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हां, फर्क है। साइंस आब्जेक्टिव है, पदार्थगत है। योग सब्जेक्टिव है, आत्मगत है। विज्ञान खोजता है पदार्थ, योग खोजता है परमात्मा।
यह पुनर्स्मरण, यह पुनर्वापसी की यात्रा योग कैसे करता है, उस संबंध में भी कुछ बातें खयाल में ले लेनी चाहिए। क्योंकि कृष्ण ने कहा, उसके ही सतत अभ्यास से परमात्मा में प्रतिष्ठा उपलब्ध होती है। मैं कहूंगा, पुनर्प्रतिष्ठा उपलब्ध होती है।
है क्या योग? योग करता क्या है? योग की कीमिया, केमेस्ट्री क्या है? योग का सार-सूत्र, राज, मास्टर-की क्या है? उसकी कुंजी क्या है? तो तीन चरण खयाल में लें।
एक, मनुष्य के शरीर में जितनी शक्ति का हम उपयोग करते हैं, इससे अनंत गुनी शक्ति को पैदा करने की सुविधा और व्यवस्था है। उदाहरण के लिए, आपको अभी लिटा दिया जाए जमीन पर, तो आपकी छाती पर से कार नहीं निकाली जा सकती, समाप्त हो जाएंगे। लेकिन राममूर्ति की छाती पर से कार निकाली जा सकती है। यद्यपि राममूर्ति की छाती में और आपकी छाती में कोई बुनियादी भेद नहीं है। और राममूर्ति की छाती की हड्डियों में जरा-सी भी किसी तत्व की ज्यादा स्थिति नहीं है, जितनी आपकी हड्डियों में है। राममूर्ति का शरीर उन्हीं तत्वों से बना है, जिन तत्वों से आपका। राममूर्ति क्या कर रहा है फिर?
राममूर्ति, जिस शक्ति का आप कभी उपयोग नहीं करते–आप अपनी छाती का इतना ही उपयोग करते हैं, श्वास को लेने-छोड़ने का। यह एक बहुत अल्प-सा कार्य है। इसके लायक छाती निर्मित हो जाती है। राममूर्ति एक बड़ा काम इसी छाती से लेता है, कारों को छाती पर से निकालने का, हाथी को छाती पर खड़ा करने का।
और जब राममूर्ति से किसी ने पूछा कि खूबी क्या है? राज क्या है? उसने कहा, राज कुछ भी नहीं है। राज वही है जो कि कार के टायर और टयूब में होता है। साधारण सी रबर का टयूब होता है, लेकिन हवा भर जाए एक विशेष अनुपात में, तो बड़े से बड़े ट्रक को वह लिए चला जाता है। राममूर्ति ने कहा कि मैं अपने फेफड़े से वही काम ले रहा हूं, जो आप टायर और टयूब से लेते हैं। हवा को एक विशेष अनुपात में रोक लेता हूं, फिर छाती से हाथी गुजर जाए, वह मेरे ऊपर नहीं पड़ता, भरी हुई हवा के ऊपर पड़ता है। पर एक प्रक्रिया होगी फिर उस अभ्यास की, जिससे छाती हाथी को खड़ा कर लेती है।
हमारे शरीर की बहुत क्षमताएं हैं, जिनका हम हिसाब नहीं लगा सकते। वे सारी की सारी क्षमताएं अनुपयुक्त, अनयूटिलाइज्ड रह जाती हैं। क्योंकि जीवन के काम के लिए उनकी कोई जरूरत ही नहीं है। जीवन के लिए जितनी जरूरत है, उतना शरीर काम करता है।
अगर हम वैज्ञानिकों से पूछें, तो वैज्ञानिकों का खयाल है कि दस प्रतिशत से ज्यादा हम अपने शरीर का उपयोग नहीं करते। नब्बे प्रतिशत शरीर की शक्तियां अनुपयोगी रहकर ही समाप्त हो जाती हैं। जीते हैं, जन्मते हैं, मर जाते हैं। वह नब्बे प्रतिशत शरीर जो कर सकता था, पड़ा रह जाता है।
योग का पहला काम तो यह है कि उन नब्बे प्रतिशत शक्तियों में से जो सोई पड़ी हैं, उन शक्तियों को जगाना, जिनके माध्यम से अंतर्यात्रा हो सके। क्योंकि बिना शक्ति के कोई यात्रा नहीं हो सकती है। एनर्जी, ऊर्जा के बिना कोई यात्रा नहीं हो सकती है। अगर आप सोचते हैं कि हवाई जहाज किसी दिन बिना ऊर्जा के चल सकेंगे, तो आप गलत सोचते हैं। कभी नहीं चल सकेंगे।
हां, यह हो सकता है, हम सूक्ष्मतम ऊर्जा को खोजते चले जाएं। बैलगाड़ी चलती है, तो ऊर्जा से। पैदल आदमी चलता है, तो ऊर्जा से। सांस चलती है, तो ऊर्जा से। सब मूवमेंट, सब गति ऊर्जा की गति है, शक्ति की गति है।
अगर आप सोचते हों कि परमात्मा तक बिना ऊर्जा के सहारे आप पहुंच जाएंगे, तो आप गलती में हैं। परमात्मा की यात्रा भी बड़ी गहन यात्रा है। उस यात्रा में भी आपके पास शक्ति चाहिए। और जिस शक्ति का आप उपयोग करते हैं साधारणतः, वह शक्ति आपके जीवन के दैनिक काम में चुक जाती है, उसमें से कुछ बचता नहीं है। और अगर थोड़ा-बहुत बचता है–अगर थोड़ा-बहुत बचता है–तो भी आपने उसको व्यर्थ फेंक देने के उपाय और व्यवस्था कर रखी है।
कुछ बचता नहीं। आदमी करीब-करीब बैंक्रप्ट, दिवालिया जीता है। जो शक्ति उसे मिलती है, दैनंदिन कार्यों में चुक जाती है। और जो शक्ति छिपी पड़ी है, उसे वह कभी जगा नहीं पाता।
तो योग का पहला तो आधार है, छिपी हुई पोटेंशियल ऊर्जा को जगाना। सब तरह के उपाय योग ने खोजे हैं कि वह कैसे जगाई जाए। इसलिए प्राणायाम खोजा। प्राणायाम आपके भीतर सोई हुई शक्तियों को हैमर करने की, चोट करने की एक विधि है। फिर योग ने आसन खोजे। आसन आपके शरीर में छिपे हुए जो ऊर्जा के स्रोत-क्षेत्र हैं, उन पर दबाव डालने की प्रक्रिया है, ताकि उनमें छिपी हुई शक्ति सक्रिय हो जाए।
आपने ट्रेन को चलते देखा है। शक्ति तो बहुत साधारण-सी उपयोग में आती है, पानी और आग की, और दोनों से बनी हुई भाप की। लेकिन भाप के धक्के से इंजन का सिलेंडर धक्का खाकर चलना शुरू हो जाता है। फिर ट्रेन चल पड़ती है। इतनी बड़ी शक्ति, इतने बड़े वजन की ट्रेन सिर्फ पानी की भाप, स्टीम चलाती है।
आपके शरीर में भी बहुत-सी शक्तियां हैं, जिन शक्तियों को दबाकर सक्रिय किया जाए, तो आपके भीतर न मालूम कितने सिलेंडर चलने शुरू हो जाते हैं, जो कि अभी बिलकुल वैसे ही पड़े हैं। इन शक्तियों के बिंदुओं को, जहां शक्ति छिपी है, योग चक्र कहता है। प्रत्येक चक्र पर छिपी हुई शक्तियां हैं। और प्रत्येक चक्र को दबाने के, गतिमान करने के, डायनेमिक करने के आसन हैं, प्राणायाम की विधियां हैं।
हम भी साधारणतः उपयोग करते हैं, हमारे खयाल में नहीं होता है। आपने कभी खयाल किया है कि रात आप सिर के नीचे तकिया रखकर क्यों सो जाते हैं? कभी खयाल नहीं किया होगा। कहते हैं कि नींद नहीं आती है, इसलिए सो जाते हैं। तकिया रखकर आप न सोएं, तो नींद क्यों नहीं आती?
जब आप तकिया नहीं रखते, तो शरीर के खून की गति सिर की तरफ ज्यादा होती है। क्योंकि सिर भी शरीर की सतह में, बल्कि शरीर से थोड़ा नीचे ढल जाता है। तो सारे शरीर का खून सिर की तरफ बहता है। और जब खून सिर की तरफ बहता है, तो सिर के जो तंतु हैं, मस्तिष्क के, वे खून की गति से सजग बने रहते हैं। फिर नींद नहीं आ सकती। खून बहता रहता है, तो मस्तिष्क के तंतु सजग रहते हैं। तो फिर नींद नहीं आ सकती। तो आप तकिया रख लेते हैं।
और जैसे-जैसे आदमी सभ्य होता जाता है; तकिए बढ़ते चले जाते हैं–एक, दो, तीन! क्यों? क्योंकि उतना सिर ऊंचा चाहिए, ताकि खून जरा भी भीतर न जाए। नहीं तो मस्तिष्क की दिनभर इतनी चलने की आदत है कि जरा-सा खून का धक्का और सिलेंडर चालू हो जाएगा; आपका मस्तिष्क काम करना शुरू कर देगा।
योगी शीर्षासन लगाकर खड़ा होता है। आप समझें कि दोनों का नियम एक ही है, तकिया रखने का और शीर्षासन का आधारभूत नियम एक ही है। उलटा काम कर रहा है वह। वह सारे शरीर के खून को सिर में भेज रहा है। योगी जब शीर्षासन लगाकर खड़ा हो रहा है, तो वह कर क्या रहा है? वह इतना ही कर रहा है कि वह सारे शरीर के खून की गति को सिर की तरफ भेज रहा है।
अभी जितना आपका मस्तिष्क काम कर रहा है, वैज्ञानिक कहते हैं कि सिर्फ एक चौथाई मस्तिष्क काम करता है, तीन चौथाई बंद पड़ा हुआ है, स्टैगनेंट, वह कभी कोई काम नहीं करता। खून की तीव्र चोट से वह जो नहीं काम करने वाला मस्तिष्क का हिस्सा है, सक्रिय किया जा सकता है। क्योंकि यह हिस्सा भी खून की चोट से ही सक्रिय होता है। खून का धक्का आपके मस्तिष्क के बंद सिलेंडर को गतिमान कर देता है।
मस्तिष्क के वे हिस्से सक्रिय हो जाएं, जो मौन चुपचाप पड़े हैं, तो आपकी समझ और आपके विवेक में आमूल अंतर पड? जाते हैं–आमूल अंतर पड़ जाते हैं। आप नए ढंग से सोचना और नए ढंग से देखना शुरू कर देते हैं। नए ढंग से, एक नई दृष्टि, और एक नया द्वार, न्यू परसेप्शन, डोर्स आफ न्यू परसेप्शन, प्रत्यक्षीकरण के नए द्वार आपके भीतर खुलने शुरू हो जाते हैं।
मैंने उदाहरण के लिए कहा। इस तरह के शरीर में बहुत-से चक्र हैं। इन प्रत्येक चक्र में छिपी हुई अपनी विशेष ऊर्जा है, जिसका विशेष उपयोग किया जा सकता है। योगासन उन सब चक्रों में सोई हुई शक्ति को जगाने का प्रयोग है।
ओशो – गीता-दर्शन – भाग 3, (अध्याय—6)
प्रवचन—नौवां - योग का अंतर्विज्ञान
Rajesh Saini
बहुत सुनदर ज्ञान देने के लिए धन्यवाद
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