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वैश्वानर जगत की ओर

--                      भाग--02                     ********* परम श्रद्धेय ब्रह्मलीन गुरुदेव पण्डित अरुण कुमार शर्मा काशी की अद्भुत अध्यात्म-ज्ञानगंगा में पावन अवगाहन पूज्यपाद गुरुदेव के श्रीचरणों में कोटि-कोटि नमन      भारतीय संस्कृति और साधना में वैश्वानर जगत को सर्वश्रेष्ठ और उच्चतम ज्ञान-विज्ञान का विपुल भंडार बतलाया गया है। इस सत्य को वैज्ञानिकों और परामनोविज्ञान के कई आचार्यों ने भी अब स्वीकार कर लिया है। इसका कारण अति महत्वपूर्ण है। मनोविज्ञान मन की प्रथम दो अवस्थाओं का विज्ञान है और परामनोविज्ञान है--शेष दो अवस्थाओं का। आधुनिक भौतिक विज्ञान की दृष्टि में जगत मानव से निरपेक्ष है और मानव जगत से। वैज्ञानिक जीवन और जगत में अर्थ खोजता है लेकिन इस दिशा में उसके लिए सबसे बड़ी कठिनाई यह है कि वह अपने आपको एक ऐसे क्षेत्र में पाता है जहाँ उसके परिचित सब वैज्ञानिक साधनों और प्रयोगों की सीमा समाप्त हो जाती है। उसे अपनी विवशता का आभास होने लगता है। इसकी वास्तविकता इसी से समझी जा सकती है कि पदार्थ की मूल इकाई इलेक्ट्रॉन के विश्लेषण में वैज्ञानिक गण असमर्थ हैं। वे उसकी केवल कल्पना ही कर सकते ह

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मूलाधार चक्र की साधना करने के तीन प्रमुख फायदे

मूलाधार शरीर का सबसे बुनियादी चक्र है। मूलाधार साधना पीनियल ग्लैंड से जुड़ी है, और इस साधना से तीन बुनियादी गुण सामने आ सकते हैं। जानते हैं इन गुणों के बारे में।   मूलाधार का मतलब है मूल आधार, यानी यह हमारे भौतिक ढांचे का आधार है। अगर यह आधार स्थिर नहीं हुआ, तो इंसान न तो अपना स्वास्थ ठीक रख पाएगा, न ही अपनी कुशलता और संतुलन ठीक रख पाएगा। इंसान के विकास के लिए ये खूबियां बहुत जरुरी हैं। जिस व्यक्ति की टांगे कांपती हों, उसे आप सीढिय़ां नहीं चढ़वा सकते। अगर आपके पैर जरा भी कमजोर होंगे तो आप चलना ही नहीं चाहेंगे, आप सिर्फ आराम करना चाहेंगे। मूलाधार साधना से जुड़ा है कायाकल्प का मार्ग योग का एक पूरा सिद्धांत मूलाधार से विकसित हुआ, जो इस शरीर के अलग-अलग इस्तेमाल से लेकर इंसान के अपनी परम संभावना तक पहुंचने से जुड़ा है। मूलाधार से एक पहलू सामने आया, जिसे हम कायाकल्प के नाम से जानते हैं। काया का मतलब है शरीर, और कल्प का मतलब है इसे स्थापित करना, इसमें स्थायित्व लाना। इसका एक अर्थ है शरीर को लम्बे समय तक बनाए रखना। कल्प समय की एक इकाई भी है, जो काफी लंबी होती है - आप इसे सदी के रूप में समझ सकते है

भगवान् क्या है

****************************                       भाग --02                      ********* परम श्रद्धेय ब्रह्मलीन गुरुदेव पण्डित अरुण कुमार शर्मा के श्रीचरणों में कोटि-कोटि नमन  -----:भगवान् का विचार क्यों ?::----- ******************************         यदि भगवान् पर विचार करना है तो हमें सभी पूर्व मतों से दूरी बनानी पड़ेगी। तटस्थ रहना होगा। तटस्थ ठीक उसी तरह जैसे नदी के किनारे खड़ा वृक्ष बहती हुई धारा के प्रति तटस्थ रहता है। हमें भी उसी तरह से उनके प्रति निरपेक्ष रहना है, तभी ईमानदारी से इस बिंदु पर विचार हो सकता है। हम किसी मत पर न तो आस्था रखें और न अनास्था। तभी हम भगवान् के सही स्वरूप को जान-समझ सकते हैं।        भगवान् के बारे में हम क्यों विचार करें ?       यह भी एक उचित तर्क है। अगर हम अपने अस्तित्व, मति, गति को आकस्मिक मान लें तो फिर भगवान् पर विचार करना आवश्यक नहीं। लेकिन अध्यात्म और विज्ञान--दोनों का कहना है कि कोई भी कार्य बिना कारण के संभव नहीं है । फिर हमारे अस्तित्व का क्या कारण है ?       हर वस्तु का एक कारण होता है और उन सभी कारणों का भी एक कारण हो

अभौतिक सत्ता में परमात्मा की प्रेरणा से विद्यमान अनेक अदृश्य मंडलियां

--- ****************************** परम श्रद्धेय ब्रह्मलीन गुरुदेव पण्डित अरुण कुमार शर्मा काशी की अध्यात्म-ज्ञानगंगा में पावन अवगाहन पूज्यपाद गुरुदेव के श्रीचरणों में कोटि-कोटि नमन       इस भौतिक जगत से जुड़े हुए अभौतिक जगत में परमात्मा की प्रेरणा से अनेक ऐसी मंडलियां हैं जो हमारे भौतिक जगत का न केवल सञ्चालन करती हैं वल्कि उस पर पूर्ण नियंत्रण भी रखती हैं। यह भौतिक जगत अभौतिक जगत से ऐसे जुड़ा हुआ है, ऐसे घुला-मिला है जैसे दूध और पानी घुला-मिला रहता है। उस अभौतिक सत्ता को साधारण लोग न तो देख पाते हैं और न जान-समझ पाते हैं। उस अभौतिक जगत की दिव्य मंडलियों के कई प्रयोजन होते हैं। इस भौतिक जगत में जो योग्य संस्कार-संपन्न व्यक्ति हैं, उनकी खोज करना और अभौतिक सता के ज्ञान-विज्ञान व गूढ़ तथा गोपनीय विषयों का उनके माध्यम से इस भौतिक जगत में प्रकट करना उन दिव्य मंडलियों का मुख्य प्रयोजन होता है।        प्रत्येक मनुष्य के भीतर किसी-न-किसी रूप में , किसी-न-किसी मात्रा में आध्यात्मिक शक्ति विद्यमान है। कोई नीचे के सोपान पर है और कोई है ऊपर के सोपान पर। कोई उससे भी ऊपर है। जो सोपान

सामान्य आबादी में निम्न रक्त विटामिन डी का स्तर

 सामान्य आबादी में, निम्न रक्त विटामिन डी का स्तर विभिन्न बीमारियों के उच्च जोखिम से जुड़ा हुआ है, जिसमें टाइप 2 मधुमेह और गुर्दे की बीमारी शामिल है। सन एच. किम, एमडी, एमएस (स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी स्कूल ऑफ मेडिसिन) और उनके सहयोगियों ने विटामिन डी और टाइप 2 मधुमेह (डी2डी) अध्ययन का एक माध्यमिक विश्लेषण किया, जो पूर्व-पूर्व वाले व्यक्तियों में गुर्दे के स्वास्थ्य पर विटामिन डी पूरकता के प्रभावों का मूल्यांकन करने के लिए किया गया था। मधुमेह, एक ऐसी स्थिति जो टाइप 2 मधुमेह के जोखिम को बढ़ाती है, जो बदले में गुर्दे की बीमारी का प्रमुख कारण है। अध्ययन ने 2.9 साल की औसत उपचार अवधि के लिए 2,423 वयस्कों को अधिक वजन / मोटापे और पूर्व-मधुमेह के साथ विटामिन डी 3 4000 आईयू प्रति दिन या प्लेसबो के लिए यादृच्छिक बनाया। "D2d अध्ययन अद्वितीय है क्योंकि हमने उच्च-जोखिम वाले पूर्व-मधुमेह वाले व्यक्तियों की भर्ती की, जिनमें 2-आउट-ऑफ -3 असामान्य ग्लूकोज मान थे, और हमने 2,000 से अधिक प्रतिभागियों की भर्ती की, जो अब तक के सबसे बड़े विटामिन डी मधुमेह रोकथाम परीक्षण का प्रतिनिधित्व करते हैं," डॉ किम

Kriya Yoga Master, Paramahamsa Hariharananda

Kriya Yoga Master, Paramahamsa Hariharananda once said:                                               “In the New Testament we can read about Peter, who was a fisherman. He cast his net into the water to catch fish, but if the fish were intelligent they would escape. The whole world is a net in which you have been caught. Consequently, you are in bondage- the bondage of money, and material possessions, the bondage of physical pleasures, the bondage of strong likes and dislikes as well as the bondage of anger, pride, cruelty and other negative emotions. You are not free. Yet all delusions, illusions and errors come from within. By practicing Kriya Yoga, you can escape from the net and stay close to the fisherman’s feet. Only then you will remain free. If you think that you are intelligent or have a lot of pride and anger, offer them up to God. Only if you remain focused on the fontanel will you discover your real talent, along with wisdom and intelligence. You have to go beyond mind, th