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अभौतिक सत्ता में परमात्मा की प्रेरणा से विद्यमान अनेक अदृश्य मंडलियां

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परम श्रद्धेय ब्रह्मलीन गुरुदेव पण्डित अरुण कुमार शर्मा काशी की अध्यात्म-ज्ञानगंगा में पावन अवगाहन

पूज्यपाद गुरुदेव के श्रीचरणों में कोटि-कोटि नमन

      इस भौतिक जगत से जुड़े हुए अभौतिक जगत में परमात्मा की प्रेरणा से अनेक ऐसी मंडलियां हैं जो हमारे भौतिक जगत का न केवल सञ्चालन करती हैं वल्कि उस पर पूर्ण नियंत्रण भी रखती हैं। यह भौतिक जगत अभौतिक जगत से ऐसे जुड़ा हुआ है, ऐसे घुला-मिला है जैसे दूध और पानी घुला-मिला रहता है। उस अभौतिक सत्ता को साधारण लोग न तो देख पाते हैं और न जान-समझ पाते हैं। उस अभौतिक जगत की दिव्य मंडलियों के कई प्रयोजन होते हैं। इस भौतिक जगत में जो योग्य संस्कार-संपन्न व्यक्ति हैं, उनकी खोज करना और अभौतिक सता के ज्ञान-विज्ञान व गूढ़ तथा गोपनीय विषयों का उनके माध्यम से इस भौतिक जगत में प्रकट करना उन दिव्य मंडलियों का मुख्य प्रयोजन होता है।
       प्रत्येक मनुष्य के भीतर किसी-न-किसी रूप में , किसी-न-किसी मात्रा में आध्यात्मिक शक्ति विद्यमान है। कोई नीचे के सोपान पर है और कोई है ऊपर के सोपान पर। कोई उससे भी ऊपर है। जो सोपान पर चढ़ कर ऊपर पहुँच गए हैं उन्हीं को 'महात्मा' या 'सिद्ध पुरुष' कहा जाता है।( आम तौर पर साधारण बोलचाल की भाषा में हम किसी को भी महात्मा कह देते हैं, सिद्ध पुरुष बोल देते है और महापुरुष की संज्ञा दे देते हैं। लेकिन वास्तविकता कुछ दूसरी ही है। महात्मा, सिद्ध पुरुष या महापुरुष की उपाधि उन दिव्य मंडलियों के अधिकारी लोगों के द्वारा प्रदान की जाती है।) महात्मा या सिद्ध पुरुष लोगों का अभाव इस संसार में नहीं है। अभाव है तो उन्हें जानने-समझने और पहचानने का। ऐसे महात्मा और सिद्ध पुरुष सूक्ष्म अस्तित्व में निवास करते हैं या संचरण-विचरण करते हैं। आवश्यकता पड़ने पर कभी-कभी अदृश्य से दृश्य भी हो जाते हैं अपनी योग-शक्ति द्वारा। जिनके पास दिव्य दृष्टि है, वे ऐसे लोगों को आसानी से देख लेते हैं, पहचान लेते हैं।
      मनुष्य प्रतिदिन रात को जब सोता है और नींद में स्वप्न देखता है। उस समय उसका वासना शरीर वासना लोक में विचरण करता है। विचरण की उस अवस्था में प्रायः उसका साक्षात्कार सूक्ष्म शरीर धारी महात्माओं और सिद्ध पुरुषों से भी हो जाया करता है इसमें संदेह नहीं। 
       ये महात्मा और सिद्धगण भी किसी समय उसी स्थान पर मौजूद थे जिस स्थान पर हम सब लोग आज मौजूद हैं। निस्संदेह एक-न- एक दिन हम सब भी उन्नति करते हुए उनके स्थान पर पहुँच जायेंगे--यह निश्चित है। यही विकासवाद का सिद्धांत है। यह जान लेना आवश्यक है कि एक बार जीवात्मा मनुष्य शरीर को स्वीकार कर लेती है, वह पशु- पक्षी या वृक्ष-वनस्पति आदि की योनियों को ग्रहण नहीं कर सकती। sabhar shiv ram Tiwari Facebook wall
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