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परम श्रद्धेय ब्रह्मलीन गुरुदेव पण्डित अरूण कुमार शर्मा काशी की अध्यात्म-ज्ञानगंगा में पावन अवगाहन
पूज्यपाद गुरुदेव के श्रीचरणों में कोटि-कोटि नमन
(आजकल सोशल मीडिया, व्हाट्स एप और फेसबुक पर ध्यान, तंत्र, मंत्र, और यंत्र, कुण्डलिनी-जागरण, धन-प्राप्ति की लालसा के लिए तंत्र में उपाय, भूत-बाधा आदि भगाने के लिए तंत्र-मंत्र के अनुष्ठान कर् समाधान किये जाने के लिए बाढ़-सी आयी हुई है। अक्सर व्यक्ति का ध्यान नहीं लग पाता है, कैसे लगेगा ध्यान--यही जिज्ञासा लेकर सवाल करते रहते है और खास तौर से बॉक्स में आकर जरूर 'हाय हेलो' कहते हैं। वे ध्यान करने के चक्कर में प्राणशक्ति को बढ़ाने के लिए प्राणायाम की बिलकुल ही उपेक्षा कर देते हैं। अनेक बार बॉक्स में सार्वजानिक हित चिन्तन के विषय पर प्रश्न करने के लिए मैंने साफ मना किया हुआ है, फिर भी लोग अपनी प्रकृति और आदत के अनुसार ध्यान नहीं देते हैं। मैंने लोगों को अपनी कोई व्यक्तिगत समस्या रखने और उसका समाधान प्राप्त करने के लिए स्पष्ट मना कर् रखा है। इस पोस्ट में ध्यान-साधना या योग-साधना के लिए प्राण-शक्ति की महत्ता और उसकी उपयोगिता पर चर्चा करना उपयुक्त समझा है क्योंकि कोई भी व्यक्ति सीधे साधना की अन्तिम सीढ़ी 'ध्यान और समाधि' को उपलब्ध् नही हो सकता।
मानव शरीर पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और आकाश तत्व के सूक्ष्म अणुओं से निर्मित है और साथ ही यह जगत् भी। तो ध्यान साधना करने के रास्ते पर आगे बढ़ने के लिए पहले हमें अपने भौतिक शरीर को स्वस्थ रखने की परम आवश्यकता है जिसके अस्वस्थ होने की दशा में कोई भी साधना सम्भव नहीं है। इसीलिए पातंजल योगसूत्र के अष्टांग योग में सर्वप्रथम यम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार और फिर उसके बाद ही धारणा, ध्यान समाधि का वर्णन आया है।
पहले पांच बहिरंग उपाय हैं जिनसे हमारी स्थूल काया निरीगी होने के साथ-साथ निर्मल भी रहे। इन उपायों से हमारा 'अन्नमय कोश' शुद्ध और ऊर्जावान बन जाता है। उसके बाद आते हैं अंतरंग उपाय पर जो धारणा, ध्यान के द्वारा फलीभूत होते हैं। अन्त में आती है समाधि जो गहनतम ध्यान की स्थिति में घटित होती है। यह साधना जन्म-जन्मान्तर में जाकर कहीं पूर्णता को प्राप्त होती है।
यम, नियम, आसन से जहाँ अन्नमय कोश ऊर्जावान बनता है, वहीँ प्राणायाम के माध्यम से हमारा प्राणमय कोश ऊर्जस्वित् होता है। प्राण शरीर प्राणमय कोश से निर्मित होने के कारण अन्नमय शरीर की तुलना में कई गुना अधिक शक्तिशाली होता है। इस पोस्ट में हम प्राणशक्ति क्या है--इस विषय पर चर्चा करेंगे)
जिस प्रकार भौतिक विज्ञान के मूल में विद्युत-शक्ति है, उसी प्रकार योग-विज्ञान के मूल में है-- प्राण-शक्ति। प्राण और श्वास का अपना विज्ञान है जो योग-शास्त्र पर आधारित है। प्राण का विषय अत्यन्त रहस्यमय और जटिल भी है।
वैदिक विज्ञान के अनुसार गहरा श्वास लेने पर शरीर के भीतर ऑक्सीजन और कार्बन डाई ऑक्साइड की मात्रा में परिवर्तन हो जाता है, उसके अनुपात में परिवर्तन हो जाता है। अनुपात के इस परिवर्तन का साधना में क्या प्रभाव पड़ता है ?--यह जानना-समझना अति आवश्यक है।
प्रकृति के ऑक्सीजन और कार्बन डाई ऑक्साइड ये दो मूल तत्व हैं और इन्हीं दोनों तत्वों के बीच जीवन और मृत्यु का खेल चलता है। एक का परिणाम 'जीवन' है और दूसरे का परिणाम है--'मृत्यु'। जब शरीर के भीतर ऑक्सीजन की मात्रा धीरे-धीरे कम हो जाती है तो अन्त में शेष रह जाता है--कार्बन डाई ऑक्साइड जिसका अर्थ है--मृत्यु। sabhar siyaram sharam Facebookwal
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