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तंत्र का रहस्य

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तंत्र का रहस्य विविध प्रकार के त्रास अर्थात वैसे रक्षा करते हुए जो त्राण अर्थात रक्षा करे वही तंत्र है अतः तंत्र किसी प्रकार का अहित कारी है ही नहीं और तंत्र शास्त्र की उत्पत्ति भी मनुष्य को विभिन्न प्रकार के भयो रोगभय शत्रुभय राजभय उत्पातभय से सुरक्षित रखने हेतु विशेष साधना पद्धति से हुआ है।
जो विभिन्न अलौकिक सुख वह रक्षाकार होने के साथ ही प्रालौकिक मुक्ति का ईश्वरीय साक्षात्कार का उत्तम साधन है aलेकिन कुछ व्यक्तियों ने व्यक्तिगत स्वार्थ हेतु तंत्र का दुरुपयोग करके दूसरों को हानि पहुंचाने वाले अभिचार कर्मों को भी जन्म दिया है।
जो पाप मूलक वह निंदनीय है किसी भी तंत्रवित्ता को जब तक जीवन पर संकट ना हो तंत्र के दुरुपयोग करने का निषेध है केवल जीवन पर संकट उपस्थित होने और रक्षा का कोई साधन ने बचने पर ही अभिचार कृत्य की आज्ञा है।
इसी कारण आज तंत्र में तांत्रिक भय का एक पर्याय कारण बन चुका है जबकि वास्तव में वह साधना और रक्षा का पर्याय है तंत्र तथा तांत्रिक के नाम पर लोग जटा में दाढ़ी बढ़ाए ऐसे कुत्सित रूप की कल्पना कर लेते हैं जो शमशान में जाकर शव का भक्षण कर रहा हूं अनर्गल हवन कर रहा हूं मुंण्डधारी आदि वेशभूषा में हूं जबकि ऐसा कुछ भी नहीं है यह एक ही शुद्ध सात्विक उपासना है और एक सामान्य सांसारिक व्यक्ति उपासना को कर सकता है।
यही कारण है कि अनादिकाल से ही तंत्र शास्त्र की मान्यता है तांत्रिक उपासना में विधि-विधान का पूर्ण ज्ञान आवश्यक है विधि रहित वह त्रुटिपूर्ण उपासना लाभ करने के स्थान पर अशुभकारी भी हो सकती है आते हैं तंत्र शास्त्र की दीक्षा लेने के साथ ही सर्वप्रथम किस के संपूर्ण विधि विधान का ज्ञान होना आवश्यक है आज तक ऐसा कोई ग्रंथ उपलब्ध नहीं जिसमें क्रमश  सभी विधि-विधान का संकलन हो और विधि पूर्वक साधना न होने साधना कभी सफल नहीं हो सकती है और असफलता के कारण तंत्र विद्या पर अविश्वास होना स्वाभाविक है।
इसी प्रयोजन से समस्त विधि-विधान का ज्ञान आवश्यक है जो अत्यंत जटिल वह समय साध्य है किसी भी प्रयोग को सिद्ध करने से पहले साधक को इन सभी क्रियाओं एवं विधियों का पालन करना होगा तभी सिद्धि संभव है साधना कोई भी हो कठिन होती है sअर्थात साधना तलवार की धार पर चलने के समान है सभी के लिए संभव नहीं है लाखों व्यक्तियों में से एक दो व्यक्ति ऐसी चेष्टा करते हैं और प्रयत्नशील ऐसे लाखों लोगों में से कोई एक सिद्धि प्राप्त कर पाता है।
साधना में ज्यादातर लोग कमीज पजामा पहन कर बैठते हैं पर आपको ज्ञात होना चाहिए कि साधना में अनसिला एक वस्त्र पहना जाता है इसी प्रकार साधना नियमाकुल ना होने के कारण सफल नहीं होती है।
तंत्र साधना में मन तथा इंद्रियों पर संयम अनिवार्य है जिसका मन तथा इंद्रियों पर संयम न हो वे साधना के योग्य नहीं है अतः तंत्र साधना के नियमित योग साधना भी आवश्यक है।
आतम संयम इंद्रिय संयम एवं मनोनिग्रह का स्वरूप यह है कि व्यक्ति विषम परिस्थितियों में भी काम के वशीभूत में हो सके यदि साधक पुरुष है तो सभी नारी मात्र को मां के रूप में और साधक स्त्री है तो पुरुष मात्र को पुत्र के रूप में देखें साधक का संयम ऐसा हो कि रूप गर्विता नवयौवना युवती के समक्ष भी जिस व्यक्ति ने कामवासना जागृत ना हो उसमें भी मातृभाव की दृष्टि हो इसी प्रकार महिला साधक के हृदय में भी पुरुष मात्र के प्रति पुत्रवत वात्सल्य हो ऐसे साधक ही तंत्र विद्या के अधिकारी हैं।
एक उल्लेखनीय बात यह है कि 11 मंत्र को सिद्ध करने में ही काफी समय लगता है ऐसी स्थिति में व्यक्ति जीवन पर्यंत कुछ ही मंत्र सिद्ध कर सकता है यदि लोकहित की कामना से अनेक मंत्र सिद्ध करना चाहे तो उसके निमित्त ग्रहण काल में मंत्र सिद्ध करने की सरल विधि है हां उसे प्रयोग में ला सकते हैं।
सफलता की दृष्टि से यह भी आवश्यक है की तांत्रिक प्रयोग हेतु जिन वस्तुओं की आवश्यकता होती है वह भी प्रामाणिक हो या तो व्यक्ति स्वयं उनका ज्ञाता हो और स्वयं संग्रह करें अन्यथा बाजार से क्रय करने पर भी वास्तव में वह वस्तु शुद्ध है या नहीं इसका ध्यान भी रखना चाहिए अन्यथा प्रयोग असफल वह व्यर्थ होगा तांत्रिक को चाहिए कि द्वेषवश भयवश लोभवश कभी भी मंत्र का दुरुपयोग ना करें और इसका व्यावसायिक उपयोग भी कदापि न करें अन्यथा सिद्धि समाप्त होने के साथ साथी अपना भी लोक परलोक नष्ट होगा केवल लोकहित की कामना से जनमानस के कष्टों का निराकरण हेतु ही इस विद्या का सदुपयोग करें इसका दुरुपयोग कभी न करें।
कुछ स्वार्थी साधकों द्वारा लोभवश द्वेषवश या स्वार्थवश तंत्र का दुरुपयोग मारण मोहन उच्चाटन वशीकरण आदि षटकर्म एवं अभिचार कर्म करते हैं अतः जनसाधारण को भी सावधान रहना चाहिए व्यक्ति इन अभिचारों से कैसे बच सकता है कोई भी मंत्र तभी सफल होता है hजबकि पहले पुरश्चरण करके विधि पूर्वक उसे सिद्ध कर लिया जाए बिना मंत्र सिद्ध किए हुए वह प्रभावी नहीं हो सकता अतः बिना सिद्ध किए हुए किसी मंत्र का प्रयोग करने की चेष्टा न करें व्यर्थ ही होगा एक और बात उल्लेखनीय है राजनेताओं उच्चाधिकारियों प्रतिष्ठित जनों के संपर्क में अनेक ऐसे स्वार्थी व्यक्ति आते रहते हैं जो अपने को परायोगी सिद्ध त्रिकालदर्शी तांत्रिक आदि नाम देकर अपनी व्यक्तिगत स्वार्थ वर्ष संपर्क करते हैं भविष्य की जिज्ञासा पदोन्नति एवं धन की लिप्सा आदि मानव की दुर्बलता स्वाभाविक है और बड़े-बड़े शिक्षित व्यक्ति भी इनके शुद्र चमत्कारों के प्रभावित होकर इनके चक्र में फंस जाते हैं। और कालांतर में यही अनिष्ट का कारण बनते हैं अतः किसी को भी गुरु बनाने से पहले पूर्ण परिचय ज्ञात करने की उसकी शिक्षा आचरण ज्ञान आदि का भी अवलोकन कर ले बहुधा लोग अनेक व्यक्तियों से परामर्श लेते रहते हैं यह एक भ्रांति है कि विभिन्न लोगों से परामर्श करने से सही मार्गदर्शन होगा ऐसा करने से और भी भ्रांति ही बढ़ेगी और यह उचित भी नहीं है सोच विचार कर किसी एक को गुरु बनाएं उसी पर पूर्ण श्रद्धा और विश्वास रखें कुछ साधक प्राय लोगों को अपने शूद्र चमत्कारों से वशीभूत कर लेते हैं उन से लाभ उठाते हैं और कालांतर में अपने हित साधन या स्वार्थवश उसीका अनिष्ट करने में भी नहीं चूकते हैं‌।
जिस प्रकार कोई व्यक्ति अपनी कार्य संपादन हेतु किसी अपराधिक व्यक्ति का आश्रय लेता है तो उसका वह कार्य भी कर देता है किंतु बाद में वही व्यक्ति एवं उसका भी उत्पीड़न करने से नहीं चूकता है।
उदाहरण स्वरूप शत्रु के मारण प्रयोग हेतु शत्रु के बाल पैर की धूल वस्त्र आदि की आवश्यकता होती है जो सीधे या सुलभता से मिल नहीं सकते ऐसे में वह व्यक्ति अपने शत्रु के पास किसी माध्यम से किसी ऐसे व्यक्ति को भेजता है जो आप को प्रभावित कर सके और आप उस पर विश्वास कर सकें कालांतर में उसके प्रति आपका पूर्ण विश्वास हो जाने पर वह व्यक्ति आपके शत्रु के पास से सामग्री प्राप्त कर पहुंचा सकता है आपका विश्वस्त बनाए यही व्यक्ति आपके प्रति अभी चार अनिष्ट कारी प्रयोग कर सकता है। oमैंने भी ऐसे कई लोगों को देखा है जो बहुत ज्ञानी सज्जन लेकिन वह भी अनेकों से परामर्श लेने की अपनी प्रकृति के कारण तांत्रिकों से पीड़ित रहे है और उनके द्वारा तांत्रिकों को निश्चित लाभ पहुंचा है कुछ तांत्रिक लोग ऐसे तंत्र प्रयोग करके अपने जीवन को इतना कलंकित पापी और अपवित्र कर लेते हैं कि उनकी मृत्यु के समय की घटनाओं का स्मरण करके ही मन थरथराने लगता है। कोई चमत्कार दिखाना भभूत आदि उत्पन्न करना हाथ उठाकर हवा में कोई वस्तु प्रकट करना आपका चिंतित कार्य छाप देना बीती भी घटनाएं बता देना आदि भूत प्रेत अथवा जादू अथवा रासायनिक क्रियायें हैं यह उत्कृष्ट साधना नहीं है जबकि तांत्रिक उपासना का लक्ष्य पुरुषार्थ धर्म अर्थ काम तथा मोक्ष साधना है विशिष्ट तांत्रिक साधना से ही अष्टधा सिद्धियों की उपलब्धि होती है।
अर्थात अपनी शरीर या किसी वस्तु को अति सूक्ष्म कण वह अणुरूप में घटित करना गुरुतर बना देना बड़ा बना देना हल्का बना देना दूर की वस्तु प्राप्त करना उत्पन्न इच्छाओं की पूर्ति होना समस्त इंद्रियों व प्राणी मात्र पर नियंत्रण एवं ईश्वर के समान किसी कार्य को पूर्ण करने की शक्ति आते हैं उच्चतर साधना से उसे प्राप्त हिंदी से व्यक्ति में हो सकती हैं kऐसा सिद्ध व्यक्ति जो वरदान भी आशीर्वाद देता है वह निश्चित रूप से पूर्ण होता है भले ही असंभव क्यों न हो परंतु ऐसे सिद्ध का मिलना हिमालय की एकांत गुफाओं में ही संभव है। sabhar sakti upasak agyani Facebook wall

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