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मनोमय कोष की साधना

{{{ॐ}}}                                                 #  मन मे एक गुप्त शक्ति छिपी होती है यदि वह शक्ति मनोविकार,छल,छिद्र, लोभ, मोह, वश अनैतिक कार्य पाप कर्म की ओर प्रवृत्ति होती है तोअधोगति कारक है अत: उसे आध्यात्म की ओर मोडने से ही परमात्मा सी प्राप्ति होती है । गीता मे कहा गया है कि मन ही बंधन व मोक्ष का कारक है पतञ्जलि ऋषि ने कहा कि चित्त की वृत्तियों का निरोध  करना एकाग्र करना ही योग है । भगवान कृष्ण ने अर्जुन को मन वश मे करने के लिए दो उपाय बताये है:- १:- अभ्यास २:- वैराग्य । इनके द्वारा ऐषणा प्रकृति को रोककर ऋतम्भरा बुद्धि को अन्तरात्मा के आधीन किया जा सकता है। जिसे मनोयोग कहते है इसके अनन्तर:-- १, ध्यानयोग २, त्राटक ३, जप ४, तन्मात्रा साधन                                                               #ध्यानयोग ध्यान चुम्बक की तरह मन खीचकर एकाग्र करता है ध्यान के लिए आदर्शों को दिव्यरूप धारी देवताओं के रूप मानकर उनमे तन्मयता स्थापित करने का यौगिक विधान है । ऐसा भी हो सकता है। कि एक ही ईष्ट देव को आवश्यकतानुसार विभिन्न गुणो वाला मान लिया जाये। ईष्टदेव का मन क्षेत्र मे ध्यान करे

maha avatar baba ji sangrila ghati in himalaya

“Babaji was living in a little home in Banaras, when Shankaracharaya visited that city. Shankara at that time was a famous astrologer. Babaji’s manservant went therefore to see him. He received from Shankara the shocking news that, that very night, it was his destiny to die! In fear and trembling, on his return, he approached Babaji with the news.” “Go back,” said Babaji, ‘and say to him that you will not die tonight.’ “The servant carried this reply back to Swami Shankara, who affirmed. ‘This karma is so fixed that, should you survive it, I shall go to your master and ask him to accept me as his disciple.’ “That night, a terrible thunderstorm lashed the city. Lightening struck everywhere. It felled trees all around the house where Babaji lived. The great master stretched himself out over the servant’s body, to protect him. When morning came, the servant was still alive. He then went and presented himself to Shankara. The Swami was amazed. Realizing that he had encountered a power much

गूगल एक परिचय

यह कम्पनी स्टैनफोर्ड विश्वविद्यालय से पी॰एच॰डी॰ के दो छात्र लैरी पेज और सर्गेई ब्रिन द्वारा स्थापित की गयी थी। इन्हें प्रायः "गूगल गाइस"[7][8][9] के नाम से सम्बोधित किया जाता है। सितम्बर 4, 1998 को इसे एक निजि-आयोजित कम्पनी में निगमित किया गया। इसका पहला सार्वजनिक कार्य/सेवा 19 अगस्त 2004 को प्रारम्भ हुआ। इसी दिन लैरी पेज, सर्गेई ब्रिन और एरिक स्ख्मिड्ट ने गूगल में अगले बीस वर्षों (2024) तक एक साथ कार्य करने की रजामंदी की। कम्पनी का शुरूआत से ही "विश्व में ज्ञान को व्यवस्थित तथा सर्वत्र उपलब्ध और लाभप्रद करना" कथित मिशन रहा है। कम्पनी का गैर-कार्यालयीन नारा, जोकि गूगल इन्जीनियर पौल बुखीट ने निकाला था— "डोन्ट बी इवल (बुरा न बनें)"। सन् 2006 से कम्पनी का मुख्यालय माउंटेन व्यू, कैलिफोर्निया में है। गूगल विश्वभर में फैले अपने डाटा-केन्द्रों से दस लाख से ज़्यादा सर्वर चलाता है और दस अरब से ज़्यादा खोज-अनुरोध तथा चौबीस पेटाबाईट उपभोक्ता-सम्बन्धी जानकारी (डाटा) संसाधित करता है। गूगल की सन्युक्ति के पश्चात् इसका विकास काफ़ी तेज़ी से हुआ है, जिसके कारण कम्पनी की मू

अनाज से बनाया जाएगा एथेनाल

  गोरखपुर, उमेश पाठक। गोरखपुर औद्योगिक विकास प्राधिकरण (गीडा) में 100 करोड़ रुपये के निवेश से  एथेनाल बनाया जाएगा। इंडिया ग्लाइकाल्स लिमिटेड (आइजीएल) इसके लिए प्लांट स्थापित कर रहा है और अगले कुछ महीनों में उत्पादन शुरू हो जाने की उम्मीद है। इस प्लांट में गेहूं, चावल के साथ स्टार्च वाले अन्य अनाजों से एथेनाल तैयार किया जाएगा, जिससे किसानों को सीधा फायदा होगा। आइजीएल के इस प्लांट में हर वर्ष तीन करोड़ लीटर एथेनाल तैयार होगा। इतना एथेनाल बनाने में हर वर्ष करीब 90 हजार टन अनाज की जरूरत होगी। आइजीएल पूर्वांचल के किसानों से सीधे भी अनाज का क्रय कर सकता है। इस प्रक्रिया में खराब अनाज, चावल के टूटन का भी उपयोग किया जा सकता है। प्लांट में अनाज को पीसकर पानी मिलाया जाएगा। उसके बाद फर्मंटेंशन के जरिए एल्कोहल अलग किया जाएगा। किसानों से गेहूं खरीद के बाद गोदामों में अनाज रखने की जगह नहीं होती। भारतीय खाद्य निगम के गोदामों में गोरखपुर मंडल में करीब 2.75 लाख टन अनाज रखने की जगह है। मंडल में औसतन तीन लाख टन गेहूं जबकि 5.50 लाख टन धान की खरीद की जाती है। हर बार अनाज के भंडारण की समस्या होती है। उद्यमि

क्या महत्व है मृत संजीवनी मंत्र का

मृत संजीवनी मंत्र का महत्व ;- 06 FACTS;- 1-हमारे शास्त्रों और पुराणों में गायत्री मंत्र और महा मृत्युंजय मंत्र का सबसे अधिक महत्व है, इन दोनों मंत्र को बहुत बड़े मंत्रो में से एक माना जाता है क्यूंकि यह दोनों मंत्र से आपको सभी तरह के संकटों से मुक्ति मिल जाती है।हमारे शास्त्रों में ऐसे कई सारे उल्लेख मिलते है जिनमे यही दो मंत्र सबसे प्रमुख स्थान में आते है क्यूंकि इनसे अधिक शक्तिशाली और कोई मंत्र नहीं है।माना जाता है की कोई सच्चे दिल से निरंतर इस मंत्र का जाप करता है तो कई सारे बड़े-बड़े संकटों से आसानी से मुक्ति पायी जा सकती है।वैसे तो भगवान शिव के कई सारे मंत्र है पर अपनी सभी तरह की इच्छाओं को पूरी करने के लिए सबसे शक्तिशाली मंत्र है "महामृत्युंजय मंत्र"।शिवजी के मृत संजीवनी मंत्र में काल को भी रोकने की शक्ति है;जिसका जाप रावण करता था।मृत्युंजय मंत्र  पांच प्रकार के हैं- जो उपरोक्त चित्र में दिए है।पांचवा  संजीवनी मंत्र  का निम्न  महत्व है।  2-पांचवा  संजीवनी मंत्र (महामृत्युंजय गायत्री ) का महत्व...  महा मृत्युंजय मंत्र ... गायत्री मंत्र और महा मृत्युंजय मंत्र दोनों से मिल

विद्युत Electricity

विद्युत आवेशों के मौजूदगी और बहाव से जुड़े भौतिक परिघटनाओं के समुच्चय को विद्युत (Electricity) कहा जाता है।अर्थात् इसे न तो देखा जा सकता है व न ही छुआ जा सकता है केवल इसके प्रभाव के माध्यम से महसुस किया जा सकता है| विद्युत से जानी-मानी घटनाएं जुड़ी है जैसे कि तडित, स्थैतिक विद्युत, विद्युतचुम्बकीय प्रेरण, तथा विद्युत धारा। इसके अतिरिक्त, विद्युत के द्वारा ही वैद्युतचुम्बकीय तरंगो (जैसे रेडियो तरंग) का सृजन एवं प्राप्ति सम्भव होता है? वायुमण्डलीय विद्युत विद्युत के साथ चुम्बकत्व जुड़ी हुई घटना है।[1] विद्युत आवेश वैद्युतचुम्बकीय क्षेत्र पैदा करते हैं। विद्युत क्षेत्र में रखे विद्युत आवेशों पर बल लगता है। समस्त विद्युत का आधार इलेक्ट्रॉन हैं। क्योंकि इलेक्ट्रॉन हल्के होने के कारण ही आसानी से स्थानांतरित हो पाते हैं। इलेक्ट्रानों के हस्तानान्तरण के कारण ही कोई वस्तु आवेशित होती है। आवेश की गति की दर विद्युत धारा है। विद्युत के अनेक प्रभाव हैं जैसे चुम्बकीय क्षेत्र, ऊष्मा, रासायनिक प्रभाव आदि। जब विद्युत और चुम्बकत्व का एक साथ अध्ययन किया जाता ह

-व्यक्त और अव्यक्त चेतना क्या है

****************************** परम श्रद्धेय ब्रह्मलीन पण्डित अरुण कुमार शर्मा काशी की अद्भुत अध्यात्म-ज्ञानगंगा में पावन अवगाहन  -------: मनुष्य को व्यक्ति की संज्ञा क्यों दी गयी है ?:-------- ******************************       व्यक्त चेतना वह चेतना है जो किसी वस्तु, किसी पदार्थ या किसी अन्य साधन द्वारा व्यक्त (प्रकट) हो गयी हो। हमें मालूम होना चाहिए कि मानव पिण्ड में चेतना की सबसे अधिक अभिव्यक्ति (प्रकटीकरण)  होने के कारण ही मनुष्य को 'व्यक्ति' कहते हैं। तात्पर्य यह है कि जिसमें चेतना की अभिव्यक्ति सर्वाधिक है, वह मनुष्य ही 'व्यक्ति' कहलाता है।        अव्यक्त चेतना उसे कहते हैं, जो निराकार है, जो अनुभव के परे है और जो किसी वस्तु, पदार्थ या किसी अन्य साधन के द्वारा व्यक्त नहीं हुई हो।         वैज्ञानिक 'चेतना' के प्रश्न पर काफी लम्बे समय से अनुसन्धान करते आ रहे हैं और वे इस निष्कर्ष पर आ पहुंचे हैं कि हजारों साल पूर्व हमारे ऋषियों और मुनियों की तपस्या के परिणामस्वरूप जो निष्कर्ष सामने आये, वे असत्य नहीं हैं। वही धर्म की श्रेणी में रखे गए हैं। धर्म