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मूलाधार चक्र की साधना करने के तीन प्रमुख फायदे



मूलाधार शरीर का सबसे बुनियादी चक्र है। मूलाधार साधना पीनियल ग्लैंड से जुड़ी है, और इस साधना से तीन बुनियादी गुण सामने आ सकते हैं। जानते हैं इन गुणों के बारे में।

 
मूलाधार का मतलब है मूल आधार, यानी यह हमारे भौतिक ढांचे का आधार है। अगर यह आधार स्थिर नहीं हुआ, तो इंसान न तो अपना स्वास्थ ठीक रख पाएगा, न ही अपनी कुशलता और संतुलन ठीक रख पाएगा। इंसान के विकास के लिए ये खूबियां बहुत जरुरी हैं। जिस व्यक्ति की टांगे कांपती हों, उसे आप सीढिय़ां नहीं चढ़वा सकते। अगर आपके पैर जरा भी कमजोर होंगे तो आप चलना ही नहीं चाहेंगे, आप सिर्फ आराम करना चाहेंगे।

मूलाधार साधना से जुड़ा है कायाकल्प का मार्ग

योग का एक पूरा सिद्धांत मूलाधार से विकसित हुआ, जो इस शरीर के अलग-अलग इस्तेमाल से लेकर इंसान के अपनी परम संभावना तक पहुंचने से जुड़ा है। मूलाधार से एक पहलू सामने आया, जिसे हम कायाकल्प के नाम से जानते हैं। काया का मतलब है शरीर, और कल्प का मतलब है इसे स्थापित करना, इसमें स्थायित्व लाना। इसका एक अर्थ है शरीर को लम्बे समय तक बनाए रखना। कल्प समय की एक इकाई भी है, जो काफी लंबी होती है - आप इसे सदी के रूप में समझ सकते हैं। तो आप इस शरीर को सदियों तक टिकाए रखना चाहते हैं। ऐसे कई लोग हुए हैं, जो कई सौ साल जिंदा रहे, क्योंकि उन्होंने कायाकल्प का अभ्यास किया था। इस प्रक्रिया में आप अपने शरीर के बुनियादी तत्व मिट्टी को अपने वश में कर लेते हैं।

ऐसे कई लोग हुए हैं, जो कई सौ साल जिंदा रहे, क्योंकि उन्होंने कायाकल्प का अभ्यास किया था।

भूतशुद्धि में एक आयाम मिट्टी भी है, जिसके जरिए इस तत्व को, बल्कि जीवन-रस को अपने सिस्टम में लाने की काबिलियत पैदा की जाती है। आप पारे को ठोस रूप में बदलते हैं। इसमें द्रव(लिक्विड) को एक ठोस के रूप में स्थापित किया जाता है। चूंकि पारे को धरती का रस माना गया है, ऐसे में अगर आप एक ऐसे द्रव(लिक्विड) को जो प्राकृतिक तौर पर ठोस अवस्था में नहीं रहता, उसे ठोस में बदलने में कामयाब हो जाते हैं, तो यही कायाकल्प है।

खुद को एक चट्टान की तरह बना सकते हैं

मानव शरीर के कई पहलू समय के साथ खराब होने लगते हैं, पर आप उन्हें इस तरह से स्थिर कर देते हैं कि ये बदलाव पूरी तरह रुक नहीं जाता, पर इस हद तक धीमा हो जाता है कि ऐसा लगता है कि आपकी उम्र ढल ही नहीं रही। फिर आप एक ऐसी काया बन जाते हैं, जो युगों तक टिकी रहती है। अपने यहां ऐसे बहुत से लोग हुए हैं, लेकिन इसके लिए, शरीर को पत्थर की तरह बनाने के लिए बहुत अधिक काम करने की जरुरत होती है।

  अगर किसी खास तरीके से ऐसा हो जाए तो पीनियल ग्लैंड से एक स्राव(डिस्चार्ज) होता है, जिसे योग में अमृत कहा गया है। 

मान लीजिए आप किसी पत्थर को गौर से देखते हैं और यह समझने की कोशिश करते हैं कि वह कैसे बना है, वह कौन सी चीज है जिसकी वजह से वह इतने समय तक टिका रहता है, और फिर आप अपने शरीर को उसी की तरह बनाने की कोशिश करते हैं। दूसरे शब्दों में कहें, तो आप खुद एक चट्टान की तरह बन जाते हैं।

पीनियल ग्लैंड से निकलने वाले अमृत के अलग-अलग गुण

यह क्षमता कई अलग-अलग तरीकों से आती है। कायाकल्प का एक खास आयाम है। मानव शरीर में एक पीनियल ग्लैंड होता है। योग साधना में इसे नीचे की ओर लाने की कोशिश की जाती है, जिसे दक्षिण की ओर बढ़ना कहते हैं। इसका एक प्रतीक शिव का दक्षिण की ओर बढ़ना भी है, क्योंकि उनकी तीसरी आंख दक्षिण की ओर बढ़ी थी। जो माथे में ऊपर की ओर थी, वह दोनों आंखों के बीच नीचे की ओर आ गई। जैसे ही ये नीचे आई, उन्हें ऐसी-ऐसी चीजें दिखाई दीं, जिसे कभी किसी ने नहीं देखा था। अगर किसी खास तरीके से ऐसा हो जाए तो पीनियल ग्लैंड से एक स्राव(डिस्चार्ज) होता है, जिसे योग में अमृत कहा गया है। इस अमृत को या तो आप अपने सिस्टम में लेकर उसे मजबूत करके अपने शरीर की उम्र बढ़ा सकते हैं, या फिर इस अमृत से सिस्टम में परमानंद पैदा कर सकते हैं। किसी नशीले पदार्थ की तरह यह आपमें जबर्दस्त विस्फोट भी भर सकता है। आप चाहें तो इस अमृत का इस्तेमाल अपने बोध को बढ़ाने के लिए भी कर सकते हैं।

तीन बुनियादी तरीकों से हो सकता है अमृत का इस्तेमाल

अमृत के इस्तेमाल के ये तीन बुनियादी तरीके हैं। या तो आप इस अमृत के इस्तेमाल से अपने शरीर को पत्थर की तरह मजबूत बना लें, जिससे आप खुद को लंबे समय तक जीवित रख सकेंगे। तब ज्यादातर लोग आपको परामानव समझते हैं। या फिर इस अमृत के द्वारा अपने भीतर एक ऐसा परमानंद या मादकता की अवस्था ला सकते हैं, जहां आपको इस बात की परवाह ही नहीं रहती कि आप कितने दिन जिएंगे। या फिर आप खुद को हवा की एक पतली परत की तरह बना लें, जहां आपका बोध बहुत अधिक बढ़ जाए क्योंकि आपके सिस्टम में कोई प्रतिरोध ही नहीं बचता। कायाकल्प में आमतौर पर इस अमृत का इस्तेमाल शरीर को मजबूत बनाने और सिस्टम की उम्र बढ़ाने के लिए किया जाता है। हालांकि इस ग्रंथि से होने वाला स्राव आपके सिस्टम में तभी सही तरह से काम कर पाएगा, जब यह आपके बोध को बढ़ाएगा, क्योंकि अगर आपका बोध नहीं बढ़ेगा, तब तक आपके जीवन का किसी भी मायने में विस्तार नहीं होगा। आपका जीवन किसी और की नजर में खास होगा। अगर आप एक पत्थर की तरह हो जाते हैं तो जीवन का अनुभव नहीं बदलेगा, हां दूसरे लोगों को लगेगा कि आप शानदार हैं। हम आपसे एक मूर्ति बना सकते हैं, क्योंकि तब आप पत्थर हो जाते हैं। आपको पत्थर की तरह होने की जरूरत नहीं है।

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