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क्या महत्व है मृत संजीवनी मंत्र का


मृत संजीवनी मंत्र का महत्व ;-

06 FACTS;-

1-हमारे शास्त्रों और पुराणों में गायत्री मंत्र और महा मृत्युंजय मंत्र का सबसे अधिक महत्व है, इन दोनों मंत्र को बहुत बड़े मंत्रो में से एक माना जाता है क्यूंकि यह दोनों मंत्र से आपको सभी तरह के संकटों से मुक्ति मिल जाती है।हमारे शास्त्रों में ऐसे कई सारे उल्लेख मिलते है जिनमे यही दो मंत्र सबसे प्रमुख स्थान में आते है क्यूंकि इनसे अधिक शक्तिशाली और कोई मंत्र नहीं है।माना जाता है की कोई सच्चे दिल से निरंतर इस मंत्र का जाप करता है तो कई सारे बड़े-बड़े संकटों से आसानी से मुक्ति पायी जा सकती है।वैसे तो भगवान शिव के कई सारे मंत्र है पर अपनी सभी तरह की इच्छाओं को पूरी करने के लिए सबसे शक्तिशाली मंत्र है "महामृत्युंजय मंत्र"।शिवजी के मृत संजीवनी मंत्र में काल को भी रोकने की शक्ति है;जिसका जाप रावण करता था।मृत्युंजय मंत्र  पांच प्रकार के हैं- जो उपरोक्त चित्र में दिए है।पांचवा  संजीवनी मंत्र  का निम्न  महत्व है। 
2-पांचवा  संजीवनी मंत्र (महामृत्युंजय गायत्री ) का महत्व...

 महा मृत्युंजय मंत्र ... गायत्री मंत्र और महा मृत्युंजय मंत्र दोनों से मिलकर बना है।माना जाता है की इसी मंत्र से किसी मृत व्यक्ति को भी दुबारा जीवित किया जा सकता है, यानि कि  इसी मंत्र से कई सारे बड़े-बड़े रोगों और संकटों से मुक्ति मिल जाती है, इसे ही शुक्राचार्य द्वारा आराधित महामृत्युंजय मंत्र कहा जाता है।दैत्यगुरु शुक्राचार्य ने इन दोनों मंत्रों को मिलाकर एक अन्य मंत्र मृत संजीवनी मंत्र का निर्माण किया था। इस मंत्र को संजीवनी विद्या के नाम से जाना जाता है।इस मंत्र के जप से असाध्य रोग कैंसर, क्षय, टाइफाइड, हैपेटाइटिस बी, गुर्दे, पक्षाघात, ब्रेन ट्यूमर जैसी बीमारियों को दूर करने में भी मदद मिलती है। इस मंत्र का प्रतिदिन विशेषकर सोमवार को 101 जप करने से सामान्य व्याधियों के साथ ही मानसिक रोग, डिप्रैशन व तनाव आदि दूर किए जा सकते हैं। इतना ही नहीं मृत्युंजय जप व हवन से शनि की साढ़ेसाती, वैधव्य दोष, नाड़ी दोष, राजदंड, अवसादग्रस्त मानसिक स्थिति, चिंता व चिंता से उपजी व्यथा को कम किया जा सकता है।

3-यह शाश्वत सत्य है कि जिसका जन्म हुआ है, उसकी मृत्यु निश्चित है। किंतु हमें वेद, पुराण तथा अन्य शास्त्रों में मृत्यु के पश्चात पुनः जीवित होने के वृत्तांत मिलते हैं। गणेश का सिर काट कर हाथी का सिर लगा कर शिव ने गणेश को पुनः जीवित कर दिया।
भगवान शंकर ने ही दक्ष प्रजापति का शिरोच्छेदन कर वध कर दिया था और पुनः अज (बकरे) का सिर लगा कर उन्हें जीवन दान दे दिया। सगर राजा के साठ हजार पुत्रों को पुनर्जीवित करने के लिए राजा भगीरथ सैकड़ों वर्ष तपस्या करके गंगा को स्वर्ग से पृथ्वी पर लाए और सागर पुत्रों को जीवन प्राप्त हुआ।ऐसे अनगिनत वृत्तांत शास्त्रों में मिलते हैं जिससे स्पष्ट होता है कि भगवान शिव, जो महामृत्युंजय भगवन भी कहलाते हैं, रोग, संकट, दारिद्र्य, शत्रु आदि का शमन तो करते ही हैं, जीवन तक प्रदान कर देते हैं। 

4-महर्षि वशिष्ठ, मार्कंडेय और शुक्राचार्य महामृत्युंजय मंत्र के साधक और प्रयोगकर्ता हुए हैं। ऋषि मार्कंडेय ने महामृत्युंजय मंत्र के बल पर अपनी मृत्यु को टाल दिया था, यमराज को खाली हाथ वापस यमलोक जाना पड़ा था। लंकापति रावण भी महामृत्युंजय मंत्र का साधक था। इसी मंत्र के प्रभाव से उसने दस बार अपने नौ सिर काट कर उन्हें अर्पित कर दिए थे।शुक्राचार्य के पास दिव्य महामृत्युंजय मंत्र था जिसके प्रभाव से वह युद्ध में आहत सैनिकों को स्वस्थ कर देते थे और मृतकों को तुरंत पुनर्जीवित कर देते थे।शुक्राचार्य ने रक्तबीज नामक राक्षस को महामृत्युंजय सिद्धि प्रदान कर युद्धभूमि में रक्त की बूंद से संपूर्ण देह की उत्पत्ति कराई थी।महामृत्युंजय मंत्र के प्रभाव से गुरु द्रोणाचार्य को अश्वत्थामा की प्राप्ति हुई थी, जिसके बारे में धारणा है कि वह आज भी जीवित है तथा उसे उसी देह में नर्मदा नदी के किनारे घूमते कई लोगों ने देखा है।माना जाता है की कोई सच्चे मन से निरंतर इस मंत्र का जाप करता है तो कई सारे बड़े-बड़े संकटों से आसानी से मुक्ति पायी जा सकती है।
5-इस मंत्र का नाम मृत संजीवनी मंत्र है,....

“ऊँ हौं जूं स: ऊँ भूर्भुव: स्व: ऊँ ˜त्र्यंबकंयजामहे ऊँ तत्सर्वितुर्वरेण्यं ऊँ सुगन्धिंपुष्टिवर्धनम

ऊँ भर्गोदेवस्य धीमहि ऊँ उर्वारूकमिव बंधनान ऊँ धियो योन: प्रचोदयात

ऊँ मृत्योर्मुक्षीय मामृतात ऊँ स्व: ऊँ भुव: ऊँ भू: ऊँ स: ऊँ जूं ऊँ हौं ऊँ”.......इस मंत्र का अर्थ है..'' हम भगवान शंकर की पूजा करते हैं, जिनके तीन नेत्र हैं, जो प्रत्येक श्वास में जीवन शक्ति का संचार करते हैं, जो सम्पूर्ण जगत का पालन-पोषण अपनी शक्ति से कर रहे हैं... उनसे हमारी प्रार्थना है कि वे हमें मृत्यु के बंधनों से मुक्त कर दें, जिससे मोक्ष की प्राप्ति हो जाए... जिस प्रकार एक ककड़ी अपनी बेल में पक जाने के उपरांत उस बेल-रूपी संसार के बंधन से मुक्त हो जाती है, उसी प्रकार हम भी इस संसार-रूपी बेल में पक जाने के उपरांत जन्म-मृत्यु के बन्धनों से सदा के लिए मुक्त हो जाएं, तथा आपके चरणों की अमृतधारा का पान करते हुए शरीर को त्यागकर आप ही में लीन हो जाएं।  

 6-मृत संजीवनी मंत्र की पूजा और जप कैसे करना है?-

07 POINTS;-

1-सबसे पहले तो आपको की सुबह भगवान शिव की पूजा-अर्चना करनी है और फिर इस मंत्र का 108 बार जाप करना है।वैदिक ज्योतिष के अनुसार श्री मृत संजीवनी पूजा का प्रयोग आसमयिक आने वाली मृत्यु को टालने के लिए, लंबी आयु के लिए, स्वास्थ्य के लिए तथा गंभीर कष्टों से मुक्ति पाने के लिए किया जाता है तथा इस पूजा को विधिवत करने वाले अनेक जातक अपने जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में अनेक प्रकार के लाभ प्राप्त कर पाने में सफल होते हैं। श्री मृत संजीवनी पूजा का आरंभ शुक्ल पक्ष में किसी भी सोमवार या सामान्यतया सोमवार वाले दिन किया जाता है तथा उससे अगले सोमवार को इस पूजा का समापन कर दिया जाता है। इस पूजा को पूरा करने के लिए सामान्यता 7 दिन लगते हैं किन्तु कुछ स्थितियों में यह पूजा 7 से 10 दिन तक भी ले सकती है जिसके चलते सामान्यतया इस पूजा के आरंभ के दिन को बदल दिया जाता है तथा इसके समापन का दिन सामान्यतया सोमवार ही रखा जाता है।
2-किसी भी प्रकार की पूजा को विधिवत करने के लिए सबसे महत्वपूर्ण है उस पूजा के लिए निश्चित किये गए मंत्र का एक निश्चित संख्या में जाप करना तथा यह संख्या अधिकतर पूजाओं के लिए 125,000 मंत्र होती है तथा श्री मृतसंजीवनी पूजा में भी श्री मृतसंजीवनी मंत्र का 125,000 बार जाप करना अनिवार्य होता है। इस संकल्प के पश्चात सभी पंडित अपने यजमान अर्थात जातक के लिए श्री मृत संजीवनी मंत्र का जाप करना शुरू कर देते हैं तथा प्रत्येक पंडित इस मंत्र के जाप को प्रतिदिन लगभग 8 से 10 घंटे तक करता है जिससे वे इस मंत्र की 125,000 संख्या के जाप को संकल्प के दिन निश्चित की गई अवधि में पूर्ण कर सकें।भयंकर बीमारियों के लिए मृत्युंजय मंत्र के सवा लाख जप व उसका दशमांश का हवन करवाना उत्तम रहता है। प्राय: हवन के समय अग्निवास, ब्रह्मचर्य पालन, सात्विक भोजन व विचार, शिव पर पूर्ण श्रद्धा व भक्तिभाव पर विशेष ध्यान रखना चाहिए। जप के बाद बटुक भैरव स्तोत्र का पाठ व इस दौरान घी का दीपक प्रज्ज्वलित रखना चाहिए। जप के साथ हवन व तर्पण और मार्जन के साथ ही साथ हवन की समाप्ति में ब्राह्मणों को भोजन करवा कर दान देना उत्तम माना गया है।जप व हवन का कार्य चैत्र मास में किसी पवित्र तीर्थ स्थल, शिवालय, नदी, सरोवर, पर्वतादि के पास शिवलिंग बनाकर करना चाहिए। महामृत्युमञ्जय मंत्र/ "मृत्यु को जीतने वाला महान मंत्र" की भक्ति में अविश्वास की कोई जगह नहीं होती।  
 3-यहां पर यह बात ध्यान देने योग्य है कि श्री मृत संजीवनी पूजा जातक की अनुपस्थिति में भी की जा सकती है तथा जातक के व्यक्तिगत रूप से उपस्थित होने की स्थिति में इस पूजा में जातक की तस्वीर अर्थात फोटो का प्रयोग किया जाता है जिसके साथ साथ जातक के नाम, उसके पिता के नाम तथा उसके गोत्र आदि का प्रयोग करके जातक के लिए इस पूजा का संकल्प किया जाता है। इस संकल्प में यह कहा जाता है कि जातक किसी कारणवश इस पूजा के लिए व्यक्तिगत रूप से उपस्थित होने में सक्षम नहीं है जिसके चलते पूजा करने वाले पंडितों में से ही एक पंडित जातक के लिए जातक के द्वारा की जाने वाली सभी प्रक्रियाओं पूरा करने का संकल्प लेता है तथा उसके पश्चात पूजा के समाप्त होने तक वह पंडित ही जातक की ओर से की जाने वाली सारी क्रियाएं करता है जिसका पूरा फल संकल्प के माध्यम से जातक को प्रदान किया जाता है। 
4-महामृत्युंजय मंत्र में जहां हिंदू धर्म के सभी 33 देवताओं (8 वसु, 11 रूद्र, 12 आदित्य, 1 प्रजापति तथा 1 वषट तथा ऊँ) की शक्तियां शामिल हैं।वहीं गायत्री मंत्र प्राण ऊर्जा तथा आत्मशक्ति को चमत्कारिक रूप से बढ़ाने वाला मंत्र है। विधिवत रूप से संजीवनी मंत्र की साधना करने से इन दोनों मंत्रों के संयुक्त प्रभाव से व्यक्ति में कुछ ही समय में विलक्षण शक्तियां उत्पन्न हो जाती है।यदि वह नियमित रूप से इस मंत्र का जाप करता रहे तो उसे अष्ट सिद्धिया, नवनिधिया मिलती हैं तथा मृत्यु के बाद उसका मोक्ष हो जाता है।वैसे तो भगवान शिव के कई सारे मंत्र है पर अपनी सभी तरह की इच्छाओं को पूरी करने के लिए सबसे शक्तिशाली मंत्र है "महामृत्युंजय मंत्र"  ।महामृत्युञ्जय मंत्र यजुर्वेद के रूद्र अध्याय स्थित एक मंत्र है, यह श्लोक यजुर्वेद में भी आता है ।इसमें शिव की स्तुति की गयी है। शिव को 'मृत्यु को जीतने वाला' माना जाता है। यह मंत्र सर्वाधिक फल देने वाला माना गया है।
5-संजीवनी मंत्र के जाप में निम्न बातों का ध्यान रखें
(1) जपकाल के दौरान पूर्ण रूप से सात्विक जीवन जिएं।
(2) मंत्र के दौरान साधक का मुंह पूर्व दिशा की ओर होना चाहिए।
(3) इस मंत्र का जाप शिवमंदिर में या किसी शांत एकांत जगह पर रूद्राक्ष की माला से ही करना चाहिए।
(4) मंत्र का उच्चारण बिल्कुल शुद्ध और सही होना चाहिए साथ ही मंत्र की आवाज होठों से बाहर नहीं आनी चाहिए।
(5) जपकाल के दौरान व्यक्ति को  काम ,मांस तथा शराबअन्य सभी तामसिक चीजों से दूर रहना चाहिए। उसे पूर्ण ब्रह्मचर्य के साथ रहते हुए अपनी पूजा करनी चाहिए।
6-क्यों नहीं करना चाहिए... महामृत्युंजय गायत्री (संजीवनी) मंत्र का जाप?-
 आध्यात्म विज्ञान के अनुसार संजीवनी मंत्र के जाप से व्यक्ति में बहुत अधिक मात्रा में ऊर्जा पैदा होती है जिसे हर व्यक्ति सहन नहीं कर सकता, परिणामत: आदमी या तो कुछ सौ जाप करने में ही पागल हो जाता है तो उसकी मृत्यु हो जाती है। इसे गुरू के सान्निध्य में सीखा जाता है और धीरे-धीरे अभ्यास के साथ बढ़ाया जाता है। इसके साथ कुछ विशेष प्राणायाम और अन्य यौगिक क्रियाएं भी सिखनी होती है ताकि मंत्र से पैदा हुई असीम ऊर्जा को संभाला जा सके। 

7-कितनी बार महामृत्युञ्जय मंत्र बोलने पर क्या हो जाता है?-

शिव पुराण के मुताबिक महामृत्युञ्जय मंत्र के एक लाख जप करने पर शरीर हर तरह से पवित्र हो जाता है। यानी सारे दर्द, रोग या कलह दूर हो जाते हैं। दो लाख मंत्र जप पूरे होने पर पूर्वजन्म की बातें याद आ जाती हैं। तीन लाख मंत्र जप पूरे होने पर सभी मनचाही सुख-सुविधा और वस्तुएं मिल जाती है। चार लाख मंत्र जप पूरे होने पर भगवान शिव सपनों में दर्शन देते हैं। पांच लाख महामृत्युञ्जय मंत्र पूरे होते ही भगवान शिव तुरंत ही भक्त के सामने प्रकट हो जाते हैं। 

 मृत संजीवनी मंत्र साधना का विज्ञान;-

इस साधना से मूलाधार, मणिपुर, अनाहत और आज्ञा चक्रों की सक्रियता बढ़ती है। कुंडलिनी का जागरण होता है तथा पंचतत्वों के साथ शिवतत्व का जागरण होता है। इसकी सफलता के लिये जरूरी है कि साधक का सूक्ष्म शरीर सकारात्मक ब्रह्मांडीय उर्जा के साथ सीधे जुड़ जाये और वहां से दिव्य संजीवनी शक्ति को ग्रहण करके अपने भीतर धारण करे ।इसके लिये साधक अपनी साधना शक्तियों का उपयोग करे ।सुबह 7 बजे से 10 मिनट पहले साधना हेतु बैठें। साधना से पहले नमक के पानी से स्नान कर लें।आपकी सारी नकारात्मक ऊर्जा का विनाश हो जाएगा और पॉजिटिविटी का संचार होगा। इसके अतिरिक्त साधना के बाद दो घंटे तक स्नान भी नही करना चाहिये। 7 बजे तक 10 मिनट का कोई योग या एक्सरसाइज करें... यह अनिवार्य है। किसी कारण कोई योग या एक्सरसाइज न कर सकें तो 5 मिनट ताली बजायें, और 5 मिनट खड़े होकर दोनों हाथों को ऊपर ऊठाते हुए हर हर महादेव बोलें। योग या एक्सरसाइज के बाद आराम से बैठ जायें। नीचे बैठने में दिक्कत हो तो कुर्सी आदि पर बैठें। मगर जिस पलंग पर सोते हैं उस पर न बैठें। 7 बजे साधना आरम्भ करें। 

साधना के स्टेप;-

05  POINTS;-

1-भगवान शिव को साक्षी बनायें. कहें- हे शिव आप मेरे गुरू हैं मै आपका/ आपकी शिष्य हूं, मुझ शिष्य पर दया करें। आपको साक्षी बनाकर मै  अमृत संजीवनी साधना सम्पन्न कर रहा/रही हूं। इसकी सफलता हेतु मुझे दैवीय सहायता और सुरक्षा प्रदान करें। 

2-भगवान शिव  का फोटो सामने रखें... फोटो को एकटक देखते रहें। उनके माथे के बीच तीसरे नेत्र का प्रतीक हल्का बिंदु दिखेगा। उसी पर अपनी नजरें टिकाये रखें।  

3-दोनों हाथों में मृत संजीवनी मुद्रा बनायें। मुद्रा में हाथ की तर्जनी (इंडेक्स फिंगर) को मोड़कर अंगूठे की जड़ में दबा लेना है।  तर्जनी उंगुली को मोड़कर अंगूठे की जड़ में लगाकर और मध्यम और अनामिका अंगुली के अग्र भाग को अंगूठे के अग्रभाग से मिलाएं। सबसे छोटी अंगुली को सीधा रखें ऐसे मृत संजीवनी मुद्रा बनती है। इस मुद्रा में दो मुद्राएं बनती हैं—वायु मुद्रा और अपान मुद्रा। इसलिए इस मुद्रा को अपान वायु मुद्रा भी कहते हैं।  

 4- ऊं ह्रौं जूं सः मंत्र के साथ 10 संजीवनी प्राणायाम करें। इसके लिये ऊं ह्रौं का जप करते हुए सांस को धीरे धीरे भीतर खींचें  और जूं सः का जप करते हुए सांस को धीरे धीरे बाहर निकालें। सांस को अंदर लेने और बाहर निकालने के बीच कुछ क्षण रुकें। इसी तरह सांस निकालने और दोबारा खींचने के बीच भी कुछ क्षण रुकें। संजीवनी प्राणायाम से उर्जा चक्रों और पंच तत्वों का जागरण होता है। आभामंडल  सकारात्मक उर्जाओं से भर जाता है। जर्जर शरीर भी कायाकल्प की तरफ बढ़ जाते हैं। 

5- संजीवनी प्राणायाम के बाद आंखें बंद कर लें. हाथों में मृत संजीवनी मुद्रा बनाये रखें। रिलैक्स होकर बैठें और  अविचलित रूप से मृत संजीवनी मंत्र जप करते रहें। शिव धनदा मंत्र जीवन में लक्ष्मी सुख व्याप्त करने में सक्षम है..'' ऊं शं शंकराय धनम् देहि देहि ऊं ''का जप भी कर  सकते हैं।संजीवनी प्राणायाम के बाद इन मंत्र का प्रभाव कई गुना बढ़ जाता है।  इससे मान-सम्मान प्रतिष्ठा और व्यक्तित्व का आकर्षण भी बढ़ता है। मंत्र जप पूरा होने पर आंखें खोल लें। तन,मन,धन के सुखों के लिये भगवान शिव को धन्यवाद दें। धरती मां को  ,दिव्य संजीवनी शक्ति को धन्यवाद दें। फिर ऊं इंद्राय नमः कहकर उठ जायें। जो लोग किसी कारण वश सुबह 7 बजे की साधना नही कर सकते; वे  रुद्राक्ष धारण करके साधना करें। जिससे दिन -रात में किसी भी टाइम साधना की जा सकती है।उसमें समय का बंधन नही। 

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