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राजयोग तन्त्रमं:मस्तिष्क के सूक्ष्म केन्द्रों को जागृत करके दूर की स्थिति को जान सकते हैं

 

मस्तिष्क के सूक्ष्म केन्द्रों को जागृत करके दूर की स्थिति को जान सकते हैं। रेडियो टेलीविजन मोबाइल फोन की तरह देखा सुना जा सकता है। यहां तक कि अपने पूर्वजों पीरों पैगम्वरों के संवाद सुन सकते हैं। प्रकृति के अदृश्य भेदों को जान सकते हैं। अपनी आभा प्राण उर्जा को सघन व विस्तृत कर सकते हैं। तथा सूक्ष्म शरीर से समूचे ब्रम्हांड में विचरण कर सकते हैं। लौकिक पारलौकिक कार्यों का सम्पादन कर सकते हैं।

यह सूक्ष्म तथा स्थूल शरीर समूचे ब्रम्हांड का एक नमूना है।जो ब्रम्हांड में तमाम ग्रह नक्षत्र बिखरे पड़े हैं, जिनका आदि अंत का पता नहीं है,उसी ब्रम्हांड की एक छोटी सी आकृति यह हमारी मानव काया है।योग की व्यापक क्रियाओं को पूर्ण रूपेण केवल अघोरेश्वर ही जान पाते हैं। क्योंकि अघोरेश्वर सदा से अनादि काल से अघोरेश्वर ही होते हैं समय समय पर अपने योग्य सन्तानों दीक्षा देने के लिए धरा पर अवतरित होते हैं।इसीसे सनातन विद्या आज तक धरती पर है।

साधारण लोग तो तमाम भ्रान्तियों में ही फंस जाते हैं। ईश्वर द्वारा हमको प्रदान की गयी साधन स्वरूप यह काया,यह दिव्य शरीर,अजीमो अज़ीम यह रूहेपैकर,मानव विज्ञान के परे की बात है। विज्ञान इसके विषय में पूरी जानकारी नहीं पा रहा है। जितना खोजेगा उतनी ही उपलब्धियां मिलती जाएगी। विज्ञान से हम अपने शरीर की रचना व सारीरिक क्रियाएं ही जान पाते हैं। परन्तु इसकी हमता तथा शक्ति आदि सूक्ष्म गतियों के साथ साथ ईश्वर की ब्रम्हाण्डीय रचना व उससे अपना संबंध और ईश्वरीय लीला आदि नहीं जान सकते।उसे आध्यात्म द्वारा ही जाना जा सकता है। परन्तु ईश्वर के विषय में जितना ज्ञान विज्ञान योग अन्य साधनों द्वारा हम जानते जाते हैं वह उतना ही अनन्त होता जाता है। जिसके विषय अनन्त हैं तो वह कितना अनन्त होगा। कल्पना नहीं की जा सकती। जिसके मामुली विषय को जानने के लिए ज्ञान विज्ञान अभी तक गोता खा रहा है, उसके सौवें अंश तक का भेद नहीं पा सका तो उसकी पूर्ण जानकारी विज्ञान के लिए असम्भव ही है।

हां विज्ञान प्रकृति प्रदूषण कर जगत नाश अवश्य कर सकता है

हर-हर महादेव जय सर्वेश्वरी

Sabhar Maheshwar singh facbook wall

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