आस्तिक कौन ? नास्तिक कौन ? आस्तिकता का सच्चा स्वरूप 'ईश्वर है'-केवल इतना मान लेना मात्र ही आस्तिकता नहीं है । ईश्वर की सत्ता में विश्वास कर लेना भी आस्तिकता नहीं है, क्योंकि आस्तिकता विश्वास नहीं, अपितु एक अनुभूति है । 'ईश्वर है' यह बौद्धिक विश्वास है । ईश्वर को अपने हृदय में अनुभव करना, उसकी सत्ता को संपूर्ण सचराचर जगत में ओत- प्रोत देखना और उसकी अनुभूति से रोमांचित हो उठना ही सच्ची आस्तिकता है । आस्तिकता की अनुभूति ईश्वर की समीपता का अनुभव कराती है । आस्तिक व्यक्ति जगत को ईश्वर में और ईश्वर को जगत में ओत-प्रोत देखता है । वह ईश्वर को अपने से और अपने को ईश्वर से भिन्न अनुभव नहीं करता । उसके लिए जड़-चेतनमय सारा संसार ईश्वर रूप ही होता है । वह ईश्वर के अतिरिक्त किसी भिन्न सत्ता अथवा पदार्थ का अस्तित्व ही नहीं मानता । प्राय: जिन लोगों को धर्म करते देखा जाता है उन्हें आस्तिक मान लिया जाता है । यह बात सही है कि आस्तिकता से धर्म-प्रवृत्ति का जागरण होता है । किंतु यह आवश्यक नहीं कि जो धर्म-कर्म करता हो वह आस्तिक भी हो । अनेक लोग प्रदर्शन के लिए भी धर्म-कार्य किया करते हैं । ...
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