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भैरव रहस्य

 [[[नमःशिवाय]]]

                श्री गुरूवे नम


                           भैरव रहस्य


  


अनेक साधक भैरव को शिव का अवतार मानते दार्शनिक दृष्टि से यह कथन उसी प्रकार का है कि जिस प्रकार प्रणाम को विष्णु और रुद्र को शिव के रूप में समझा जाता है इस दृष्टिकोण में प्रत्येक साधक की है और प्रत्येक शक्ति का भगवती गुण की दृष्टि से इस भैरव शिव की प्रचंड शक्तियों के नायक है इन्हें उनके गुणों का नायक माना जाता है इनका रूप बड़ा भयंकर है किंतु यह स्मरण रखना चाहिए कि जीव में स्थित यह गुण भी कार्य सिद्धि एवं मनोनुकूल ता प्राप्ति में सहायक सिद्ध होता है ब्रह्मांड में इनकी व्यापक सकता है इनके अनेक रूप हैं जैसे काल भैरव रूद्र भैरव बटुक भैरव आदि।

इनकी साधना अर्धरात्रि में मां काली की साधना की भांति शमशान में जाकर करनी चाहिए भैरव की साधना से सभी मनोकामना पूर्ण होती हैं व्यक्तिगत में प्रभाव दृष्टि में सम्मोहन ललाट में वशीकरण विद्या का वास होता है शरीर में असाधारण बल उत्पन्न होता है ।

वामाचारी साधना ओं के लिए मुख्य देवी देवता यही है पिछली पोस्टों में इनकी साधना की अत्यंत सरल विधि बताई गई है त्राटक ध्यान साधना योग की साधना तंत्र में इसका प्रयोग करने के विलक्षण सफलता प्राप्त होती है तांत्रिक बाम साधना ओं की शास्त्रीय विधि अत्यंत दुष्कर है इस कारण शास्त्री विधियों का वर्णन यहां नहीं किया गया है सामान्य साधकों को इससे कोई लाभ नही है।

काली तारा छिन्नमस्ता धूमावती त्रिपुर भैरवी त्रिपुर सुंदरी की साधना श्मशान में नग्न होकर की जाती है अनेक तांत्रिक शव साधना करते हैं पर उसका भी एक रहस्य होता है इस अवसर पर मदिरा आदि कि नैवेध चढ़ाया जाता है उसी का हव्य भी दिया जाता है।

जैसे वैज्ञानिक लोग प्रयोग करने के लिए विभिन्न प्रकार के रसायन प्रयोग करते हैं उसी प्रकार तंत्र में भी कहीं पक्षियों के पंख नख व खोपडी आदि का प्रयोग किया जाता है तांत्रिक प्रयोगों में इनका वर्णन किया गया है क्योंकि वह वह सिद्धि के भौतिक फल प्राप्त करने की क्रियाएं हैं उनके बिना काम नहीं चलता।

किंतु शक्ति सिद्धि में मूलतत्व ध्यान की एकाग्रता है यह एकाग्रता उसी भाव में हो इसलिए प्रति प्रतिमा और मंत्र का प्रयोग किया जाता है अतः इसमें सात्विक क्रिया भी सफल होती हैं।

शैवमार्ग मे मातृशक्ति के साधकों मे इसी पूजा पद्धति की महत्ता है आज आर्यवर्त में जिस धर्म का आचरण समाज में दिखाई पड़ता है वह वैदिक धर्म और शैवधर्म का मिलाजुला रूप है और आज यही पूजा पद्धति समस्त आर्यवर्त में स्थापित हो गई है किंतु वास्तविक व मां की पूजा पति सर्वथा भिन्न है इसके सिद्धांत भी बड़े विचित्र हैं यह पूजा पद्धति वैदिक रूप से संगठित समाज की नैतिक मान्यताओं के सर्वथा विपरीत है।

इसलिए यह सामाजिक नहीं है परंतु कभी यह भी सामाजिक थी क्योंकि इससे अनुयायियों के समाज का गठन उसी प्रकार का था उस समय भी यह पूजा पद्धति सार्वजनिक नहीं थी अपितु साधक-साधिकाओं के प्रयोग में थी तथापि इसकी जानकारी समाज को थी इस पूजा को एवं पूजा करने वालों को आदर की दृष्टि से देखा जाता था।

आज के वैदिक मार्ग तांत्रिक एवं वैदिक संस्कृति के विद्वान वाममार्गी इस पूजा पद्धति का बखान करने बैठते हैं तो इसे वे कहते हैं कि कबाइली लोगों का एक समुदाय प्रकृति में होते प्रजनन के कारण लिंग और योनि की पूजा करने लगा था।

किंतु कितने विस्मय की बात है कि यही महापंडित शिवलिंग की महिमा गाते हुए दृष्टिगत होते हैं जो लिंग और योनि के संभोग रथ स्थिति का ही एक प्रतीक है उस समय में स्मरण नहीं रहता कि यह काबाइलियों की अज्ञानता का प्रतीक है उनके पूजन के योग्य नहीं है इन मूर्खों ने वाममार्ग की वैज्ञानिकता को समझा ही नहीं यह केवल अंधआस्ता के शिकार हैं।

इनकी दृष्टि में वैदिक धर्म एवं रीति ही सर्व विकसित व्यवस्था है और सारा ज्ञान वही समाहित है यह मानने में इनकी हेठी होती है कि विश्व में कोई अन्य मार्ग भी वैज्ञानिक सत्य की मंजिल तक पहुंच सकता है यह सभी संप्रदाय वाद से प्रभावित लोग हैं अत:इनकी व्याख्या भी इसी से प्रभावित होती है कि यह शिव को वैदिक परंपरा में ही मानते हैं क्योंकि दूसरों के देव को यह कैसे आदर दे सकते हैं।

 शिव भैरव काल भैरव बटुक भैरव वीरभद्र गणेश काली तारा छिन्नमस्ता धूमावती त्रिपुर सुंदरी त्रिपुर भैरवी की सभी शैवमार्ग के देवता हैं अतः इनकी साधना भी वाममार्गी है

कुछ लोग यहां पर प्रसन्न करते हैं कि आप साधनाओं की विधि व मंत्र क्यों नहीं लिखते इसका यह कारण है की बगैर दीक्षित हुए या संप्रदाय की परंपरा मालूम नहीं होने पर इनके मंत्र और साधनाएं जीवन को कष्ट पूर्ण बना देती हैं sabhar kaulachar Facebook wall

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