अगर आप गौर से #भाभा_एटॉमिक_रिसर्च_सेंटर (मुंबई) के #न्यूक्लियर_रिएक्टर की संरचना को देखें तो आप पाएंगे की #शिवलिंग_और_न्यूक्लियर_रिएक्टर में काफी समानताएं हैं।
दोनों की संरचनाएं भी एक सी हैं दोनों ही कहीं न कहीं उर्जा से संबंधित हैं। शिवलिंग पर लगातार जल प्रवाहित करने का नियम है।
देश में, ज्यादातर शिवलिंग वहीं पाए जाते हैं जहां जल का भंडार हो, जैसे नदी, तालाब, झील इत्यादि। विश्व के सारे न्यूक्लियर प्लांट भी पानी (समुद्र) के पास ही हैं।
शिवलिंग की संरचना बेलनाकार होती है और भाभा एटॉमिक रिसर्च सेंटर (मुंबई) की रिएक्टर की संरचना भी बेलनाकार ही है। न्यूक्लियर रिएक्टर को ठंडा रखने के लिये जो जल का इस्तेमाल किया जाता है उस जल को किसी और प्रयोग में नहीं लाया जाता। उसी तरह शिवलिंग पर जो जल चढ़ाया जाता है उसको भी प्रसाद के रूप में ग्रहण नहीं किया जाता है।
शिवलिंग की पूरी परिक्रमा नहीं की जाती है। जहां से जल निष्कासित हो रहा है, उसको लांघा भी नहीं जाता है।
ऐसी मान्यता है की वह जल आवेशित (चार्ज) होता है। उसी तरह से जिस तरह से न्यूक्लियर रिएक्टर से निकले हुए जल को भी दूर ऱखा जाता है।
भारत का #रेडियोएक्टिविटी_मैप उठा कीजिये तो आप हैरान हो जाओगे की भारत सरकार के नुक्लिएर रिएक्टर के अलावा सभी ज्योत्रिलिंगो के स्थानों पर सबसे ज्यादा रेडिएशन पाया जाता है |
शिवलिंग और कुछ नहीं बल्कि न्यूक्लिअर रिएक्टर्स ही हैं तभी उन पर जल चढ़ाया जाता है ताकि वो शांत रहे।
महादेव के सभी प्रिय पदार्थ जैसे किए बिल्व पत्र, आक, आकमद, धतूरा, गुड़हल, आदि सभी न्यूक्लिअर एनर्जी सोखने वाले हैं |
क्यूंकि शिवलिंग पर चढ़ा पानी भी रिएक्टिव हो जाता है तभी जल निकासी नलिका को लांघा नहीं जाता | भाभा एटॉमिक रिएक्टर का डिज़ाइन भी शिव लिंग की तरह है | शिवलिंग पर चढ़ाया हुआ जल नदी के बहते हुए जल के साथ मिल कर औषधि का रूप ले लेता है |
ऐसी मान्यता है कि वास्तव में शिवलिंग हमारे ब्रह्मांड की ही आकृति है। जिस तरीके से लगातार उर्जा देते रहने से न्यूक्लियर रिएक्टर गर्म हो जाता हैतथा उसको ठंडा रखने के लिये जल की जरूरत है उसी तरह शिवलिंग को भी जल की जरूरत होती है। 🔱🔱
ऐसा माना जाता है की शिवलिंग (ब्रह्मांड) भी एक उर्जा का स्रोत है जिससे लगातार उर्जा निकलती रहती है। लोग श्रद्धा से बेल का पत्ता शिवलिंग पर चढ़ाते हैं| 🔱🔱
वैज्ञानिक शोध से ये ज्ञात हुआ है की बेल के पत्तों में रेडियो विकिरण रोकने की क्षमता है।
प्राचीन कल में लोगशिवलिंग को उर्जा अथवा विकिरण का स्रोतमानकर उस पर जल एवं बेल पत्तों को चढ़ाते थे।
ऐसा भी माना जाता है की सोमनाथ के मंदिर के शिवलिंग में “स्यामन्तक” नामक एक पत्थर को हमारे पूर्वजों ने छुपा के रखा था।इसके बारे में धारणा है की ये रेडियोएक्टिव भी था।
यह भी माना जाता हैं गजनी ने इस पत्थर को प्राप्त करने के लिये सोमनाथ के मंदिर पर कई बार हमला किया था।
एक कथा यह भी प्रचलित थी कि इस पत्थर से किसी भी धातु को सोना में बदला जा सकता था। शायद इसी कारण से लोग सोमनाथ के शिवलिंग पर बेलपत्र चढ़ाते थे ताकि विकिरण का प्रभाव कम हो सके।प्रथा आज भी प्रचलित है।
हम अपने दैनिक जीवन में भी देख सकते है की जब भी किसी स्थान पर अकस्मात उर्जा का उत्सर्जन होता है तो उर्जा का फैलाव अपने मूल स्थान के चारों ओर एकवृताकार पथ में तथा ऊपर व नीचे की ओर अग्रसर होता है अर्थात दसों दिशाओं मेंफैलता है।
फलस्वरूप एक क्षणिक शिवलिंग आकृति की प्राप्ति होती है जैसे बम विस्फोट सेप्राप्त उर्जा का प्रतिरूप, शांत जल में कंकड़ फेंकने पर प्राप्त तरंग (उर्जा) काप्रतिरूप आदि।
सृष्टि के आरंभ में महाविस्फोट (बिग बैंग) के पश्चात उर्जा का प्रवाह वृत्ताकार पथ में तथा ऊपर व नीचे की ओर हुआ, फलस्वरूप एक महाशिवलिंग का प्राकट्य हुआ।
जिसका वर्णन हमें लिंगपुराण, शिवमहापुराण, स्कन्द पुराण आदि में मिलता है कि आरंभ में निर्मित शिवलिंग इतना विशाल (अनंत) था कि देवता आदि मिल करभी उस लिंग के आदि और अंत का छोर या शाश्वत अंत न पा सके ।
पुराणों में कहा गया है कि प्रत्येक महायुग के पश्चात समस्त संसार इसी शिवलिंगमें समाहित (लय) होता है तथा इसी से पुन: सृजन होता है।
#बिग_बैंग (महाविस्फोट) का सिद्धांत सर्वप्रथम Georges Lemaître ने 1920 में दिया।
यह सिद्धांत कहता है कि कैसे आज से लगभग 13.7 खरब वर्ष पूर्व एक अत्यंत गर्म और घनी अवस्था से ब्रह्मांड का जन्म हुआ। इसके अनुसार ब्रह्मांड की उत्पत्ति एक बिंदु से हुई थी जिसकी ऊर्जा अनंत थी।
उस समय मानव, समय और स्थान जैसी कोई वस्तु अस्तित्व में नहीं थी अर्थात कुछ नही था !
इस धमाके में अत्यधिक ऊर्जा का उत्सजर्न हुआ।यह ऊर्जा इतनी अधिक थी कि इसके प्रभाव से आज तक ब्रह्मांड फैलता ही जारहा है।
सारी भौतिक मान्यताएं इस एक ही घटना से परिभाषित होती हैं जिसे महाविस्फोट सिद्धांत कहा जाता है। महाविस्फोट नामक इस धमाके के मात्र 1.43 सेकेंड अंतराल के बाद समय,अंतरिक्ष की वर्तमान मान्यताएं अस्तित्व में आ चुकी थीं।
भौतिकी के नियम लागू होने लग गये थे।1.34वें सेकेंड में ब्रह्मांड 1030 गुणा फैल चुका था हाइड्रोजन, हीलियम आदि के अस्तित्त्व का आरंभ होने लगा था और अन्य भौतिक तत्व (आकाश,वायु,अग्नि,जल,पृथ्वी) बनने लगे थे।
शिवलिंग के महत्ता पीछे कई धार्मिक कहानियां भी हैं, जो प्रतीकात्मक तरीके से यही बातें कहती हैं। आधुनिक विज्ञान कई अवस्थाओं से गुजरने के बाद आज एक ऐसे बिंदु पर पहुँचा है जहाँ वे यह सिद्ध कर रहे हैं कि हर चीज जिसे आप जीवन के रूप में जानते हैं। वह सिर्फ ऊर्जा है, जो स्वयं को लाखों करोड़ों रूप में व्यक्त करती है।
दरअसल शिवलिंग और कुछ नहीं बल्कि न्यूक्लिअर रिएक्टर्स ही हैं तभी उन पर जल चढ़ाया जाता है ताकि वो शांत रहे।
इसलिए महादेव के सभी प्रिय पदार्थ जैसे किए बिल्व पत्र, आक, आकमद, धतूरा, गुड़हल, आदि सभी न्यूक्लिअर एनर्जी सोखने वाले हैं।
क्यूंकि शिवलिंग पर चढ़ा पानी भी रिएक्टिव हो जाता है तभी जल निकासी नलिका को लांघा नहीं जाता। भाभा एटॉमिक रिएक्टर का डिज़ाइन भी शिव लिंग की तरह है। 🔱🔱
सौराष्ट्रे सोमनाथं च श्रीशैले मल्लिकार्जुनम्।
उज्जयिन्यां महाकालमोङ्कारममलेश्वरम्।।
केदारं हिमवत्पृष्ठे डाकिन्यां भीमशङ्करम्।
वाराणस्यां च विश्वेशं त्र्यम्बकं गौतमीतटे।।
वैद्यनाथं चिताभूमौ नागेशं दारुकावने।
सेतुबन्धे च रामेशं घुश्मेशं च शिवालये।।
जयति पुण्य सनातन संस्कृति,,,
जयतिपुण्य भूमि भारत,,
कष्ट हरो,,,काल हरो,,,दुःख हरो,,,दारिद्र्यहरो,
🚩🚩🚩🔱🔱 हर हर महादेव 🔱🔱🚩🚩🚩
श्रेय - The Power
दिनांक - २६.०७.२०२१
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