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भावशरीर स्थूलशरीर का ही एक भाग है जो मत्यु के बाद उसी के साथथोडे़ समय बाद नष्ट हो जाता है इससे परे सुक्ष्मशरीर है जो जीवात्मा का स्व- शरीर है aमनुष्य मे यह शरीर चौदह ससे इक्कीस वर्ष की उम्र तक विकसित हो जाना चाहिए।
इसकेपूर्णविकास न होने पर मनूष्य कमी रह जाती है इसके विकास से बुद्धि तर्क विचार विकसित होते है इसी शरीर के विकास से संस्कृति का विकास होता है इसमें सन्देह विचार श्रद्धा विवेक की सम्भावनाएँ है।
सन्देह और विेचार जनमजात है श्रद्धा और विवेक रूपान्तरण है sसन्देह से श्रद्धा एवं विचार से ही विवेक उत्पन्न होता है।।
विचारकरने वाला अन्धविश्वासी हो जाता है वह हठधर्मी व दुराग्रही हो जाता हैh विवेक वाले का निर्णय निश्चित व स्पष्ट होता है
जो सक्ष्म शरीर को विकसित कर लेते है उनके चेहरे के चारो और आभा मण्डल (ओरा) दिखाई देता है जो आत्मा का प्रकाश है यह आभा मण्डल सुक्ष्म कणो से बना होता है oजो आँखो से नही दिखाई देता इसी सुक्ष्म शरीर से स्थुल शरीर का निर्माण होता है
अधिकांश मनुष्य इसी शरीर पर रूक जाते है kउनको यह जीवन ही सब कुछ मालुम होता है आगे के जीवन की उनकी कल्पना ही नही होती।
इस शरीर का सम्बन्ध कुण्डलिनी के " मणिपुर चक्र" से होता है
नोट--- मैं बहुत कम पढा लिखा व्यक्ति हुँ लिखने त्रिकुटियाँ बहुत होती है उसके लिए क्षमा चाहता हुँ
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