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क्लोनिंग क्या है

जीव विज्ञान में क्लोनिंग अनुवांशिक रूप से सामान प्राणियों की जनसंख्या उत्पन्न करने की प्रक्रिया को कहते हैं जो प्रकृति में विभिन्न जीवो जैसे बैक्टीरिया की या पौधों द्वारा अलैंगिक रूप से प्रजनन करने पर घटित होती है बायो टेक्नोलॉजी में क्लोनिंग डीएनए खंड कोशिकाओं या जीवो के क्लोन निर्मित करने की प्रक्रिया को कहते हैं क्लोन निचले जीव में काफी आम है लेकिन उच्च कोटि के जीवो में क्लोन प्राकृतिक रूप से नहीं पाए जाते हैं1997 में रोज निल संस्थान एडिनबड़ा ब्रिटेन में सफलतापूर्वक डॉली नामक भीड़ को क्लोन किया गया डोली का जन्म नाभिक स्थानांतरण विधि द्वारा हुआ इस प्रक्रिया में एक भेड़ के स्तन की कोशिका को अलग करके उसे निष्क्रिय कर दिया गया इस कोशिका को एक नाभिक रहित अनिषेचित कोशिका में प्रवेश करा करके उसे भूण कोशिका होने तक एक कल्चर डिस में विकसित होने दिया गया इस प्रक्रिया में दो विभिन्न कोशिकाओं के कोशिका द्रव्य आपस में मिल जाते हैं कोशिका द्रव्य वह द्रव्य है जिसमें सूत्र कणिकाएं रहती है आपस में मिल जाते हैं सूत्र कोशिका है वह कोशिका है जिनकी जिनावलिया दाता तथा अदाता दोनों में से उत्प

डायबिटीज की दवा आयु को बढ़ाती है

टाइप टू डायबिटीज में उपयोग होने वाली दवा मेटफॉर्मिन के कारण आयु भी बढ़ती है यह दवा हृदय की बीमारियों एवं कैंसर को दूर रखती है जनरल डायबिटीज ओबेसिटी व मेटाबॉलिज में छपे शोध के अनुसार वैज्ञानिकों 1.8 lack लोगों पर साडे 5 साल तक अध्ययन किया शोधकर्ताओं के अनुसार सटीक निष्कर्ष पर पहुंचने के लिए यह अवधि बहुत कम है ब्रिटेन स्थित कार्डिफ़ यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर क्यूरी ने टाइप 2 डायबिटीज में उपयोग की जाने वाली दवा मेटफॉर्मिन पर शोध किया सामान्यता डायबिटीज के रोगियों पर खतरा मंडराता रहता है कि दवाई लेने पर साइड इफेक्ट आते हैं फिर इन्हें नियंत्रित करने के लिए रोगी को अपनी दिनचर्या में परिवर्तन करने के साथ ही स्थित दवाई भी खानी पड़ती है इस नवीन शोध के अनुसार टाइप टू डायबिटीज की है दवा शरीर में ग्लूकोज के स्तर को नियंत्रित रखती है इससे शरीर का मेटाबॉलिज्म अच्छा रहता है साथ ही यह दवा कैंसर और हृदय रोग को भी दूर रखती है

कामवासना का विज्ञान

#गुरुदेवकाअभौतकसत्ताकीज्ञानविज्ञानमण्डलीसेसमपर्क6 ********************************** परम श्रद्धेय ब्रह्मलीन गुरुदेव पण्डित अरुण कुमार शर्मा काशी की अध्यात्म-ज्ञानधारा में पावन अवगाहन  पूज्य गुरुदेव के श्रीचरणों में कोटि-कोटि नमN       महात्मा महाव्रत एक जटिल आध्यात्मिक विषय को कितनी सरलता से समझा रहे थे--यह मेरे लिए आश्चर्यजनक था। वे थोड़ा ठहरकर आगे बोले--भौतिक जगत् मिथुनजन्य है। उसकी सीमा में जितनी भी सृस्टि है, सब मैथुनी सृष्टि है। इसलिए कि मैथुनी जगत् में 'काम' प्रधान है। उसकी व्यापकता सर्वत्र है। उसका अस्तित्व कण-कण में है और एकमात्र यही कारण है कि उस पर विजय प्राप्त करना अथवा उससे परे होना अति कठिन कार्य है। कामवासना को हम जितना दबाएंगे, उतनी ही वह बढ़ेगी। भले ही हम जननेंद्रिय या कामेन्द्रिय का उपयोग न करें लेकिन हमारा जो मन है, हमारा जो चित्त है, वह सदैव कामवासना से भरा ही रहेगा। इसका एकमात्र कारण है कि हम शरीर से पूर्णतया जुड़े हुए हैं। यदि हमें कामवासना से मुक्त होना है तो दो बातों को सदैव याद रखें। पहली बात--मैं शरीर नहीं हूँ। दूसरी बात--मेरे भीतर जीवन की कामना नहीं ह

जीन में बदलाव से दूर होगी बीमारी

हीमोफीलिया जैसी जन्मजात बीमारी के आगे चिकित्सा जगत भी लाचार है लेकिन अब ऐसे असाध्य रोगों का इलाज मुश्किल नहीं होगा फिलाडेल्फिया स्थित चिल्ड्रन हॉस्पिटल के डॉक्टरों ने जून 2011 में geen में बदलाव कर पहली बार इन बीमारियों से लड़ने की क्षमता विकसित करने का दावा किया था  हालांकि उनका शोध शुरुआती दौर में है और उन्हें उन्हें यह सफलता चूहों के इलाज में मिली थी लेकिन शोधकर्ता आने वाले समय में के लिए इसी एक बड़ी उपलब्धि मान रहे हैं वैज्ञानिकों द्वारा विकसित की गई इस पद्धति को अनुवांशिक संपादन जिनोम एडिटिंग नाम दिया गया है शोधकर्ताओं का कहना है कि इस तकनीक से आनुवंशिक त्रुटियों में सुधार किया जाएगा जिससे आने वाली पीढ़ी में जन्मजात बीमारी होती है शोधकर्ताओं ने इस तकनीक का प्रयोग चूहों पर किया जो सफल भी रहा इसमें ऐसे चूहों को लिया गया जो हीमोफीलिया बी नामक अनुवांशिक बीमारी से ग्रसित थे इस जन्मजात बीमारी में खून का थक्का बनने की प्रक्रिया रुक जाती है ऐसे में एक बार चोट लगने या कटने पर खून लगातार बहता रहता है जुआ से ज्यादा खून बह जाने पर कई बार मौत भी हो जाती है वैज्ञानिकों ने हीमोफीलिया बी से ग्रसि

बायोनिक चश्मा की सहायता से देख रखेंगे दृष्टिहीन

 वैज्ञानिक ऐसे बायोनिक चश्मे को विकसित करने की राह पर है जिसके बारे में उनका दावा है कि जल्द ही बाजार में बिक्री के लिए उपलब्ध होंगी स्मार्ट चश्मा को ब्रिटेन स्थित ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों की एक टीम विकसित कर रही है यह चश्मे दृष्टिहीन लोगों के लिए देखने में मददगार होंगे इन चश्मे के फ्रेम के सिरे पर बेहद छोटे कैमरे लगे होते हैं और जेब में रखने वाला एक पॉकेट कंप्यूटर होता है यह दोनों चीजें दृष्टिहीन को आगे की चीजों और लोगों के बारे में सूचित करती हैं इस तरह के चश्मे बाजार में आने के बाद दृष्टिहीन लोग आसानी से व्यस्त इलाकों में सड़कों पर चल सकेंगे यहां तक की बस नंबर और सड़कों पर लगे संकेत चिन्ह को भी पढ़ सकेंगे इन चश्मा का सबसे अधिक लाभ वृद्ध लोगों को मिलेगा जो बढ़ती उम्र के कारण ठीक से देख नहीं पाते इससे पहले भी इस तरह के उपकरण बनाने के प्रयास हुए हैं लेकिन वे व्यावहारिक तौर पर सटीक नहीं बैठे लेकिन विकसित तकनीक के चलते बायोनिक चश्मे बनाना संभव हो पाया है जो करीब  चश्मों की ही तरह दिखेंगे

हानि रहित सिगरेट की खोज

ब्रिटिश वैज्ञानिकों ने दावा किया है कि उन्होंने ऐसे सुरक्षित सिगरेट का आविष्कार कर लिया है जो सेहत को किसी प्रकार का नुकसान नहीं पहुंचाएगी यह एक तरह का निकोटीन इनहेलर है जो सामान्य सिगरेट पीने जैसा अनुभव देगा लेकिन इसमें तंबाकू से जुड़ा कोई भी जोखिम नहीं होगा सिगरेट जैसे आकार के इस इनहेलर में किसी प्रकार का तंबाकू नहीं होगा और जब कोई इस का  कब पूछेगा तो यह सिगरेट की तरह जलेगा भी नहीं शोधकर्ताओं का कहना है कि यह किसी भी प्रकार से फेफड़ों को प्रदूषित नहीं करेगा निकोटीन का एहसास कराने वाला यह सिगरेट रूपी उपकरण आम सिगरेट की तरह ही दिखता है उसी तरह का एहसास देता है इसका आविष्कार ऑक्सफोर्ड के 28 वर्षीय ग्रेजुएट एलेक्स हरने ने किया है इस शोध पर ब्रिटेन के कई दौलत मन नहीं उसको ने पैसा लगाया है ब्रिटिश अमेरिकन टोबैको कंपनी जॉर्डन हिल कैंट लकी स्ट्राइकर और पाल माल जैसे लोकप्रिय ग्रेड ब्रांडों की निर्माता है सिगरेट का लाइसेंस लेने की दौड़ में शामिल है सिगरेट के अविष्कारक हरण अपने उत्पाद को लेकर ब्रिटेन के मेडिसिन एवं हेल्थकेयर प्रोडक्ट रेगुलर की एजेंसी से बातचीत करने वाले हैं ताकि इसे निकोटिन इनह

छिपकली के पूंछ की तरह उगेंगे मनुष्य के अंग

छिपकली भी अजीब प्राणी है उसकी पूंछ स्वम ही झड़ जाती है है और कुछ समय बाद पुनः उग जाती है वैज्ञानिको ने अब इस रहस्य को समझ लिया है वैज्ञानिको ने यह अनुवांशिक नुस्खा खोज निकला है जो छिपकली के अंग के पुनिर्माण के लिए कारक है वैज्ञानिको का कहना है की आनुवंशिक सामग्री के सही मात्रा में मिश्रण से यह संभव है छिपकली में पाए जाने वाले अंग पुनर्निर्माण के आनुवांशिक सामग्रियों के सही मात्रा का पता लगाकर उन्ही जीन को मानव कोशिका में प्रत्यारोपित कर उपास्थि मांसपेशी यहाँ तक ऋण की हड्डी की पुनर्संग्रचना भविस्य में सभव है एरिज़ोना स्टेट यूनिवर्सिटी के किनारो कुसमी ने कहा छिपकली में वही जीन होते है जो मनुस्यो में होते है ये मनुस्यो की शारीरिक संगरचना से मेल खाने वाला जीव है इससे विभिन्य पारकर की बीमारियों का इलाज संभव है