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भगवान् क्या है

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                      भाग --02
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परम श्रद्धेय ब्रह्मलीन गुरुदेव पण्डित अरुण कुमार शर्मा के श्रीचरणों में कोटि-कोटि नमन 

-----:भगवान् का विचार क्यों ?::-----
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        यदि भगवान् पर विचार करना है तो हमें सभी पूर्व मतों से दूरी बनानी पड़ेगी। तटस्थ रहना होगा। तटस्थ ठीक उसी तरह जैसे नदी के किनारे खड़ा वृक्ष बहती हुई धारा के प्रति तटस्थ रहता है। हमें भी उसी तरह से उनके प्रति निरपेक्ष रहना है, तभी ईमानदारी से इस बिंदु पर विचार हो सकता है। हम किसी मत पर न तो आस्था रखें और न अनास्था। तभी हम भगवान् के सही स्वरूप को जान-समझ सकते हैं। 

      भगवान् के बारे में हम क्यों विचार करें ?

      यह भी एक उचित तर्क है। अगर हम अपने अस्तित्व, मति, गति को आकस्मिक मान लें तो फिर भगवान् पर विचार करना आवश्यक नहीं। लेकिन अध्यात्म और विज्ञान--दोनों का कहना है कि कोई भी कार्य बिना कारण के संभव नहीं है । फिर हमारे अस्तित्व का क्या कारण है ?
      हर वस्तु का एक कारण होता है और उन सभी कारणों का भी एक कारण होता है। हर वस्तु या हर स्थित के पीछे 'क्यों' लगा हुआ है।
इस 'क्यों' का एक लंबा सिलसिला चलता है। आखीर कहाँ है ? आखिरी 'क्यों' का उत्तर है--भगवान्।
       यदि हम अपने को जड़ पदार्थों की ही उत्पत्ति मान लें, तो प्रश्न उठता है कि जड़ पदार्थों की उत्पत्ति कहाँ से हुई ? यह पृथ्वी, यह सृष्टि, ब्रह्माण्ड के अनेक सौर मंडलों का प्रादुर्भाव कहाँ से हुआ ? विज्ञान ने इस सम्बन्ध में जो तर्क दिए हैं, उनमें उसका उत्तर नहीं है। इसी प्रकार का एक तर्क है कि सबसे पहले गैसीय धूल के कण थे जिनसे बाद में ब्रह्माण्ड की उत्पत्ति हुई। यदि इस बात को सही मान लिया जाय तो यह मानना पड़ेगा कि 'आदितत्व' गैसीय कण ही थे। लेकिन जब हम किसी पदार्थ का विच्छेदन करते हैं तो उसमें से उस 'आदितत्व' की उत्पत्ति नहीं होती। परमाणु के कण--प्रोटोन, इलेक्ट्रान और न्यूट्रॉन भी आदि तत्व नहीं हैं क्योंकि इन्हें तोड़ कर शक्ति प्राप्त की जा सकती है ,ऊर्जा उत्पन्न की जा सकती है।
      इसी प्रकार का एक दूसरा मत यह है कि समस्त सृष्टि अरबों वर्ष पहले पिण्ड के रूप में थी। किसी कारणवश उसमें विस्फोट हो गया जिस कारण यह सृष्टि हो गयी। इस मत पर विचार करें तो अजीब-अजीब भ्रांतियां पैदा होती हैं ,साथ ही अनेकानेक प्रश्न पैदा होते हैं--क्या वह 'पिण्ड' सनातन था ? उसकी उत्पत्ति कहाँ से हुई ? यदि वह सनातन था तो आगे भी सनातन क्यों नहीं रहा ? फिर वह पिण्ड आखिर था क्या ? क्या वह समान गुणों वाला पदार्थ था ? यदि हाँ तो फिर सृष्टि में आज यह विषमता, यह विभिन्नता क्यों है ? और अगर यह पिण्ड ही रूप बदल रहा है या उस समय बदल रहा था जिस समय विस्फोट हुआ तो उसका आदिस्वरूप क्या था ? हर वस्तु का कारण कहीं-न-कहीं अवश्य होता है--सिवाय किसी शाश्वत वस्तु के। 
      अगर यह मान भी लिया जाय कि पिण्ड ही टूट कर बदल गया है तो फिर समान आकार और गुणों  की रचनाएँ भी क्या आकस्मिक विस्फोट का कारण हैं ? यहाँ यह विचारणीय है कि परमाणु की संरचना और ब्रह्माण्ड की संरचना एक ही है। जिस  प्रकार विभिन्न प्रकार के परमाणुओं की अनेक संख्याओं से पदार्थ की रचना होती है, उसी प्रकार पदार्थों के समूह से ग्रह-नक्षत्र पिंडों का निर्माण होता है। सौरमंडलों, ग्रह-नक्षत्र-मंडलों, आकाश-गंगाओं का भी निर्माण इसी प्रकार हुआ है। सभी छोटे कण क्रमानुसार बड़े कणों की परिक्रमा करते हैं। क्या यह सब आकस्मिक विस्फोट का परिणाम है ? आकस्मिक विस्फोट से नियमबद्ध रचनाओं की कल्पना करना किस स्तर की अज्ञानता है-- इस पर हम-आप स्वयं विचार कर सकते हैं।

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