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भाग--02
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परम श्रद्धेय ब्रह्मलीन गुरुदेव पण्डित अरुण कुमार शर्मा काशी की अद्भुत अध्यात्म-ज्ञानगंगा में पावन अवगाहन
पूज्यपाद गुरुदेव के श्रीचरणों में कोटि-कोटि नमन
भारतीय संस्कृति और साधना में वैश्वानर जगत को सर्वश्रेष्ठ और उच्चतम ज्ञान-विज्ञान का विपुल भंडार बतलाया गया है। इस सत्य को वैज्ञानिकों और परामनोविज्ञान के कई आचार्यों ने भी अब स्वीकार कर लिया है। इसका कारण अति महत्वपूर्ण है। मनोविज्ञान मन की प्रथम दो अवस्थाओं का विज्ञान है और परामनोविज्ञान है--शेष दो अवस्थाओं का। आधुनिक भौतिक विज्ञान की दृष्टि में जगत मानव से निरपेक्ष है और मानव जगत से। वैज्ञानिक जीवन और जगत में अर्थ खोजता है लेकिन इस दिशा में उसके लिए सबसे बड़ी कठिनाई यह है कि वह अपने आपको एक ऐसे क्षेत्र में पाता है जहाँ उसके परिचित सब वैज्ञानिक साधनों और प्रयोगों की सीमा समाप्त हो जाती है। उसे अपनी विवशता का आभास होने लगता है। इसकी वास्तविकता इसी से समझी जा सकती है कि पदार्थ की मूल इकाई इलेक्ट्रॉन के विश्लेषण में वैज्ञानिक गण असमर्थ हैं। वे उसकी केवल कल्पना ही कर सकते हैं। वैज्ञानिकों को जब पदार्थ की मूल इकाई इलेक्ट्रॉन की गतिविधियों में कोई कार्य-कारण सम्बन्ध स्थापित करने में सफलता नहीं मिली तो उन्हें यह मानने को विवश होना पड़ा कि भौतिक सत्ता के आगे कोई अभौतिक सत्ता भी है। उसमें प्रवेश कर उच्चतम वैज्ञानिक सत्यों का साक्षात्कार हो सकता है जो भौतिक चेतना के स्तर पर संभव नहीं है और अभौतिक सत्ता बाह्य जगत में नहीं बल्कि स्वयं मानव मन में है।
पश्चिमी वैज्ञानिक इस समय भारतीय योगशास्त्र को पहले की अपेक्षा ज्यादा महत्व दे रहे हैं।(अभी 21 जून, 2015 को अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस मनाने में विश्व के 177 देशों ने भाग लेकर अपनी योग के प्रति रूचि प्रकट कर दी--जो इस बात का प्रमाण है की भारतीय योग कितना महत्व रखता है)। हालाँकि यह अलग बात है कि अष्टांगयोग में इन बाहरी प्राणायाम और आसनों का कोई ज्यादा महत्व नहीं है।। महत्व है तो उस सूक्ष्म और अंतरंग प्राणायाम और उन आसनों का जो हमें अभौतिक सत्ता की और ले जाने में काम आते हैं। इन आसनों से हमारी दैहिक ऊर्जा कम से कम विसर्जित होती है। वैज्ञानिक जानते हैं कि बिना योग की सहायता लिए सूक्ष्म वैश्वानर जगत में प्रवेश असंभव है।
वैश्वानर लोक से विश्व ब्रह्माण्ड के समस्त लोक लोकान्तरों और ग्रह नक्षत्र मंडलों तथा उन पर निवास करने वाले प्राणियों का ब्रह्माण्ड ऊर्जा अर्थात् cosmic rays द्वारा अदृश्य सम्बन्ध है। ह इसे प्रकृति- प्रदत्त सम्बन्ध ही कहेंगे। विश्व बह्माण्ड में दो ही स्वीकृत मूल तत्व हैं--जड़तत्व और चेतनतत्व। पहला स्थूल और दृश्य है। दूसरा सूक्ष्म और इसीलिए अदृश्य है। एक की अधिकता और दूसरे की न्यूनता से स्थूल सृष्टि तथा दूसरे की अधिकता और पहले की न्यूनता से सूक्ष्म सृष्टि होती है। इन्हीं दोनों तत्वों को तंत्र में 'शिवतत्व' और 'शक्तितत्व' की संज्ञा दी गयी है। sabhar shiv rama Tiwari
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