विज्ञान की सहायक प्रोफेसर और टीम की सदस्य लॉरा चौकियुक ने बताया ‘सचमुच, ग्लोबुलर क्लस्टर्स में ब्लैक होल सामान्य बात हो सकती है।’ ब्लैक होल वास्तव में तारे होते हैं जो खत्म हो जाते हैं, विघटित हो जाते हैं और उनका गुरूत्व क्षेत्र बहुत मजबूत होता है। (एजेंसी) sabhar  http://zeenews.india.com/

स्विच बदलते हैं चेहरे की बनावट

वैज्ञानिकों ने अलग-अलग लोगों के चेहरों में अंतर पाए जाने के कारणों को समझने में आरंभिक सफलता प्राप्त कर ली है. चूहों पर हुए अध्ययन में वैज्ञानिकों को डीएनए में मौजूद हज़ारों ऐसे छोटे-छोटे हिस्सों का पता चला है जो चेहरे की बनावट के विकास में निर्णायक भूमिका निभाते हैं. शोधपत्रिका साइंस में छपे इस शोध से चेहरे में आने वाली जन्मजात विकृतियों का कारण समझने में भी मदद मिल सकती है.इस शोध में यह भी पता चला कि आनुवांशिक सामग्री में परिवर्तन चेहरे की बनावट में बहुत बारीक़ अंतर ला सकते हैं. शोधकर्ताओं ने कहा कि यह प्रयोग जानवरों पर किया गया है, लेकिन पूरी संभावना है कि मनुष्य के चेहरे का विकास भी इसी तरह होता है. कैलीफोर्निया स्थित लॉरेंस बर्कले नेशनल लैबोरेटरी के ज्वाइंट जीनोम इंस्टीट्यूट के प्रोफ़ेसर एक्सेल वाइसेल ने बीबीसी से कहा, "हम यह जानने की कोशिश कर रहे हैं कि चेहरे की बनावट के निर्माण के निर्देश मनुष्यों के डीएनए में कैसे मौजूद होते हैं. इन डीएनए में ही कहीं न कहीं हमारे चेहरे की बनावट का राज़ छिपा है." क्लिक करें जीन स्विच " इससे हमें पता चलता है क

हाथ लग सकता है ताउम्र जवां रहने का नुस्खा

हम हमेशा जवान रहना चाहते हैं। यही वजह है कि जवान रहने के लिए हम नए-नए तरीके ढूंढते रहते हैं। कभी किसी टॉनिक में, तो कभी किसी क्रीम या फिर कॉस्मेटिक सर्जरी में। हालांकि सारी कोशिशें बेकार हो जाती हैं, क्योंकि बाहर से हम कितने भी जवां दिखें, लेकिन अंदर से शरीर कमजोर और बूढ़ा होता जाता है। लेकिन अगर अमेरिकी वैज्ञानिकों की कोशिश सफल रहती है, तो सदा जवान बने रहने का नुस्खा हमारे हाथ लग सकता है। दरअसल वैज्ञानिकों को पता चल गया है कि असल में जवानी का राज बाहर नहीं, बल्कि शरीर के डीएनए में छिपा है। वैज्ञानिकों ने इसे समझने के लिए डीएनए से जुड़ी ह्यूमन बॉडी क्लॉक (जैविक घड़ी) को खोज लिया है। यह घड़ी शरीर में मौजूद कोशिकाओं, टिश्यू और अंगों के उम्र की गणना करती है। वैज्ञानिकों का मानना है कि अगर इस घड़ी से किसी तरह बढ़ती उम्र के प्रोसेस को उल्टा किया जा सके, तो ताउम्र जवान रहने का सपना हकीकत में बदल सकता है।  सदा जवान बने रहने का राज : हालांकि अब भी वैज्ञानिकों के लिए बड़ा सवाल यह है कि क्या यह जैविक घड़ी सदा जवान बने रहने के राज को खोल पाएगी। क्या यही घड़ी उन फैक्टर्स को कंट्रोल करती है, जिससे

अब 'इलेक्ट्रॉनिक रक्त' से चलेगा कंप्यूटर

आईटी क्षेत्र की दिग्गज कंपनी आईबीएम ने एक ऐसे नए कंप्यूटर का नमूना पेश किया है जो मनुष्य के मस्तिष्क की संरचना से प्रेरित है. इस कंप्यूटर की ख़ास बात यह है कि यह 'इलेक्ट्रॉनिक रक्त' से संचालित होगा. क्लिक करें आईबीएम  का कहना है कि कंपनी ने प्रकृति से प्रेरणा लेते हुए इंसान के दिमाग़ जैसा ही  क्लिक करें कंप्यूटर  बनाने की कोशिश की है जो तरल पदार्थ से ऊर्जा पाकर संचालित होता है. र मनुष्य के  क्लिक करें दिमाग़  में बिल्कुल छोटी-सी जगह में असाधारण गणना की ताक़त होती है और इसमें केवल 20 वॉट की ऊर्जा का इस्तेमाल होता है. आईबीएम की कोशिश है कि उसके नए कंप्यूटर में भी ऐसी ही क्षमता हो. इस कंप्यूटर के नए रिडॉक्स फ्लो तंत्र (यह एक रासायनिक प्रतिक्रिया है जिसमें एक बार ऑक्सीकरण हुआ तो इसकी उल्टी प्रतिक्रिया में इसमें कमी आती है) के जरिए कंप्यूटर में इलेक्ट्रोलाइट 'रक्त' का प्रवाह होता है और जिससे इस कंप्यूटर को बिजली मिलती है. इलेक्ट्रॉनिक रक्त यह इलेक्ट्रोलाइट 'रक्त' दरअसल ऐसा द्रव है जिससे बिजली का प्रवाह होता है. तकनीकी क्षेत्र की इस दिग्गज कंप

समुद्र में ब्लैक होल्स

ब्रह्मांड की तरह समुद्र में भी ब्लैक होल्स हैं. वैज्ञानिकों के अनुसार अंतरिक्ष और समुद्र में पाए जाने वाले ब्लैक होल्स की गणितीय गणना एक जैसी है. (भंवर) शहरों से भी बड़े हैं. इनकी चपेट में आने पर कुछ भी नहीं बच पाता है. इस खोज से समुद्र के कचरे से निपटने, हिमखंडों के पिघलने, समुद्र के तापमान में परिवर्तन आने आदि से संबंधित शोध में महत्वपूर्ण मदद मिलेगी. अंतरिक्ष में पाए जाने वाले ब्लैक होल्स के करीब जो भी वस्तु आती है, उसे वे अपने में खींच लेते हैं. इन ब्लैक होल्स के केंद्र में इतना अधिक गुरुत्वाकर्षण होता है कि अपने आसपास की रोशनी, आकाशीय पिंड आदि तक को अपने में खींच लेते हैं और फिर इनका अस्तित्व हमेशा के लिए खत्म हो जाता है. ईटीएच ज्यूरिक के वैज्ञानिकों को अपने नवीनतम खोज में पता चला है कि दक्षिणी अटलांटिक महासागर में भी ब्लैक होल्स (भंवर) हैं. समुद्र की इन ब्लैक होल्स की गणितीय गणना आकाशीय ब्लैक होल्स की तरह की जा सकती है. समुद्र के ब्लैक होल्स के केंद्र में गुरुत्वाकर्षण इतना अधिक होता है कि इनके करीब का पानी भी इनमें समा जाता है. वैज्ञानिकों के अनुसार समुद्र के इ

पेड़ों में छिपे सोने के छोटे-छोटे कणों का पता चला

मेलबर्न : केवल परिकथाओं में ही सोने के पेड़ उगते थे लेकिन अब यह परिकल्पना हकीकत में बदल गई है। ऑस्ट्रेलियाई वैज्ञानिकों ने पेड़ों में सोने जैसी कीमती धातु की तलाश कर ली है।  पर्थ के शोधकर्ताओं ने यूकेलिप्टस के पेड़ों में छिपे सोने के छोटे-छोटे कणों का पता लगाया है। यह एक ऐसी खोज है जो भविष्य में इस कीमती धातु के भंडार खोजने में मददगार हो सकती है।  एक रिपोर्ट के अनुसार, कॉमनवेल्थ साइंटिफिक एंड इंडस्ट्रियल रिसर्च ऑर्गनाइजेशन के शोधकर्ताओं ने कहा कि उनका मानना है कि जो पेड़ स्वर्ण भंडारों वाली भूमि के ऊपर उगे हैं, उनकी जड़ें काफी गहराई में हैं। सूखे के दौरान ये जड़ें नमी की तलाश में गहराई में छिपे सोने को चूस लेती हैं। सीएसआईआरओ के भूरसायन वैज्ञानिक मेल्वन लिंटर्न ने कहा कि हम इसकी उम्मीद नहीं कर रहे थे। पत्तियों में सोने के कण मिलना हमारे लिए वाकई एक अद्भुत अवसर था। sabhar : http://zeenews.india.com उन्होंने कहा कि हमने जिन पेड़ों पर शोध किया, उन्होंने यह सोना लगभग 30 मीटर की गहराई से लिया था। यह गहराई किसी दस मंजिला इमारत की उंचाई के बराबर होगी। (एजेंसी)

जापान में बना पहला एंफ़िबियस रोबोट

जापानी वैज्ञानिकों ने पहला एंफ़िबियस रोबोट (जलस्थलचर रोबोट) का निर्माण किया है जो मानव के नियंत्रण में रहकर परमाणु बिजलीघर "फुकुशिमा-1" में उच्च विकिरण की स्थितियों में काम करने में सक्षम होगा।   तिबा प्रौद्योगिकी संस्थान के विशेषज्ञों ने इस रोबोट का प्रदर्शन किया है। इस राहतकर्ता-रोबोट का नाम "सकुरा" है जो सीढ़ियों पर चढ़ तथा उतर सकता है और जल के नीचे भी काम कर सकता है। परमाणु बिजलीघर "फुकुशिमा-1" के कई तहख़ानों और नालियों में रेडियोधर्मी जल भरा हुआ है। आम मनुष्य वहाँ राहत-कार्य नहीं कर सकता है। इससे पहले भी जापान के विभिन्न वैज्ञानिक संगठनों में भी ऐसे रोबोटों का निर्माण किया जाता रहा है लेकिन वे रोबोट ज़्यादा देर तक काम नहीं कर पाते थे। sabhar :  http://hindi.ruvr.ru और पढ़ें:  http://hindi.ruvr.ru/news/2013_09_27/244333221/