सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

संदेश

श्रीचक्र साधना

{{{ॐ}}}                                                                      #श्रीचक्र षोडशी विधा मे श्री चक्र का प्रयोग साधना मे किया जाता है । इस चक्र का उद्भव  तो प्रकृति करती है, किन्तु इसके ज्ञान का उद्भव शिवलिंग (मातृशक्ति) के पूजको के समुदाय मे हुआ था । aऔर इसे भैरवीचक्र,शक्तिचक्र,आधाचक्र,सृष्टिचक्र, आदि कहा जाता है ।s श्रीचक्र इसका वैदिक संस्करण है। लोग ताँबे आदि के पत्र पर इसे खुदवाकर  पूजाघरों  मे स्थापित कर लेते है। और धूप दीप दिखाकर पूजा करके समझते है , कि उन्होंने श्रीचक्र  की स्थापना कर ली है परन्तु यह बहुत भारी भ्रम है।h श्रीचक्र की घर मे स्थापना का वास्तविक अर्थ -- घर को इस स्वरूप मे व्यवस्थित करना ।o यह चक्र भूमि चयन से लेकर घर बनाने और उसकी व्यवस्थाओं ( कमरे ,सजावट आदि) को श्रीचक्र के अनुसार व्यवस्थित करने , उसका चिन्तन करने और उसमे देवी स्वरूप की छवि देखने सम्बन्धित है । इसका यह भी अर्थ है कि घर की व्यवस्था एवं नियन्त्रण किसी शक्ति (नारी) के हाथ मे हो और समस्त परिवार उससे शक्ति प्राप्त करके उन्नत हो । इस चक्र को घर मे स्थापित करने के बाद नारी का सम्मान करना उसे शक्ति

लघु दुर्गा सप्तशती

{{{ॐ}}}                                                          #लघु_दुर्गा_सप्तशती ॐ वींवींवीं वेणुहस्ते स्तुतिविधवटुके हां तथा तानमाता, स्वानंदेमंदरुपे अविहतनिरुते भक्तिदे मुक्तिदे त्वम् । हंसः सोहं विशाले वलयगतिहसे सिद्धिदे वाममार्गे, ह्रीं ह्रीं ह्रीं सिद्धलोके कष कष विपुले वीरभद्रे नमस्ते ।। १ ।। ॐ ह्रीं-कारं चोच्चरंती ममहरतु भयं चर्ममुंडे प्रचंडे, खांखांखां खड्गपाणे ध्रकध्रकध्रकिते उग्ररुपे स्वरुपे । हुंहुंहुं-कार-नादे गगन-भुवि तथा व्यापिनी व्योमरुपे, हंहंहं-कारनादे सुरगणनमिते राक्षसानां निहंत्रि ।। २ ।। ऐं लोके कीर्तयंती मम हरतु भयं चंडरुपे नमस्ते, घ्रां घ्रां घ्रां घोररुपे घघघघघटिते घर्घरे घोररावे । निर्मांसे काकजंघे घसित-नख-नखा-धूम्र-नेत्रे त्रिनेत्रे, हस्ताब्जे शूलमुंडे कलकुलकुकुले श्रीमहेशी नमस्ते ।। ३ ।। क्रीं क्रीं क्रीं ऐं कुमारी कुहकुहमखिले कोकिले, मानुरागे मुद्रासंज्ञत्रिरेखां कुरु कुरु सततं श्रीमहामारि गुह्ये । तेजोंगे सिद्धिनाथे मनुपवनचले नैव आज्ञा निधाने, ऐंकारे रात्रिमध्ये शयितपशुजने तंत्रकांते नमस्ते ।। ४ ।। ॐ व्रां व्रीं व्रुं व्रूं कवित्ये दहनपुरगते रुक्मरुपेण च

Kisan Ganne se Sirka Banakar Kamayein 15-20 गुना ज्यादा लाभ | How To Mak...

योग के दृष्टि से आयु पे नियंत्रण

अब योग के दृष्टि से आयु पे नियंत्रण की मनोवैज्ञानिक अथवा आध्यात्मिक प्रभाव एवं स्तर को जान अथवा समझ लेना अवयशक हैं देखो उम्र और स्वाँस का वही सम्बंध होता हैं जो किसी गाड़ी और इधन की होती हैं जैसे जैसे गाड़ी की इधन जहाँ जाकर समाप्त हो जाती हैं वहीं उसका विराम लग जाता फिर चाह कर भी वहाँ से आगे अपनी गाड़ी को नहीं लेकर जा सकता चाहे उसका गंतव्य स्थान आए या नहीं आए और एक बात ये भी हैं की इस शरीर रूपी गाड़ी को प्राणी बिना मतलब इधर उधर चलाते जा रहा हैं उसपे ब्रेक लगाने की कला ही उसे मालूम नहीं हैं जब उसका कोई कार्य नहीं हैं अथवा बिना रास्ते का खबर रहे वो निरंतर अनजान और ग़लत दिशा में भागे जा रहा हैं और जब तक गाड़ी भाग रही हैं चाहे वो किसी भी दिशा में भागे इधन तो कम तटपश्चात समाप्त होगी ही ना उसे क्या मतलब की तुम किस दिशा में जा रहे हो सही दिशा में या ग़लत दिशा में । दूसरा पहलू योग के दृष्टि में जीवन क्या हैं स्वाँस और प्रस्वाँस की क्रिया का निरंतर जारी रहना ही जीवन हैं योग की मतअनुसार परंतु जिस साधक को इस स्वाँस और प्रस्वाँस की क्रिया को विराम देने की ठहराने की कला मालूम हैं उसका स

:मनुष्य इस विश्व ब्रह्माण्ड की अद्भुत कृति

पूज्य ब्रह्मलीन गुरुदेव पण्डित अरुण कुमार शर्मा के श्रीचरणों में कोटि-कोटि नमन       इस विश्वब्रह्माण्ड के कण-कण में नैसर्गिक शक्तियों का विपुल भण्डार भरा हुआ है। ये नैसर्गिक शक्तियां ऊर्जा के रूप में परिवर्तित होकर सर्वप्रथम ग्रह-नक्षत्रों की ऊर्जाओं में परिवर्तित होती हैं और उनके द्वारा मनुष्य के विभिन्न अंगों से अपना सम्बन्ध स्थापित करती हैं। इसके पश्चात पंचतत्वों का आश्रय लेकर विभिन्न पदार्थों का निर्माण करती हैं। हमें ज्ञात होना चाहिए कि सूर्य से निःसृत उष्ण ऊर्जा ही वास्तव में वह नैसर्गिक शक्ति है। हम-आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि केवल दस एकड़ भूमि पर सूर्य की जो उष्ण ऊर्जा दिन के समय बिखरी हुई होती है, उसकी शक्ति से पूरे विश्व के कल-कारखाने और मशीनों को पूरे एक महीने तक चलाया जा सकता है। लेकिन यह सम्भव कैसे है ?       सूर्य की उसी उष्ण ऊर्जा का दूसरा नाम 'सौर ऊर्जा' है जो ज्योतिर्विज्ञान की मूलभित्ति है। ज्योतिर्विज्ञान के अन्तर्गत छः विज्ञान हैं--नक्षत्रविज्ञान, राशिविज्ञान, क्षणविज्ञान, कालविज्ञान, चंद्रविज्ञान और सूर्यविज्ञान।       इस नैसर्गिक ऊर्जा का एक विशिष्ट क्षे

सृष्टि और प्रलय

{{{ॐ}}}                                                                   # इस समस्त जड़ चेतनात्मक जगत का एक  मात्र निमित्त एवं उपादान कारण वह परब्रह्म ही है यही वह मूल तत्व है जिससे सृष्टि कि रचना होती है उसी से संचालित होती है तथा प्रलय काल मे उसी मे विलीन हो जाती है यह सृष्टि उसी सी अभिव्यक्ति है जो ब्रह्म से भिन्न नही है यह जड प्रकृति सृष्टि या कारण नही है प्रलय काल मे वह सबको अपने मे विलीन  करने ये कारण ही उसे भोक्ता कहा गया है कल्प ये आरम्भ मे सृष्टि सी रचना उसी प्रकार होती है जैसी पूर्व कल्प मे हुई थी वेद भी नित्य है प्रत्येक कल्प मे इनकी नई रचना नही होती है हर कल्प मे उसी नाम रूप और ऐश्वर्य वाले देवता उत्पन्न होते है किन्तु उनके जीव बदल जाते है इसलिए वे नित्य है तथा जन्म मरण से मुक्त है जगत के कारण के समाधान ये लिए वेदानुकुल स्मृतियाँ सी प्रमाण है सांख्य और योग दर्शन वेदानुकुल नही होने से प्रमाण नही है जिस प्रकार बीज मे सम्पूर्ण वृक्ष सी सत्ता विधमान है उसी प्रकार यह जगत अप्रकट रूप से शक्ति रूप से ब्रह्म मे विधमान है प्रलय काल मे भी यह शक्ति रूप से उस परब्रह्म मे वि

अचेतन में प्रवेश

 -  स्वप्न देखते हुए जागने की पहली विधि -  एक तो यह कि तुम यह मानकर अपना कामकाज, अपना व्यवहार शुरू करो कि सारा संसार स्वप्‍नवत है। तुम जो भी करो, यह याद रखो कि यह सपना है। जब जागे हुए हो तो निरंतर याद रखो कि सब कुछ सपना है। अगर तुम स्वप्न देखते हुए स्मरण रखना चाहते हो कि यह स्वप्न है तो तुम्हें जागते हुए ही उसका आरंभ करना होगा। अभी तो ऐसा है कि स्वप्न देखते हुए तुम नहीं याद रख सकते कि यह स्‍वप्‍न है। तुम तो सोचते हो कि यह यथार्थ ही है। क्यों तुम सोचते हो कि यह यथार्थ है? क्योंकि दिनभर तो तुम यही समझते हो कि सब कुछ यथार्थ है। वह तुम्हारी दृष्टि बन गई है —बंधी—बंधाई दृष्टि। जागते हुए तुमने स्नान किया, वह यथार्थ था। जागते हुए तुम भोजन कर रहे थे, वह यथार्थ था। जागते हुए तुम बातचीत कर रहे थे, वह भी यथार्थ था। पूरे दिन और इसी तरह पूरी जिंदगी, तुम जो भी सोचते हो, करते हो, उस पर तुम्हारी दृष्टि उसके यथार्थ होने की रहती है। यह दृष्टि फिक्स हो जाती है, यह मन की बंधी—बंधाई धारणा बन जाती है। फिर रात में जब तुम स्‍वप्‍न देखते हो तो वही दृष्टि काम करती है कि यह यथार्थ है। इसलिए पहले तो हम विश्लेषण क