#गुरुदेवकाअभौतकसत्ताकीज्ञानविज्ञानमण्डलीसेसमपर्क6 ********************************** परम श्रद्धेय ब्रह्मलीन गुरुदेव पण्डित अरुण कुमार शर्मा काशी की अध्यात्म-ज्ञानधारा में पावन अवगाहन पूज्य गुरुदेव के श्रीचरणों में कोटि-कोटि नमN महात्मा महाव्रत एक जटिल आध्यात्मिक विषय को कितनी सरलता से समझा रहे थे--यह मेरे लिए आश्चर्यजनक था। वे थोड़ा ठहरकर आगे बोले--भौतिक जगत् मिथुनजन्य है। उसकी सीमा में जितनी भी सृस्टि है, सब मैथुनी सृष्टि है। इसलिए कि मैथुनी जगत् में 'काम' प्रधान है। उसकी व्यापकता सर्वत्र है। उसका अस्तित्व कण-कण में है और एकमात्र यही कारण है कि उस पर विजय प्राप्त करना अथवा उससे परे होना अति कठिन कार्य है। कामवासना को हम जितना दबाएंगे, उतनी ही वह बढ़ेगी। भले ही हम जननेंद्रिय या कामेन्द्रिय का उपयोग न करें लेकिन हमारा जो मन है, हमारा जो चित्त है, वह सदैव कामवासना से भरा ही रहेगा। इसका एकमात्र कारण है कि हम शरीर से पूर्णतया जुड़े हुए हैं। यदि हमें कामवासना से मुक्त होना है तो दो बातों को सदैव याद रखें। पहली बात--मैं शरीर नहीं हूँ। दूसरी बात--मेरे भीतर जीवन की कामना नहीं ह
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