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क्या हैं शिव और शक्ति के अर्धनारीश्वर स्वरूप की महिमा

क्या हैं शिव और शक्ति के अर्धनारीश्वर स्वरूप की महिमा और क्या महत्व है -'' प्रार्थना और प्रतीक्षा'' का?PART-01
 कौन है परब्रह्म ?

05 FACTS;-

1-हिन्दू शास्त्रों  के अनुसार ईश्वर एक है...उस परमतत्व को हम ब्रह्म, परात्पर शिव या परब्रह्म कहते है।इस सृष्टि को चलाने के के लिए दो वस्तुएँ जरूरी है,एक आधार और दूसरी शक्ति या प्रकृति, शिव आधार है और शक्ति वो ऊर्जा है जो इस  संसार को चलाती है... अलग अलग प्रकृति के स्वरूप से ।

2-शिव-शक्ति का संयोग ही परमात्मा (परब्रह्म) है।जब मनुष्य ईश्वर की और मुड़ता है और अपनी चेतना का स्तर ऊपर उठाता जाता है तब वो बाहर की दुनिया की सारी विविधता को अपने अंदर समाता जाता है, और वो एकत्व या अद्वैत की और बढ़ता जाता है। 

3-सत्-चित् और आनन्द–ईश्वर के तीन रूप हैं। इनमें सत्स्वरूप उनका मातृस्वरूप है, चित्स्वरूप उनका पितृस्वरूप है और उनके आनन्दस्वरूप के दर्शन अर्धनारीश्वररूप में ही होते हैं, जब शिव और शक्ति दोनों मिलकर पूर्णतया एक हो जाते हैं। सृष्टि के समय परम पुरुष अपने ही वामांग से प्रकृति को निकालकर उसमें समस्त सृष्टि की उत्पत्ति करते हैं। शिव गृहस्थों के ईश्वर और विवाहित दम्पत्तियों के उपास्य देव हैं क्योंकि अर्धनारीश्वर शिव स्त्री और पुरुष की पूर्ण एकता की अभिव्यक्ति हैं।

4-संसार की सारी विषमताओं से घिरे रहने पर भी अपने मन को शान्त व स्थिर बनाये रखना ही योग है। भगवान शिव अपने पारिवारिक सम्बन्धों से हमें इसी योग की शिक्षा देते हैं। अपनी धर्मपत्नी के साथ पूर्ण एकात्मकता अनुभव कर, उसकी आत्मा में आत्मा मिलाकर ही मनुष्य आनन्दरूप शिव को प्राप्त कर सकता है।

 5-भगवान शिव कहते है ''जहाँ ना अमृत, ना विष। ना सुख, ना दुःख। ना स्वर्ग, ना नर्क। वहीँ परम आनंद है। उसी परम आनंद तक की यात्रा है तुम्हारी। यह यात्रा आनंद के सानिध्य की है। यह यात्रा सानिध्य के आनंद की है। इस यात्रा में; मैं प्रतिपल तुम्हारे साथ हूँ। मुझे ढूंढो मत, केवल पहचानो। तुम ही, मैं हूँ और मैं ही तुम। हर आरम्भ का मैं ही अंत हूँ और हर अंत का मैं ही आरम्भ हूँ।''

क्या अर्थ है ''शिव’' मंत्र का?-

06 FACTS;-

1-जीवन की बहुत गहन समझ के साथ हम उस ध्वनि या शब्द तक पहुंचे हैं, जिसे हम ‘शिव’ कहते हैं। इसका मानवीकरण / कहानी सिर्फ आपको इसके कई आयामों के बारे में समझाने के लिए है।इस ध्वनि में इतनी शक्ति है कि इसका... आपके ऊपर असाधारण असर हो सकता है।

2-यदि आपमें किसी चीज को ग्रहण करने की अच्छी क्षमता है, तो ये समझिए कि यह ध्वनि- शिव, आपके लिए एक विस्फोटक की तरह काम कर सकती है, सिर्फ एक उच्चारण आपके भीतर बहुत शक्तिशाली तरीके से विस्फोट कर सकता है।यह एक विज्ञान है जिसे हमने अपने भीतर एक बहुत गहन अनुभव से समझा है ..बहुत गहराई से उसे देखा है।

3-‘शि-व’ मंत्र में एक अंश उसे ऊर्जा देता है और दूसरा उसे संतुलित या नियंत्रित करता है। दिशाहीन ऊर्जा का कोई लाभ नहीं है, वह विनाशकारी हो सकती है। इसलिए जब हम ‘शिव’ कहते हैं, तो हम ऊर्जा को एक खास तरीके से, एक खास दिशा में ले जाने की बात करते हैं।

4-शिव में ‘शि’ ध्वनि का अर्थ मूल रूप से शक्ति या ऊर्जा होता है। भारतीय जीवन शैली में, हमने हमेशा से स्त्री गुण को शक्ति के रूप में देखा है। मजेदार बात यह है कि अंग्रेजी में भी स्त्री के लिए ‘शी’(she) शब्द का ही इस्तेमाल किया जाता है। शि का मूल अर्थ शक्ति या ऊर्जा है। लेकिन यदि आप सिर्फ “शि” का बहुत अधिक जाप करेंगे, तो वह आपको असंतुलित कर देगा। इसलिए इस मंत्र को मंद करने और संतुलन बनाए रखने के लिए उसमें “व” जोड़ा गया। “व” “वाम” से लिया गया है, जिसका अर्थ है प्रवीणता।

5-जब आप ‘शिव’ कहते हैं, तो इसका धर्म से कोई संबंध नहीं है। आज की दुनिया धर्म के आधार पर बंटी हुई है। इसके कारण आप जो कुछ भी बोलते हैं, उसे धर्म से जोड़ा जाता है। मगर यह धर्म नहीं, आंतरिक विकास का विज्ञान है। इसका मतलब ''परे जाना और मुक्ति पाना है'', चाहे आप कोई भी हों। अगर आप कोशिश करने को तैयार हैं, तो आपके माता-पिता ...जो भी थे या आप जिन सीमाओं के साथ पैदा हुए या जिन सीमाओं को अपना लिया, उन सब के परे आप जा सकते हैं।

6-भौतिक प्रकृति के नियमों को तोड़ना ही तो आध्यात्मिक प्रक्रिया है। इस अर्थ में हम सभी नियमों को तोड़ने वाले लोग हैं, और शिव नियमों को तोड़ने में सर्वश्रेष्ठ  हैं, वे परम विध्‍वंसक हैं। आप शिव की पूजा नहीं कर सकते, पर भौतिक नियमों को तोड़कर उस असीम स्‍वरूप को जान सकते हैं, जो शिव हैं।

पुरुष और प्रकृति की समानता से होता है संसार में संतुलन;-

05 FACTS;-

1-शिव इस  सृष्टि का परम सत्य हैं और शिव ही सुंदर हैं।शिव मृत्युंजय’ हैं, तो शक्ति माता भुवनेश्वरी, त्रिपुर सुंदरी,काली, बगला, तारा हैं।

हर जीवात्मा के शरीर के आधार चक्र में शक्ति स्थापित हैं तो सिर के ऊपर सहस्रार में शिव बैठे हैं। परंतु वे नीचे नहीं उतरते, स्वयं शक्ति ही सारे चक्रों

का भेदन कर उनसे जा मिलती है।शिव शक्ति का प्रेम ही ऐसा है कि ये एक दूसरे के बिना रह नहीं सकते।शिव त्रिकोण ऊर्ध्वमुख है,वहीं

शक्ति त्रिकोण अधोमुख है। शिव शक्ति की लीला तो परम आनंद प्रदान करती है।

 2-पुरुष और प्रकृति के बीच सामंजस्य स्थापित होने से ही सृष्टि सुचारु रूप से चल पाती है। शिव और शक्ति के प्रतीक शिवलिंग का यही अर्थ है। यहां शिव पुरुष के प्रतीक हैं, और शक्‍ति स्‍वरुप देवी पार्वती प्रकृति की। शिवलिंग के रूप में भगवान शिव बताते हैं कि पुरुष और प्रकृति के बीच यदि संतुलन न हो, तो सृष्टि का कोई भी कार्य भलीभांति संपन्न नहीं हो सकता है। जब शिव अपना भिक्षु रूप, तो शक्ति अपना भैरवी रूप त्याग कर समान्‍य घरेलू रूप धारण करती हैं, तब वे ललिता, और शिव-शंकर बन जाते हैं। इस संबंध में न कोई विजेता है और न कोई विजित है, दोनों का ही एक-दूसरे पर संपूर्ण अधिकार है, जिसे प्रेम कहते हैं।

4-माता पार्वती साधना के माध्यम से शिव के हृदय में करुणा और समभाव जगाना चाहती हैं।  उनकी साधना अन्य तपस्वियों की तपस्या से भिन्न है। सुर-असुर और ऋषि ईश्वर की प्राप्ति और अपनी इच्छापूर्ति के लिए तपस्या करते हैं।माता पार्वती किसी भी इच्छा या वरदान को परे रखकर ध्यान लगाती हैं। वे अपने व्यक्तिगत सुख के लिए नहीं, बल्कि संसार के लाभ के लिए तपस्या करती हैं।

5-शिव पुराण के अनुसार, जब माता पार्वती शिव को पाने के लिए साधना करती हैं, तो शिव उन्हें ध्यान से देखते हैं। वे इस निष्कर्ष पर पहुंचते हैं कि सती ही पार्वती हैं। वे सोचते हैं कि यदि वे अपनी आंखे बंद कर लेंगे, तो वह काली में बदल जाएंगी और उनका रूप भयंकर हो जाएगा। अगर वे आंखें खोले रहेंगे, तो वह सुंदर और सुरूप गौरी बनी रहेंगी। इसके आधार पर वे यह बताना चाहते हैं कि अगर प्रकृति को ज्ञान की दृष्टि से न देखा जाए, तो वह डरावनी हो जाती है। यदि ज्ञान के साथ देखा जाए तो वह सजग और सुंदर प्रतीत होती है। वहीं माता पार्वती शिव को अपना दर्पण दिखाती हैं, जिसमें वे अपना शंकर (शांत) रूप देख पाते हैं।

क्या हैं शिव शक्ति रहस्य – शिवम ?-

09 FACTS;-

1-शिव शक्ति जब कृपा करते हैं, जीव सभी पाशों से मुक्त होकर सभी धर्मों, सभी रहस्यों को देख व समझ लेता है। कहीं विरोध नहीं, किसी का अपमान नहीं, कोई धर्म छोटा नहीं, सभी देव-देवी पूजनीय हैं।निराकार ब्रह्म जब साकार रूप धारण करता है, जब वह महाशून्य से प्रकट होकर सगुण रूप धारण करता है, तो शिव कहलाता है और उसकी शक्ति मां भगवती ही मूल आदि शक्ति के नाम से विख्यात है। जीव कई पाशों में बंधा है, वह आत्मदर्शन की चाह रखता है, आत्मा-परमात्मा के दर्शन की चाह रखता है, शिव और शक्ति साकार रूप धारण कर जीव का कल्याण करते हैं, उसकी अभिलाषा पूरी करते हैं।

2- मातृसत्ता की कृपा के बिना यह सृष्टि नहीं बन सकती, इसलिए संसार में जहां ‘म’ है वहीं पूर्णता है। राम में ‘म’, श्याम में ‘म’, प्रेम में ‘म’, आत्मा-परमात्मा में ‘म’, परंतु परमात्मा में दो म’ शिव शक्ति की एकता का बोध कराते हैं। भगवती के किसी भी बीजाक्षर में ‘म’ का उच्चारण बिंदु के बदले करने से विशेष मंत्र चैतन्य होता है। यह सृष्टि काल आधारित है इसलिए शिव महाकाल प्रथम और आद्या महाकाली प्रथमा ही मूल शक्ति हैं। शिव के अनेक रूप हैं जो महाकल्याणकारी हैं। वहीं आद्या शक्ति भी नाना रूपों में लीला करती हैं।  

3-शिव परम तत्व हैं परंतु उन्हें भी शक्ति प्रदान करने वाली, साथ रहने वाली आदि जगदंबा ही परब्रह्म परमेश्‍वरी हैं। शिव गुरु हैं, परमात्मा हैं। बिना इनकी कृपा के शक्ति को कौन जानेगा? जब जीवात्मा में शिव तत्व का प्रवेश होता है तभी जीव शक्ति को समझ पाता है। वेद, पुराण, तंत्र, शास्त्र आदि को पढ़कर अध्यात्म को नहीं समझा जा सकता है। इससे ज्ञान का विकास होगा, समझने की लालसा जगेगी, जानने की, देखने की तड़प पैदा होगी परंतु यह तो साधना है,जब शिव कृपा करेंगे तभी सही रास्ता मिलेगा। वैसे शिव शक्ति के पूर्ण रहस्य को जीव कभी नहीं जान सकता, वे बुद्धि, दृष्टि, ज्ञान से भी परे हैं।

 4-परमात्मा का पवित्र प्रणव बीज ऐं है। वहीं शक्ति का प्रणव ह्रीं है। शिव शक्ति के रहस्य की एक छोटी अनुभूति शिव का बीजाक्षर ह्रां, ह्रीं हैं। वहीं शक्ति के बीजाक्षर ह्रीं, क्रीं, श्रीं, ऐं, क्लीं आदि हैं। परंतु शिव ह्रां में राम ह्रीं में हरी (विष्णु) क्लीं में काली कृष्ण, श्रीं में लक्ष्मी, ऐं में गुरु और सरस्वती यही तो परम रहस्य है शिव शक्ति का। शिव का अपमान शक्ति सह नहीं पाईं, तो दक्ष यज्ञ मृत्यु यज्ञ बन गया। वहीं शक्ति का वियोग शिव सह नहीं पाए और शव लेकर विलाप करते हुए भटकने लगे। सृष्टि का नाश होने के भय से विष्णु को आना पड़ा। शिव शक्ति का प्रेम ही ऐसा है कि ये एक दूसरे के बिना रह नहीं सकते।  

5-शक्ति शिव से मिलकर शांत होती है;-

02 POINTS;-

1-महाकाल महाकाली के नीचे लेटे हैं, शिव के लेटने का मूल कारण शक्ति के उग्र रूप से सृष्टि को बचाना है, वहीं कालिका के सौम्य रूप से सृजन कराना है। शिव को नीचे देख काली की उग्रता समाप्त हो गई। जो शिव के भक्त हैं उन्हें शक्ति को भी प्रसन्न करना पड़ेगा और जो शक्ति के उपासक हैं, उन्हें भी शिव को पूजना पड़ेगा- यही तो आखिरी सत्य है।

2-उपासना दक्षिण तथा वाम दोनों पद्धतियों से की जाती है। तंत्र शास्त्र कहता है कि वाम मार्ग योगियों के लिए भी कठिन है। यदि गुरु योग्य, तपस्वी व सच्चा नहीं हो, तो वाचाल, मांसाहारी, शराबी बन साधक भटक जाएगा। अतः दक्षिण मार्ग को अपनाना उचित है।सभी शिव या शक्ति रूपों की पूजन पद्धतियां, यंत्र मंत्र अलग-अलग हैं। वे साधक के कर्मानुसार फल देते हैं। शिव शक्ति कलातीत, शब्द ज्ञान से परे हैं।

6-शिव अर्धनारीश्‍वर;-

02 POINTS;-

शिव के अर्धनारीश्‍वर रूप में शक्ति उनके वाम भाग में विराजमान हैं, वहीं हरिहर रूप में वाम भाग में विष्णु विराजमान हैं। हर पुरुष में स्त्री छुपी होती है। उसी तरह हर स्त्री में पुरुष छुपा होता है। शक्ति भिन्न-भिन्न रूप धारण कर सृष्टि का संचालन करती है। शक्ति को हर जीव संभाल नहीं पाता परंतु शिव प्रेम हैं, परमात्मा हैं, सब कुछ हैं, इसी कारण शिव पिता व शक्ति माता हैं।

2-दोनों के प्रति प्रेम ही उच्च स्थिति प्राप्त कराता है। जीवन में शिव तत्व का विकास हो, उनका नियम, उनका गुण आ जाए, तो शक्ति स्वयं शिव से मिलन करती हैं- यही तो रहस्य है कुण्डलिनी शक्ति का। साधक जब निष्ठा पूर्वक ध्यान, योग, जप करता है, तो कुंडलिनी सारे चक्र को भेदकर शिव से मिलन कर ही लेती है। शिव और शक्ति के अनेक रूप धारण करने का यही रहस्य है। व्यक्ति को शिव और शक्ति की उपासना का ज्ञान गुरु के मार्ग दर्शन से प्राप्त होता है।

7-मिलन रहस्य;-

02 POINTS;-

1-शिव त्रिकोण ऊर्ध्वमुख है, वहीं शक्ति त्रिकोण अधोमुख है। शिव शक्ति की लीला तो परम आनंद प्रदान करती है। काली के नीचे शिव, तारा के माथे पर शिव, बगला के आगे शिव। वियोग में शक्ति आंसू बहाती हैं, वहीं सीता शोक में विलाप कर रही हैं, वहीं पार्वती घोर तप कर रही हैं, राम रो रहे हैं, श्याम भी रो रहे हैं और सती के लिए शिव भी रो रहे हैं। भक्त भी रोते हैं, साधु भी रोते हैं, पापी भी रोते हैं अपनी बर्बादी पर।

2-माता-पिता भी रोते हैं संतान के लिए, संतान भी रोती है, सभी रोते हैं। परंतु जो शिव शक्ति के लिए रोता है, वही इस जीवन में कुछ पा सकता है। शिव सहस्रार में मूल शक्ति के लिए रोता है तभी तो शक्ति दौड़कर भागी-भागी जीव के लिए शिव के पास पहुंच जाती हैं। नकली आंसू से कुछ नहीं होगा, शिव ही भाव देंगे, आंसू देंगे, शरण देंगे। तभी कुछ हो पाएगा। शिव शीघ्र सभी कुछ प्रदान करते हैं।

8-शिव लेते हैं हमारा विष;-

07 POINTS;-

1-शिव पिता हैं, गुरु हैं, परमात्मा हैं। शिव सिर्फ अमतृ देते हैं, लेते हैं हमारा विष, हमारे पाप, हमारे ताप। तभी तो हम शुद्ध, बुद्ध होकर परम पद को प्राप्त करते हैं, और शक्ति तो सब के पीछे, सबके कल्याण हेतु तत्पर रहती हैं। वह सबकी स्वामिनी हैं और जो शक्ति हैं वही शिव हैं और जो शिव हैं वही शक्ति हैं। दोनों में कोई भेद नहीं है। इन दोनों के परम लाड़ले हैं गणेश और कार्तिकेय।

2-अपनी इच्छा से संसार की सृष्टि के लिए उद्यत हुए महेश्वर का जो प्रथम परिस्पंद है, उसे शिवतत्व कहते हैं। यही इच्छाशक्ति तत्व है, क्योंकि संपूर्ण कृत्यों में इसी का अनुवर्तन होता है। ज्ञान और क्रिया, इन दो शक्तियों में जब ज्ञान का आधिक्य हो, तब उसे सदाशिवतत्व समझना चाहिए, जब क्रियाशक्ति का उद्रेक हो तब उसे महेश्वर तत्व जानना चाहिए तथा जब ज्ञान और क्रिया दोनों शक्तियां समान हों तब वहां शुद्ध विद्यात्मक तत्व समझना चाहए।

3-जब शिव अपने रूप को माया से निग्रहीत करके संपूर्ण पदार्थों को ग्रहण करने लगता है,

तब उसका नाम पुरुष होता है।शक्ति को जाग्रत करें, शिव भाव में मिलन करा दें। यही शिव

और शक्ति साधना का स्वरूप हैं।अगर आप भौतिकता से थोड़ा आगे जाएं, तो सब कुछ शून्य हो जाता है। शून्य का अर्थ है पूर्ण खालीपन, एक ऐसी स्थिति जहां भौतिक कुछ भी नहीं है। जहां भौतिक कुछ है ही नहीं, वहां आपकी ज्ञानेंद्रियां भी बेकाम की हो जाती हैं। अगर आप शून्य से परे जाएं, तो आपको जो मिलेगा, उसे हम शिव के रूप में जानते हैं।

4-शिव का अर्थ है, जो नहीं है। जो नहीं है, उस तक अगर पहुंच पाएंगे, तो आप देखेंगे कि इसकी प्रकृति भौतिक नहीं है। इसका मतलब है इसका अस्तित्व नहीं है, पर यह धुंधला है, अपारदर्शी है। ऐसा कैसे हो सकता है? यह आपके तार्किक दिमाग के दायरे में नहीं है। आधुनिक विज्ञान मानता है कि इस पूरी रचना को इंसान के तर्कों पर खरा उतरना होगा, लेकिन जीवन को देखने का यह बेहद सीमित तरीका है। संपूर्ण सृष्टि मानव बुद्धि के तर्कों पर कभी खरी नहीं उतरेगी।

5-आपका दिमाग इस सृष्टि में फिट हो सकता है, यह सृष्टि आपके दिमाग में कभी फिट नहीं हो सकती। तर्क इस अस्तित्व के केवल उन पहलुओं का विश्लेषण कर सकते हैं, जो भौतिक हैं। एक बार अगर आपने भौतिक पहलुओं को पार कर लिया, तो आपके तर्क पूरी तरह से उसके अधिकार क्षेत्र से बाहर होंगे।

 6-जिस चीज को साबित करने के लिए वैज्ञानिकों ने खरबों डॉलर के यंत्र बनाए, उसी चीज को आपके भीतर आपके अपने अनुभवों में साबित किया जा सकता है, बशर्ते आप इस जीवन की गहराई में उतरने को इच्छुक हों। अगर आप गहराई से देखें तो आप पाएंगे कि इस ब्रह्मांड की हर चीज के बारे में अनुमान के आधार पर निष्कर्ष निकाला गया है। यहां तक कि विज्ञान भी अनुमान के आधार पर ही निष्कर्ष निकाल रहा है।

7-भौतिक से परे होने के कारण शून्य तत्व को सीधे तौर पर दर्शाया नहीं जा सकता। यही कारण है कि योगिक विज्ञान ने हमेशा कहानियों के माध्यम से इसकी ओर इंगित किया है। शिव और शक्ति का मेल, या आभूषणों और अलंकारों से सजा शिव का रूप... इसी शून्य की ओर संकेत करते हैं।  

9-शिव और शक्ति की क्रीड़ा;-

04 POINTS;-

1-योगिक विज्ञान में भगवान शिव को रूद्र कहा जाता है। रूद्र का अर्थ है वह जो रौद्र या भयंकर रूप में हो। शिव को सृष्टि -कर्ता भी कहा जाता है।शिव के इन्हीं दोनों पक्षों के मेल को

ही विज्ञान बिग-बैंग का नाम दे रहा है।आजकल वैज्ञानिक कह रहे हैं कि हर चीज डार्क मैटर से आती है साथ ही उन्होंने डार्क एनर्जी के बारे में भी बात करना शुरू कर दिया है। योग में हमारे पास दोनों मौजूद हैं - डार्क मैटर भी और डार्क एनर्जी भी। यहां शिव को काला माना गया है यानी डार्क मैटर और शक्ति का प्रथम रूप या डार्क एनर्जी को काली कहा जाता है।

 2-वैज्ञानिको को लगता था कि डार्क मैटर और डार्क एनर्जी ये चीजें अलग-अलग हैं।अब वैज्ञानिक कहते हैं  कि डार्क मैटर और डार्क एनर्जी के बीच एक तरह का लिंक है ...कि वे

एक दूसरे से जुड़ी हैं।योग सृष्टि को भीतर से समझाता है। यह एक तार्किक संस्कृति है।

इसकी शब्दावली की  अपनी एक खास पहचान है, क्योंकि यह एक ऐसे पहलू के बारे में बात कर रही है जो हमारी तार्किक समझ के दायरे में नहीं है। लेकिन इसे तार्किक ढंग से  समझना ज्यादा अच्छा है। तो कहानी कुछ इस तरह से है ...शिव सो रहे हैं। जब हम यहां शिव कहते हैं तो हम किसी व्यक्ति या उस योगी के बारे में बात नहीं कर रहे हैं, यहां शि-व का मतलब है “वह जो है ही नहीं”। जो है ही नहीं, वह सिर्फ सो सकता है। इसलिए शिव को हमेशा ही डार्क बताया गया है।

3-शिव सो रहे हैं और शक्ति उन्हें देखने आती हैं। वह उन्हें जगाने आई हैं क्योंकि वह उनके साथ नृत्य करना चाहती हैं, उनके साथ खेलना चाहती हैं और उन्हें रिझाना चाहती हैं। शुरू में वह नहीं जागते, लेकिन थोड़ी देर में उठ जाते हैं। मान लीजिए कि कोई गहरी नींद में है और आप उसे उठाते हैं तो उसे थोड़ा गुस्सा तो आएगा ही, बेशक उठाने वाला कितना ही सुंदर क्यों न हो। अत: शिव भी गुस्से में गरजे और तेजी से उठकर खड़े हो गए। उनके ऐसा करने के कारण ही उनका पहला रूप और पहला नाम 'रुद्र' पड़ गया। रुद्र शब्द का अर्थ होता है – दहाडऩे वाला, गरजने वाला।

4-एक वैज्ञानिक से बिग बैंग के धमाकों के बारे में पूछा –'' क्या केवल एक ही धमाका था या यह लगातार होने वाली प्रक्रिया थी''?वह कुछ सोचकर बोला..''यह एक धमाका नहीं हो सकता, यह धमाका एक पल से ज्यादा लंबा चला होगा''।अगर कई धमाकें हों, तो वह एक गर्जना जैसी होगी।अगर धमाकों की एक श्रृंखला बन जाए तो वह ऐसे ही होगा, जैसे किसी इंजन की आवाज हो। यह एक गर्जना जैसा  ही है ...जैसे कि शिव हुंकार भरकर खड़े हो गए हों।

क्या महत्व है -'' प्रार्थना और प्रतीक्षा'' का?-

08 FACTS;-

1- शिव-सूत्र का प्रारंभ  ''ॐ स्वप्रकाश आनंदस्वरूप भगवान शिव को

नमन'' से  होता है। वास्तव में,जीवन-सत्य की खोज दो मार्गों से हो सकती है। एक पुरुष का मार्ग है-आक्रमण का, हिंसा का, छीन-झपट का,

प्रतिक्रमण का।विज्ञान  पुरुष का मार्ग है; विज्ञान आक्रमण है। धर्म स्त्री  

का मार्ग है; धर्म नमन है।इसलिए  सभी शास्त्र परमात्मा को नमस्कार से शुरू होते हैं। वह नमस्कार   केवल एक परंपरा और रीति नहीं है। वह नमस्कार इंगित है कि.. मार्ग समर्पण का है, और जो विनम्र हैं, केवल वे ही उपलब्ध हो सकेंगे।

2-और, जो आक्रामक है; अहंकार से भरे हैं; जो सत्य को भी छीन-झपट

कर पाना चाहते हैं; जो सत्य के भी मालिक होने की आकांक्षा रखते हैं; जो परमात्मा के द्वार पर एक सैनिक की भाँति पहुँचे हैं-विजय करने, वे हार जाएँगे। वे क्षुद्र को भला छीन-झपट लें, विराट उनका न हो सकेगा।   

इसलिए विज्ञान व्यर्थ को खोज लेता है, सार्थक चूक जाता है। मिट्टी, पत्थर, पदार्थ के संबंध में जानकारी मिल जाती है, लेकिन आत्मा और परमात्मा की जानकारी छूट जाती है।

3-जो लोग परमात्मा की  तरफ,आक्रमक की तरह जाते हैं ;वे परमात्मा 

के शरीर पर भला कब्जा कर लें अथार्त प्रकृति पर, जो दिखाई पड़ता है.. जो दृश्य है-उसकी चीर-फाड़ कर, विश्लेषण करके, उसके कुछ राज खोल लें, लेकिन उनकी खोज वैसी ही क्षुद्र होगी, जैसे किसी पुरुष ने किसी स्त्री से जबरदस्ती विवाह किया हो ..स्त्री का शरीर तो उपलब्ध हो जाएगा, लेकिन वह उपलब्धि दो कौड़ी की है; क्योंकि उसकी आत्मा को वह छू भी न पायेगा और अगर उसकी आत्मा को न छूआ, तो उसके भीतर प्रेम की जो संभावना थी-वह जो प्रेम बीज छिपा था -वह कभी अँकुरित न होगा। उसकी प्रेम की वर्षा उसे न मिल सकेगी।

4-विज्ञान प्रकृति पर हमला है; जैसे कि प्रकृति कोई शत्रु हो; जैसे कि उसे जीतना है, पराजित करना है। इसलिए विज्ञान तोड़-फोड़ में भरोसा करता है-विश्लेषण 'तोड़-फोड़ 'है।अगर वैज्ञानिक से पूछो कि फूल सुंदर है,

तो तोड़ेगा फूल को, काटेगा, जाँच-पड़ताल करेगा; लेकिन उसे पता नहीं है कि तोड़ने में ही सौन्दर्य खो जाता है। सौन्दर्य तो पूरे में था। खंड-खंड में सौंदर्य न मिलेगा। हाँ, रासायनिक तत्त्व मिल जाएगा।

 5-तुम बोतलों में अलग-अलग फूल से खंड़ों को इकट्ठा करके लेबल लगा दोगे। तुम कहोगे-ये कैमिकल्स हैं, ये पदार्थ हैं, इनसे मिलकर फूल बना था। लेकिन तुम एक भी ऐसी बोतल न भर पाओगे, जिसमें तुम कह सको कि यह सौंदर्य है, जो फूल में भरा था। सौन्दर्य तिरोहित हो जाएगा। अगर तुमने फूल पर आक्रमण किया तो फूल की आत्मा तुम्हें न मिलेगी, शरीर ही मिलेगा। 

6-विज्ञान इसीलिए आत्मा में भरोसा नहीं करता। भरोसा करे भी कैसे ?

इतनी चेष्टा के बाद भी आत्मा की कोई झलक नहीं मिलती। झलक नहीं मिलेगी ..  इसलिए नहीं कि आत्मा नहीं है, बल्कि तुमने जो ढंग चुना है, वह आत्मा को पाने का ढंग नहीं है। तुम जिस द्वार से प्रवेश किए हो, वह क्षुद्र को पाने का ढंग है। 'आक्रमण से', जो बहुमूल्य है, वह नहीं मिल सकता। 

7-जीवन का रहस्य तुम्हें मिल सकेगा, अगर नमन के द्वार से तुम गए। अगर तुम झुके, तुमने प्रार्थना की, तो तुम प्रेम के केन्द्र तक पहुँच पाओगे। उसके पास अति प्रेमपूर्ण, अति विनम्र, प्रार्थना से भरा हृदय चाहिए। और वहाँ 'जल्दी' नहीं है। तुमने जल्दी की, कि तुम चूके। वहाँ बड़ा धैर्य चाहिए। तुम्हारी जल्दी और उसका हृदय बंद हो जाएगा। क्योंकि जल्दी भी आक्रमण की खबर है।

8-इसलिए जो परमात्मा को खोजने चलते हैं, उनके जीवन का ढंग दो शब्दों में समाया हुआ है- ''प्रार्थना और प्रतीक्षा''। प्रार्थना से शास्त्र शुरू होते हैं और प्रतीक्षा पर पूरे होते हैं।इसलिए प्रार्थना से खोज शुरू होती है।इस नमन को बहुत गहरे उतर जाने दें। sabhar China nanda Facebook wall




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? 1-दक्षिणामूर्ति स्तोत्र ;- 02 FACTS;- दक्षिणा मूर्ति स्तोत्र मुख्य रूप से गुरु की वंदना है। श्रीदक्षिणा मूर्ति परमात्मस्वरूप शंकर जी हैं जो ऋषि मुनियों को उपदेश देने के लिए कैलाश पर्वत पर दक्षिणाभिमुख होकर विराजमान हैं। वहीं से चलती हुई वेदांत ज्ञान की परम्परा आज तक चली आ रही  हैं।व्यास, शुक्र, गौड़पाद, शंकर, सुरेश्वर आदि परम पूजनीय गुरुगण उसी परम्परा की कड़ी हैं। उनकी वंदना में यह स्त्रोत समर्पित है।भगवान् शिव को गुरु स्वरुप में दक्षिणामूर्ति  कहा गया है, दक्षिणामूर्ति ( Dakshinamurti ) अर्थात दक्षिण की ओर मुख किये हुए शिव इस रूप में योग, संगीत और तर्क का ज्ञान प्रदान करते हैं और शास्त्रों की व्याख्या करते हैं। कुछ शास्त्रों के अनुसार, यदि किसी साधक को गुरु की प्राप्ति न हो, तो वह भगवान् दक्षिणामूर्ति को अपना गुरु मान सकता है, कुछ समय बाद उसके योग्य होने पर उसे आत्मज्ञानी गुरु की प्राप्ति होती है।  2-गुरुवार (बृहस्पतिवार) का दिन किसी भी प्रकार के शैक्षिक आरम्भ के लिए शुभ होता है, इस दिन सर्वप्रथम भगवान् दक्षिणामूर्ति की वंदना करना चाहिए।दक्षिणामूर्ति हिंदू भगवान शिव का एक

पहला मेंढक जो अंडे नहीं बच्चे देता है

वैज्ञानिकों को इंडोनेशियाई वर्षावन के अंदरूनी हिस्सों में एक ऐसा मेंढक मिला है जो अंडे देने के बजाय सीधे बच्चे को जन्म देता है. एशिया में मेंढकों की एक खास प्रजाति 'लिम्नोनेक्टेस लार्वीपार्टस' की खोज कुछ दशक पहले इंडोनेशियाई रिसर्चर जोको इस्कांदर ने की थी. वैज्ञानिकों को लगता था कि यह मेंढक अंडों की जगह सीधे टैडपोल पैदा कर सकता है, लेकिन किसी ने भी इनमें प्रजनन की प्रक्रिया को देखा नहीं था. पहली बार रिसर्चरों को एक ऐसा मेंढक मिला है जिसमें मादा ने अंडे नहीं बल्कि सीधे टैडपोल को जन्म दिया. मेंढक के जीवन चक्र में सबसे पहले अंडों के निषेचित होने के बाद उससे टैडपोल निकलते हैं जो कि एक पूर्ण विकसित मेंढक बनने तक की प्रक्रिया में पहली अवस्था है. टैडपोल का शरीर अर्धविकसित दिखाई देता है. इसके सबूत तब मिले जब बर्कले की कैलिफोर्निया यूनीवर्सिटी के रिसर्चर जिम मैकग्वायर इंडोनेशिया के सुलावेसी द्वीप के वर्षावन में मेंढकों के प्रजनन संबंधी व्यवहार पर रिसर्च कर रहे थे. इसी दौरान उन्हें यह खास मेंढक मिला जिसे पहले वह नर समझ रहे थे. गौर से देखने पर पता चला कि वह एक मादा मेंढक है, जिसके