ब्रम्हांड की जो परा अपरा शक्ति है उससे जुडना ही अपने आप को जोड़ना ही योग है।सभी सूर्यांन्शियो को अपने क्षात्र धर्म के पताका तर आना चाहिए। हमारे देश में जो एक सौ आठ शक्ति पीठेंहैं।वह परा अपरा इसी विद्या के पाठशाला और उच्च विद्या के विद्यालय है।जिसे स्वयं शिव ने स्थापित किया था।जो शिव शिवा वंशजों को पूर्णत्व प्राप्त करने हेतु ही थे।तथा ग्यारह शिव लिंगो की स्थापना ब्रम्हवंशियो को वैष्णव विद्या ब्रम्ह विद्या को प्राप्त करने के केन्द्र स्थापित किए थे।पर अब विद्या शिक्षा दीक्षा का आडंबर मात्र रह गया है। धनोपार्जन हेतु लोग गुरु गद्दी तिकड़म से अपने लेते हैं।ऐसा में आचरण नहीं होता।सनातन बहुत सी विद्याओं का लोप हो गया है।अब विद्वानों द्वारा उन विद्याओं का शोध कर प्रगट करना अनिवार्य हो गया है। वैदिक मंत्रों के रहस्य को जाने शोध करें। प्रत्येक गांव तथा ब्लाक में एक पीठ स्थापित कर वहां पांच वर्ष से दस वर्ष के बच्चों को क्षात्रावास में प्राकृतिक परिवेश में रखकर उत्तम गुरुओ द्वारा संस्कारिक ्शारीरिक व्यवहारिक वआध्यात्मिक भाषाओ ज्ञान विज्ञान की शिक्षा देनी चाहिए।योग का संयम नियम का प्रारम्भिक ज्ञान व अभ्यास करना चाहिए।इसी प्रकार प्रत्येक जनपद में भी एक एक पीठ की स्थापना कर। बच्चों को ज्ञान विज्ञान वऊंची विद्याओं में पूर्ण रूप पारंगत बनाना चाहिए। पच्चीस वर्ष के बाद पूर्ण ज्ञान विज्ञान तथा योग सम्पन्न युवक युवतियों का सम्बन्ध कराकर तब गृहस्थ जीवन में प्रवेश कराना चाहिए। ऐसे लोग स्वयं ही नहीं पूरे समाज को व संसार को मंगल मय बना देंगे।वे स्वतह न्याय और उत्तम नीति को पालन करने वाले स्वअनुशासित लोग होंगे हर तरह की समस्या स्वतह समाप्त हो जाएगी। चरी बेइमानी अनीति तथा अन्यान्य पूर्ण कार्य ऐसे लोग करेंगे ही नहीं।वे जो भी कार्य करेंगे उसमें पूर्ण कुशल होगे। आज जीवन पद्धति अपने पूर्वजों के अनुसार न होने के कारण बच्चे अज्ञान में ही नशा व कुरीतियों तथा कुसंगतियो में फंस कर अपना जीवन नष्ट कर ले रहे हैं ।जब तक उन्हें ज्ञान होता है तब तक अपनी आधी उम्र खो चुके होते हैं। तमाम तरह के पुलिस केस उनके सर पर लद चुके होते हैं।और वे माफिया किंग डान आदि डिग्रियां हासिल कर चुके होते हैं।इस तरह समूचा समाज रसातल की राह पकड़ लिया है। फिर उन्हें कौन सम्हाले कौन रोके।मति जा भइया गडहिया की ओर।। बहुत बा चेहलवा न लागी कौनो जोर।।मति जा भइया गडहवा की ओर।।।शेष कल हर-हर महादेव जय सर्वेश्वरी
वैज्ञानिकों को इंडोनेशियाई वर्षावन के अंदरूनी हिस्सों में एक ऐसा मेंढक मिला है जो अंडे देने के बजाय सीधे बच्चे को जन्म देता है. एशिया में मेंढकों की एक खास प्रजाति 'लिम्नोनेक्टेस लार्वीपार्टस' की खोज कुछ दशक पहले इंडोनेशियाई रिसर्चर जोको इस्कांदर ने की थी. वैज्ञानिकों को लगता था कि यह मेंढक अंडों की जगह सीधे टैडपोल पैदा कर सकता है, लेकिन किसी ने भी इनमें प्रजनन की प्रक्रिया को देखा नहीं था. पहली बार रिसर्चरों को एक ऐसा मेंढक मिला है जिसमें मादा ने अंडे नहीं बल्कि सीधे टैडपोल को जन्म दिया. मेंढक के जीवन चक्र में सबसे पहले अंडों के निषेचित होने के बाद उससे टैडपोल निकलते हैं जो कि एक पूर्ण विकसित मेंढक बनने तक की प्रक्रिया में पहली अवस्था है. टैडपोल का शरीर अर्धविकसित दिखाई देता है. इसके सबूत तब मिले जब बर्कले की कैलिफोर्निया यूनीवर्सिटी के रिसर्चर जिम मैकग्वायर इंडोनेशिया के सुलावेसी द्वीप के वर्षावन में मेंढकों के प्रजनन संबंधी व्यवहार पर रिसर्च कर रहे थे. इसी दौरान उन्हें यह खास मेंढक मिला जिसे पहले वह नर समझ रहे थे. गौर से देखने पर पता चला कि वह एक मादा मेंढक है, जिसके...
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