भैरव-भैरवी तंत्र: चेतना और ऊर्जा के अद्वैत का रहस्य
जब हम शक्ति को केवल पूजा की प्रतिमा तक सीमित कर देते हैं, तब तंत्र का असली स्वरूप हमारी दृष्टि से ओझल हो जाता है। तंत्र में भैरव-भैरवी का संसार केवल श्रद्धा का विषय नहीं, बल्कि **चेतना और ऊर्जा के परम मिलन** का प्रतीक है। यह वह रहस्य है जहाँ **जीवन और मृत्यु, भय और आनंद, शून्य और ज्वाला** एक बिंदु पर जाकर विलीन हो जाते हैं। भैरव और भैरवी: अस्तित्व के दो छोर तंत्र कहता है: भैरव** — पूर्ण शून्य, जहाँ मन थम जाता हैभैरवी** — प्रचंड ऊर्जा, जो निरंतर नृत्यरत है ये दोनों अलग नहीं, बल्कि एक ही सत्य के **द्वैत रूप** हैं। साधक का लक्ष्य इन्हें विरोधी नहीं, **एकात्म** रूप में अनुभव करना है। ऊर्जा-योग: जहाँ शरीर साधन और चेतना साक्षी भैरव-भैरवी साधना केवल संबंध नहीं, बल्कि **ऊर्जा का योग** है। इस मार्ग में: * इच्छाएँ ध्यान में रूपांतरित होती हैं * ऊर्जा उत्कर्ष की ओर मुड़ती है * साधक अहं को त्याग देता है यह मिलन शरीर का नहीं, बल्कि **प्राण और चैतन्य** का होता है — जहाँ साधक स्वयं को खोकर वास्तव में **स्वयं को पाता** है। श्मशान: भय से पार जाने की प्रयोगशाला** श्मशान इसलिए तांत्रिक भ...