सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

संदेश

neuralinks project and hindu philospy

योग शरीर और विज्ञान

---------------:योग और मेरुदण्ड:--------------- *********************************** परम श्रद्धेय ब्रह्मलीन गुरुदेव पण्डित अरुण कुमार शर्मा काशी की अध्यात्म-ज्ञानगंगा में पावन अवगाहन पूज्य गुरुदेव के श्रीचरणों में कोटि-कोटि वन्दन       साधना की दृष्टि से मानव शरीर में जितने महत्वपूर्ण अंग हैं, उनमें सर्वाधिक मूल्यवान, सर्वाधिक महत्वपूर्ण अंग है--'मेरुदण्ड'। मेरुदण्ड यानी रीढ़ की हड्डी। जिन हड्डियों के छोटे-छोटे टुकड़ों से मेरुदण्ड का निर्माण होता है, उनकी संख्या 84 है जिनका अगोचर सम्बन्ध जीवात्मा के 84 लाख योनियों से बतलाया गया है। प्रत्येक अस्थि-खण्ड में एक लाख योनियों के संस्कार विद्यमान हैं। 84 अस्थि-खंडों की श्रृंखला वाले इस मेरु-दण्ड के ऊपरी सिरे पर स्थितिशील ऊर्जा (स्टेटिक एनर्जी) यानी परात्पर 'शिवतत्त्व' की स्थिति है। इसी प्रकार इसके नीचे वाले सिरे पर गतिशील ऊर्जा (डायनेमिक एनर्जी) यानी शक्तितत्त्व या पराशक्ति की स्थिति है। योग की भाषा में इन्हीं दोनों सिरों को क्रमशः 'सहस्त्रार चक्र' और 'मूलाधार चक्र' कहते हैं। इन दोनों चक्र-बिंदुओं को तंत्र में ऊर्

मानव शरीर का चक्र विज्ञान

------------------:ज्ञानतन्तु:------------------ ***********************************                     भाग--02                   ********** परम श्रद्धेय ब्रह्मलीन गुरुदेव पण्डित अरुण कुमार शर्मा काशी की अध्यात्म-ज्ञानगंगा में पावन अवगाहन पूज्य गुरुदेव के श्रीचरणों में कोटि-कोटि वन्दन       तंत्र के मतानुसार मानव शरीर में छः चक्र हैं जो चेतना-शक्ति के केंद्र-स्थल हैं--मूलाधार चक्र, स्वाधिष्ठान चक्र, मणिपूरक चक्र, अनाहद चक्र, विशुद्ध चक्र और आज्ञाचक्र। सहस्त्रदल वाला चक्र यानी 'सहस्त्रार' चक्र सातवें और 'सोम' नामक आठवें चक्र का योग में गणना करते हैं जहां अनवरत सोम की वर्षा होती रहती है, अमृत-क्षरण होता रहता है और जीवनी-शक्ति बराबर गतिमान होती रहती है। जब इस अमृत का क्षरण बन्द होने लगता है, तब जीवन-चक्र भी समाप्त होने लगता है। अमृत-क्षरण अनवरत चलता है। यह साधक की साधना पर निर्भर करता है। हज़ारों वर्ष तक जीवित रहने वाले दीर्घजीवी साधकों को इस सोमरस का पान योग द्वारा सम्भव होता है। आज भी हिमालय की कंदराओं में सिद्ध साधक इसी सोमतत्व का पान कर वर्षों से साधना  में लीन हैं।  

chetan aur avchetan man vigyan aur adyatm

पुनः उग आएंगे छतिग्रस्त अंग

वैज्ञानिको ने मानव शरीर में मौजूद उस खाश जीन का पता लगा लिया है जिसे स्विच ऑफ़ करते ही हमारे छतिग्रस्त अंग नए सिरे से पैदा हो जायेगे अमेरिका के फिलाडेल्फिया स्थित विस्टार संस्थान के वैज्ञानिक की टीम ने पी २१ नामक जीन को तलाशा है यह जीन लाखो वर्षो के विकाश क्रम में स्विच ओंन हो गयी थी पी २१ नामक जीन कोशिकाओं के पुनर्जनम को रोके हुए है जब चूहों के सरीर में में इस जीन को निष्क्री किया गया तो उनके छातीग्रस्त उतक फिर पैदा हुए यह ब्लास्तेमा नाक एक संग्रचना के कारन संभव हुआ वैज्ञानिको ने ये भी बताया की पी२१ हटा देने पर मानव शरीर कोसिकायो में स्टेम सेल कोसिकायो का लगातार निर्माण किया जा सकता है

क्वांटम कम्प्युटर बनेगा भविष्य का कम्प्युटर

आगे भविष्य में कम्प्युटर के कार्य करने के तरीके बदल जायेंगे आने वाले भविष्य में आप के कम्प्यूटरों का स्थान क्वांटम कम्प्युटर ले लेगा जो चिप के स्थान पर द्रवों से भरा होगा यह भौतिक नियमो से संचालित नहीं होगा इसके आपरेसन के लिए क्वांटम यांत्रिकी का प्रयोग होगा अर्थात किसी बस्तु को एक स्थान से दूसरे स्थान पर विना स्थान परिवर्तन के पहुंचाना और समान्तर ब्रह्माण्ड जैसा सिधांत है यह कम्प्युटर पेंटियम -३ से १ अरब गुना ज्यादे तेजी से गड़ना करेगा और यह पलक झपकते पुरे इंटरनेट को खंगालने में सछम होगा यह कम्पूटर २०३० के आस पास आप के पास उपलब्द होगा यह सबसे एडवांस सिकोरिटी कोड को आसानी से तोड़ देगा इसके कम्पूटर चिपों के स्थान पर द्रव भरा होगा जिसमे उपस्थित परमाणु का प्रयोग गड़ना के लिए करेंगे परमाणु प्राकृतिक रूप से सूछ्म कल्कुलेटर है इसकी गति ऊपर नीचे होती है जो डिजिटल तकनीक से मेल खाती है क्वांटम यांत्रिकी के द्वारा सूछ्म अर्थात अणु परमाणु क्वार्ट इत्यादि के संसार को समझा जा सकता है इसके नियम इतने विचित्र है उनको समझना आसान नहीं है लेकिन इनके सिधांत को बार बार सिध्य किया गया है क्योकि किसी प

सौर ऊर्जा से चीनी बनाने में सफलता

वैज्ञानिको ने सौर ऊर्जा से चीनी बनाने में सफलता प्राप्त की है सिनसिनाटी विश्वविद्यालय के शोधकर्ता के दल ने सौर ऊर्जा से चीनी बनाने की कोशिश में कृत्रिम फोटो सिंथेटिक के जरिये चीनी बनाने की थी उन्होंने पौधों मेढक फफूद एन्जाएम और बैक्टेरिया को एक फोम के खोल में बंद करके सूरज की रोशनी और कार्बन डाई आक्साइड की मौजूदगी से इस प्रक्रिया में सफलता पाई यह पूरी प्रक्रिया अर्ध विषुवतीय छेत्र के टुंगारा मेडक के फोम से बने घोसले पर आधारित थी इस प्रक्रिया में सूरज की पूरी रोसनी का इस्तमाल चीनी बनाने के लिए होता है जबकि पौधे और फफूद फोटो सिंथेटिक के दौरान प्रकाश का इस्तेमाल अन्य कामो के लिए भी करते है इससे बनाई गयी चीनी को बड़ी आसानी से इथेनाल और दूसरे बायो फ्यूल में बदला जा सकता है यह एक ईधन के छेत्र एक अहम् खोज है