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अन्नादि कोष को पार करके जब साधक विज्ञानमय कोष मे पहुँचता है ।
तब जीव आत्मा एवं ब्रह्म का भेद समझ जाता है ।a गीता मे श्री कृष्ण ने कहा कि जीव जब सोते है तब योगी जागता है जब जीव जागते है तब योगी सोता है अर्थात योगी की भूमिका जगत क्रिया एवं मोहादि से परे है। वरूण ने भृगु को उद्दालक को श्वेतकेतु ने ब्रह्मा ने इन्द्र को अंगिरा ने विस्वान को तप( कर्म= क्रिया) करने को कहा है ।
इच्छा कि परिणति क्रिया क्रिया की परिणति ज्ञान होता है अतः तप करने से ही ज्ञान कि प्राप्ति होती है।
आत्मसाक्षात्कार के लिए चार सुलभ साधना सें
१, #सोहं_साधना २, #आत्ममानुभूति ३, #स्वर_साधना
४, #ग्रंन्थिभेद
१, #सोहंसाधना
सोहं साधना मे तीनो महाकारण शरीर एक हो जाते है:--
प्रात काल पूर्व कि ओर मुह करके, मेरूदण्ड को सीधा रखकर दोनों हाथों को समेट कर अपनी गोद मे रखे एवं नेत्र बन्द करे। अब नासिका द्वारा वायु भीतर प्रवेश करने लगे तब सुक्ष्म कर्णेन्द्रिय सजग करके ध्यान पूर्वक अवलोकन करे कि वायु के साथ साथ "सो" की सुक्ष्म ध्वनि हो रही है ।s सांस जब रूके तक "अ" तथा वायु निकलते वक्त "हं" कि ध्वनि पर ध्यान केन्द्रित करे।
इसके साथ ही ह्रदय स्थित सुर्यचक्र ये प्रकाश बिन्दु मे आत्मा के तेजामय स्फुलिंग की भावना करे ।
जब सांस भीतर hजायें तब "सो" की ध्वनि कि अनुभव करे यह तेज बिन्दू परमात्मा का प्रकाश है सांस रूकने पर"अ" की भावना करे ओर बहार सांस निकलते समय "हं" कि ध्वनि अर्थात मै हुआ की भावना करे।
"सो" ब्रह्म या प्रतिबिंब है
"अ" प्रकृति का और "हं" जीव का प्रतीक है।
इस "सोहं" का प्रत्येक सांस को आवागमन पर ध्यान करने से जीव मुक्त हो जाता है ।
सोहं लोम विलोम साधना-- सोहं का विलोम "हंस" है "हंसः" विशुद्ध परमात्व तत्त्व है।
सांस लेते समय " सोहं" एवं छोड़े समय "हंस" की भावना करने से परमात्मा तत्त्व शीघ्र प्राप्त होता है ।
#आत्मानुभूति
आसन लगा कर बैठे अंदर की हवा को बाहर निकाले फिर पूरी हवा फेफड़ों मे भरे।३-४ लम्बे सांस लेवें एवं अपने हाथ पांव शरीर को शिथिल करे मन को विचार शुन्य करे भावना करे कि शरीर को अंदर नीला आकाश व्याप्त हो रहा है ।
शरीर शिथिल होने जाने पर ह्रदय स्थल मे अंगुठे ये बराबर ज्योति स्वरूप प्राण शक्ति का ध्यान करेo। मै अजर अमर ईश्वरीय अंश इसी रूप मे शुद्ध आत्मा हुं।उस ज्योति की कल्पना नेत्रों से दर्शन करते हुवे मन मे भावना बनाये रखें । अखिल आकाश मे नीलवर्ण के आकाश मे बहुत ऊपर सुर्य को समान ज्योतिस्वरूप आत्मा अवस्थित करें। kअपने निष्पन्द शरीर को देखिये एवं भावना करे कि शरीर के अंग प्रत्यंग के कार्य भाव विचार मेरे मन के आधीन है एवं मन पर विजय मैंने प्राप्त करती है ।
अपने आपको आकाश नें सुर्यमण्डल मे अवस्थितमाने एवं भावना करे कि मै समस्त संसार भूमण्डल पर अपनी प्रकाश किरणें फेक रहा हुँ
अशोक वशिष्ठ जी
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