हमारे पौराणिक एवं धार्मिक पुस्तको मे अनन्त सृष्टि की कल्पना की गयी है हमारे पौराणिक एवं धार्मिक पुस्तको मे अनन्त सृष्टि की कल्पना की गयी है विज्ञान भी अब एक से ज्यादे विश्व को मानने लगा है | राजर पेनरोज़ जो की गणितग्य है लेकिन खगौल विज्ञान मे उनका महत्वा पूर्ण योगदान है |उन्होने अपनी पिछली पुस्तक "द एम्पर्स न्यू माएंड " मस्तिष्क और चेतना को लेकर थी , जी बहूत चर्चित हुई थी |उनकी नयी किताब " साएकल्स आफ टाईम : एन एक्सट्रा आर्डनरी न्यू आफ द यूनिवर्स " मे नयी अवधारणा के मुताबिक ब्रमांड अनन्त है वह कभी नष्ट नहीं होता उसमे उसमे अनन्त कल्पो के चक्र एक के बाद आते रहते है आम तौर पर विज्ञान मे प्रचलित है की सृष्टि का आरंभ एक विग बैक या बड़े विस्फोट से हुई है , इसके बाद ब्रमांड फैलता गया जो अब भी फैल रहा है एक समय के बाद ब्रमांड के फैलने की उर्जा समाप्त हो जायेगी और ब्रमांड पुनः छोटे से बिन्दु पे आ जायेगी | पेनरोज़ की अवधारणा इससे विल्कुल अलग है वह समय के चक्र की अवधारणा सामने रखते है उनका कहना है की एक 'एओन ' या कल्प की समाप्ति ब्रमांड की ऊर्जा खत्म होने के साथ होती है पर ब्रमांड सिकुड़ कर खत्म नहीं हो जाता ऊर्जा खत्म होने से ब्रमांड की मास या द्रब्यमान समाप्त हो जाता है, द्रब्यमान समाप्त होने से समय काल मे कोई भेद नहीं रह जाता |जब मास ही नहीं होता तो भूत भविष्य , छोटा बड़ा ये सारी अवधारणाये खत्म हो जाती है एक अर्थ मे ब्रमांड की अपनी विशालता की स्मृति खत्म हो जाती है , तब यह अंत अगले बिग बैंक की शुरूआत होती है |और यह अनन्त काल तक जारी रहता है इसके लिये उन्होने कयी प्रमाण दिये है हालांकि वो कहते है की इसमे अभी और काम करने की आवश्कता है क़्वाण्टम मेकेनिक्स से भी से भी अनेक सृष्टि की अवधारणा मिलती है भौतिक के स्ट्रिंग सिधांत के अनुसार चार आयाम के अलावा भी कई आयाम है ये सारे आयाम हमारी दुनिया मे कयी दुनिया बनाते है और इन दुनियाओ का आपस मे सम्बंध गुरुत्वा कर्षण के कारण होता है | जो तमाम स्तरों पर एक ही होता है तो केया वैज्ञान कही ना कही इस्वर की अवधारणा को स्वीकार तो नहीं कर रहे स्वय विचार करे |
by akhilesh pal
? ॐ सह नाववतु । सह नौ भुनक्तु । सह वीर्यं करवावहै । तेजस्वि नावधीतमस्तु मा विद्विषावहै । ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः ॥ अर्थ :'' हे! परमेश्वर ,हम शिष्य और आचार्य दोनों की साथ-साथ रक्षा करें। हम दोनों (गुरू और शिष्य) को साथ-साथ विद्या के फल का भोग कराए। हम दोनों एकसाथ मिलकर विद्या प्राप्ति का सामर्थ्य प्राप्त करें। हम दोनों का पढ़ा हुआ तेजस्वी हो। हम दोनों परस्पर द्वेष न करें''। ''सौंदर्य लहरी''की महिमा ;- 17 FACTS;- 1-सौंदर्य लहरी (संस्कृत: सौन्दरयलहरी) जिसका अर्थ है “सौंदर्य की लहरें” ऋषि आदि शंकर द्वारा लिखित संस्कृत में एक प्रसिद्ध साहित्यिक कृति है। कुछ लोगों का मानना है कि पहला भाग “आनंद लहरी” मेरु पर्वत पर स्वयं गणेश (या पुष्पदंत द्वारा) द्वारा उकेरा गया था। शंकर के शिक्षक गोविंद भगवदपाद के शिक्षक ऋषि गौड़पाद ने पुष्पदंत के लेखन को याद किया जिसे आदि शंकराचार्य तक ले जाया गया था। इसके एक सौ तीन श्लोक (छंद) शिव की पत्नी देवी पार्वती / दक्षिणायनी की सुंदरता, कृपा और उदारता की प्रशंसा करते हैं।सौन्दर्यलहरी/शाब्दिक अर्थ सौन्दर्य का
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