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मनोमय कोष की साधना

{{{ॐ}}}

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मन मे एक गुप्त शक्ति छिपी होती है यदि वह शक्ति मनोविकार,छल,छिद्र, लोभ, मोह, वश अनैतिक कार्य पाप कर्म की ओर प्रवृत्ति होती है तोअधोगति कारक है अत: उसे आध्यात्म की ओर मोडने से ही परमात्मा सी प्राप्ति होती है ।
गीता मे कहा गया है कि मन ही बंधन व मोक्ष का कारक है पतञ्जलि ऋषि ने कहा कि चित्त की वृत्तियों का निरोध  करना एकाग्र करना ही योग है ।
भगवान कृष्ण ने अर्जुन को मन वश मे करने के लिए दो उपाय बताये है:- १:- अभ्यास २:- वैराग्य ।
इनके द्वारा ऐषणा प्रकृति को रोककर ऋतम्भरा बुद्धि को अन्तरात्मा के आधीन किया जा सकता है। जिसे मनोयोग कहते है इसके अनन्तर:--
१, ध्यानयोग २, त्राटक ३, जप ४, तन्मात्रा साधन
                                                              #ध्यानयोग
ध्यान चुम्बक की तरह मन खीचकर एकाग्र करता है ध्यान के लिए आदर्शों को दिव्यरूप धारी देवताओं के रूप मानकर उनमे तन्मयता स्थापित करने का यौगिक विधान है ।
ऐसा भी हो सकता है। कि एक ही ईष्ट देव को आवश्यकतानुसार विभिन्न गुणो वाला मान लिया जाये।
ईष्टदेव का मन क्षेत्र मे ध्यान करे। ध्यान के पांच अंग है:-
१. स्थिति:-उपासक को यह ज्ञान होना चाहिए कि कौन सी दिशा मे मुँह करके किस स्थान मे किस आसन द्वारा साधना करे।
२.संस्थिति:- ईष्ट की छवि रंग रूप अंग आभूषणों वाहन आदि स्थिति निश्चित करे।
३.विगति:- ईष्ट के गुण ,पराक्रम, आदि या संस्मरण करे।
४. प्रगति:- माता ,पिता, सखा, मित्र, गुरू, दास, किस रूप नें ईष्ट की साधना करनी है ।
५.संस्मिति:-यह व्यवस्था है जिसमे साधक और साध्य, उपासक,और उपास्य एक हो जाते है ।
                                                    #साधना_की_सहायक_विधियाँ 
१. इष्ट की सकाम व विविध उपचारों से पूजा करें।
२. भावना करे देवता को दिव्य तेज मय शरीर माने उस तेज से देह पुष्ट करे
३, भावना करें कि मेरे चारो ओर प्रचण्ड तेज है ओर मै परि पुष्ट हो रहा हूँ
४,ह्रदय के निकट सुर्य चक्र मे सुर्य का प्रकाश फैल रहा है 
५,भावना करे कि गायत्री सी स्वर्णिम किरणों मेरे शरीर मे प्रविष्ट हो रही है ।
                                                               #त्राटक
त्राटक दो तरह के है:-
 १,अन्तर त्राटक २,बाह्य त्राटक

अन्तरत्राटक:---
योगी प्रकाश बिन्दु पर ध्यान कर आंतरिक त्राटक करते है तो मैस्मरेजम वाले आन्तरिक त्राटक लाभ व बाह्य प्रयोग के लिये करते है वे उस उपासना का लाभ नही उठा पाते।
बाह्यत्राटक:-
बाह्य त्राटक का उद्देश्य बाह्यसाधनाों के आधार पर मन को वश मे कर चित्तवृत्तियो का एकीकरण करना है
अपनी दृष्टि को किसी विशेष वस्तु पर जमाकर अत न्याय ता पूर्वक ध्यान करे इससे हमारे नेत्रों मे चुम्बकीय शक्ति बढ जाती है। इसे दृष्टि बंधक भी कहते है । बंधक दृष्टि से किसी को वशीभूत या बेहोश  किया जा सकता है । इस त्राटक से रोग निवारण व अन्त करण का भेद मालुम किया जा सकता है
                                                              #जप
महर्षि भारद्वाज ने गायत्री व्याख्या मे कहा है समस्त यज्ञों मे जपयज्ञ अधिक श्रेष्ठ है यह मन को वश मे करने कि रामबाण है इसके लिए निम्न बातो का ध्यान रखे।
जप प्रातकाल ब्रह्म मुहुर्त्त मे ही करना चाहिए जप के लिए  एकान्त व शुद्ध स्थान होना चाहिए जप समय शुद्ध वस्त्र वआसन का प्रयोग करे।
 प्रात काल पूर्व मुखी सांय काल पश्चिम मुखी हो साधना करे
माला गोमुखी मे ही रखे या कपडे से ढककर करे।
यात्रा या रोगी होने से मानसिक जप करे।
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मस्तिष्क ये मध्य मे इष्ट कि स्मरण करे

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