लिंगुडे/ ल्यून

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दोस्तो, आप में से कई मित्र शायद इस साग को पहली बार देख रहे होंगे। आप में से कितने लोगों ने इसका स्वाद लिया है? 

दरसल ये fern फर्न (टेरिडोफाईटा) की कलियॉं हैं, जो नम स्थानों में पायी जाती हैं, वनस्पति विज्ञान की भाषा में इसे Diplazium esculentum के नाम से जानते हैं। शहरों में इसकी कुछ प्रजातियों को नमी वाले स्थानों के करीब शो के लिये भी लगाया जाता है। 

आजकल हमारी सब्जी बाजार में यह सरलता से उपलब्ध है। यदि आप लोगों के यहाँ भी ये उपलब्ध हो तो एक बार अवश्य ट्राई करें। 

यह उत्तराखंड के कुमाऊं, गढ़वाल के सांथ ही मिलती जुलती जलवायु के चलते हिमाचल में भी होता है। सम्भवतः यह भारत के सभी पर्वतीय राज्यों पाया जाता होगा। 

इसे कुमाऊं में कहीं लिंगडे, कहीं ल्यून के नाम से जाना जाता है। हरा साग होने के कारण इसकी सरसों के तेल में बहुत ही स्वादिष्ट सब्जी बनती है। स्वाद और पौष्टिकता दोनों ही दृष्टि से इसे ओवर ग्रो होने से पहले ही खा लेना चाहिए। विदेशों में भी इसे बहुत चाव से खाया जाता है, साग के अतिरिक्त इसका अचार भी बनाया जाता है। 

हमारे उत्तराखंड में लिंगुडे की सब्जी को बहुत अच्छा माना जाता है, आजकल वर्षाऋतु में नदियों के किनारे या नमी वाली जगहों में यह बहुतायत में होता है। इसकी खेती नहीं की जाती बल्कि यह प्राकृतिक रूप से उत्तपन्न होता है। 

जंगली मशरूम की ही तरह इसकी कुछ प्रजातियाँ जहरीली या कड़वी भी हो सकती हैं। इसकी जिस प्रजाति के निचले तने में भूरे- काले रंग के गुच्छेदार रेशे होते हैं वह जहरीला- कड़ुआ नहीं होता है सांथ ही गहरे हरे रंग का खाने लायक और धानी हरे रंग का ज़हरीला या कड़ुआ हो सकता है। जहरीले या कड़ुए लिंगुडे को थोड़ा सा चख कर भी पहचाना जा सकता है। इन्हे काटते समय ही चखना पड़ता है वरना पूरी सब्जी का स्वाद बिगड़ सकता है। 

इसकी सब्जी बहुत स्वादिष्ट और पौष्टिक होती है, इसे पहली बार बनाने में थोड़ी असुविधा महसूस होती है, लेकिन थोड़ा उचित प्रयास करने के उपरांत परेशानी महसूस नहीं होती है। 

मेरी समझ में इसको बनाने का जो सबसे सरलतम तरीका आया वो आपसे शेयर कर रहा हूँ। इसकी ऊपरी सतह में भूरे- काले रंग के काफी सारे रेशे होते हैं, सबसे पहले इन्हें धोकर चाकू से रगड़ कर साफ कर लेना चाहिए, इसके पश्चात गरम पानी में थोड़ा नमक डाल कर 5 मिनट उबाल लेना चाहिए। दरसल यह बहुत चिकना होता है, इससे चिकना- तरल पदार्थ रिसता ही रहता है इसलिए इसे छिलने और काटने में बहुत परेशानी होती है। उबाल लेने के उपरांत काफी हद तक इसकी चिकनाहट समाप्त हो जाती है तथा इसके बाहर की झिल्ली बहुत आराम से निकल जाती है। 

उबालने, साफई करने, काटने के बाद इसे छोंक लिया जाता है। सरसों के तेल में कम आंच में हल्के कच्चे प्याज के सांथ छोंकने में यह बहुत स्वादिष्ट होता है, पारंपरिक रूप से इसकी सब्जी में दही भी डाला जा सकता है, दही से इसका स्वाद और अधिक बढ़ जाता है।

राजेन्द्र प्रसाद जोशी,
हल्द्वानी, नैनीताल,
उत्तराखंड

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