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अंगूर के बीज से निकला PCC1: उम्र बढ़ाने वाली संभावित

 अंगूर के बीज से निकला PCC1: उम्र बढ़ाने वाली संभावित दवा हाल ही में चीनी शोधकर्ताओं ने पाया है कि अंगूर के बीजों से प्राप्त एक प्राकृतिक यौगिक PCC1 (प्रोसायनिडिन C1) वृद्ध (सेनेसेन्ट) कोशिकाओं को लक्षित करके चूहों में उम्र बढ़ाता है। इस शोध में PCC1 को लैब माउसों में दिया गया, जिससे उनके शरीर से वृद्ध कोशिकाएँ चुनिंदा रूप से नष्ट हो गईं और चूहों का जीवनकाल बढ़ गया nature.com medicalnewstoday.com । प्रयोगशाला में PCC1 देने वाले चूहों ने स्वस्थ अवस्था ( healthspan ) के साथ लंबी उम्र देखी; इन चूहों ने बचे हुए जीवनकाल में लगभग 60% तक विस्तार दिखाया और कुल आयु में करीब 9–10% की वृद्धि हुई asianscientist.com medicalnewstoday.com । इसी शोध से उम्मीद जगी है कि भविष्य में मानवों में भी ऐसी दवाएँ उम्र बढ़ने की प्रक्रियाओं को कम कर सकेंगी। प्रमुख खोजें PCC1 क्या है: प्रोसायनिडिन C1 अंगूर के बीज से प्राप्त एक फ्लावोनॉयड यौगिक है, जिसे प्राकृतिक उत्पादों की स्क्रीनिंग में पहचाना गया। यह वृद्ध कोशिकाओं पर काम करके उन्हें नष्ट करता है और स्वस्थ कोशिकाओं को सुरक्षित रखता है punjabkesari.in । चूहो...

भाव और ऊर्जा का ह्रास: चेतना, श्वास और प्राण का सूक्ष्म विज्ञान

  मनुष्य केवल मांस, अस्थि और रक्त का पिंड नहीं है, बल्कि वह भाव, ऊर्जा और चेतना का एक जीवित तंत्र है। हमारे भीतर उठने वाला प्रत्येक भाव (Emotion) केवल मानसिक घटना नहीं होता, वह ऊर्जा की एक तरंग है—एक ऐसा कंपन, जो हमारे श्वास-प्रणाल और प्राण-तंत्र को सीधे प्रभावित करता है। जैसे विद्युत का नंगा तार मात्र स्पर्श से शरीर को झकझोर देता है, वैसे ही तीव्र भाव चेतना के उस सेतु को हिला देता है, जो हमें विश्व-ऊर्जा (Cosmic Energy) से जोड़ता है। भाव का उदय और कंपन का जन्म जब हृदय में कोई तीव्र भाव—क्रोध, भय, वासना, ईर्ष्या या अत्यधिक आसक्ति—उत्पन्न होता है, तो सबसे पहले सूक्ष्म कंपन (Vibration) जन्म लेता है। यह कंपन केवल मन तक सीमित नहीं रहता, बल्कि— श्वास की प्राकृतिक लय को तोड़ देता है हृदय की धड़कनों को अनियमित करता है मस्तिष्क की तरंगों को अशांत करता है इस क्षण से मनुष्य सचेत अवस्था से प्रतिक्रियात्मक अवस्था में चला जाता है। श्वास-विकृति और प्राण-ऊर्जा का क्षय भारतीय योग और तंत्र परंपरा में श्वास को प्राण का द्वार माना गया है। जहाँ श्वास नियंत्रित है, वहाँ प्राण सुरक्षित है। जहाँ श्व...

काम ऊर्जा को प्रेम ऊर्जा में रूपांतरित करने के उपाय

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 काम ऊर्जा को प्रेम ऊर्जा में कैसे बदले 'काम ऊर्जा' (sexual energy) को 'प्रेम ऊर्जा' (love energy) में कैसे रूपांतरित किया जा सकता है—विभिन्न आध्यात्मिक, योगिक और मनोवैज्ञानिक दृष्टिकोणों के माध्यम  काम ऊर्जा को प्रेम ऊर्जा में रूपांतरित करने के उपाय काम ऊर्जा से प्रेम ऊर्जा में रूपांतरण काम ऊर्जा (यौन ऊर्जा) को जीवन-रचनात्मकता की मूलभूत शक्ति माना जाता है। योग, तंत्र और आध्यात्मिक परंपराओं में इसे सूक्ष्म जीवन-बल की तरह देखा गया है, जिसे साधना द्वारा नियंत्रित करके उच्चतर प्रेममयी या आध्यात्मिक ऊर्जा में परिवर्तित किया जा सकता है। यह ऊर्जा मानव भावनाओं और रचनात्मकता का स्रोत मानी जाती है। आधुनिक मनोविज्ञान में भी कामवासना (यौन प्रवृत्ति) को एक मूल प्रेरक बल माना जाता है, जिसे परिष्कृत कर कला, शोध या समाजसेवा जैसी ऊँची गतिविधियों में लगाया जा सकता है योगिक दृष्टिकोण योगिक परंपरा में ब्रह्मचर्य को कामऊर्जा नियंत्रण की सर्वोच्च कुंजी माना जाता है। ब्रह्मचर्य का मतलब कामवासना पर संयम है, जिससे काम ऊर्जा उच्च आध्यात्मिक ऊर्जाओं (ओजस शक्ति) में परिवर्तित होती है  योग ग्रंथों...

भैरव-भैरवी तंत्र: चेतना और ऊर्जा के अद्वैत का रहस्य

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जब हम शक्ति को केवल पूजा की प्रतिमा तक सीमित कर देते हैं, तब तंत्र का असली स्वरूप हमारी दृष्टि से ओझल हो जाता है। तंत्र में भैरव-भैरवी का संसार केवल श्रद्धा का विषय नहीं, बल्कि **चेतना और ऊर्जा के परम मिलन** का प्रतीक है। यह वह रहस्य है जहाँ **जीवन और मृत्यु, भय और आनंद, शून्य और ज्वाला** एक बिंदु पर जाकर विलीन हो जाते हैं। भैरव और भैरवी: अस्तित्व के दो छोर तंत्र कहता है: भैरव** — पूर्ण शून्य, जहाँ मन थम जाता हैभैरवी** — प्रचंड ऊर्जा, जो निरंतर नृत्यरत है ये दोनों अलग नहीं, बल्कि एक ही सत्य के **द्वैत रूप** हैं। साधक का लक्ष्य इन्हें विरोधी नहीं, **एकात्म** रूप में अनुभव करना है। ऊर्जा-योग: जहाँ शरीर साधन और चेतना साक्षी भैरव-भैरवी साधना केवल संबंध नहीं, बल्कि **ऊर्जा का योग** है। इस मार्ग में: * इच्छाएँ  ध्यान  में रूपांतरित होती हैं * ऊर्जा उत्कर्ष  की ओर मुड़ती है * साधक अहं को त्याग देता है यह मिलन शरीर का नहीं, बल्कि **प्राण और चैतन्य** का होता है — जहाँ साधक स्वयं को खोकर वास्तव में **स्वयं को पाता** है। श्मशान: भय से पार जाने की प्रयोगशाला** श्मशान इसलिए तांत्रिक भ...

क्या चौथी डाइमेंशन (4th Dimension) में जीव रहते हैं

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  क्या चौथी डाइमेंशन ( 4th Dimension ) में जीव रहते हैं ? वैज्ञानिक दृष्टि से इसका कोई प्रत्यक्ष प्रमाण नहीं है कि चौथी डाइमेंशन में जीव रहते हैं। लेकिन इस विषय को दो तरह से समझा जा सकता है:  विज्ञान के अनुसार (Physics / Cosmology) भौतिक विज्ञान में हम जिन तीन डाइमेंशनों को जानते हैं— लंबाई (Length) चौड़ाई (Width) ऊँचाई (Height) इनके अलावा समय (Time) को अक्सर चौथी डाइमेंशन माना जाता है। इसलिए विज्ञान कहता है: 🔹 चौथी डाइमेंशन = समय यह कोई रहने की जगह नहीं बल्कि एक भौतिक पैरामीटर है। अब कुछ वैज्ञानिक " Higher Dimensions " (5th, 6th, 10th, 11th dimensions) को स्ट्रिंग थ्योरी के आधार पर मानते हैं, लेकिन उनमें जीवन होने का कोई प्रमाण नहीं मिला है।  आध्यात्मिक / दार्शनिक दृष्टि से भारत की आध्यात्मिक परंपराओं में “लोक” या “आयाम” ( Dimensions ) की अवधारणा है। उदाहरण: भूरलोक (3D) अंतरिक्ष / स्वर्ग लोक (Higher Dimensions) सूक्ष्म दुनिया ( Subtle Realm ) इन ग्रंथों के अनुसार कुछ सूक्ष्म जीव या ऊर्जा-रूप higher dimensions में हो सकते हैं, लेकिन य...

एपिजेनेटिक रीप्रोग्रामिंग: वैज्ञानिकों ने उम्र बढ़ने की प्रक्रिया को उलटने का रास्ता खोजा

  एपिजेनेटिक रीप्रोग्रामिंग: वैज्ञानिकों ने उम्र बढ़ने की प्रक्रिया को उलटने का रास्ता खोजा |  मानव हमेशा से लंबी और स्वस्थ जिंदगी का सपना देखता आया है। लेकिन अब यह सपना पहले से कहीं ज्यादा सच होता दिख रहा है। एपिजेनेटिक रीप्रोग्रामिंग (Epigenetic Reprogramming) नामक तकनीक ने वैज्ञानिकों को कोशिकाओं में उम्र बढ़ने (Aging) की प्रक्रिया उलटने में मदद की है। चूहों पर किए गए प्रयोगों में यह तकनीक इतनी प्रभावी साबित हुई कि दृष्टि और मस्तिष्क का कार्य तक वापस लौट आया। यही कारण है कि आज यह तकनीक मानव दीर्घायु (Human Longevity) की दुनिया में सबसे बड़ा वैज्ञानिक बदलाव मानी जा रही है। एपिजेनेटिक रीप्रोग्रामिंग क्या है? (What is Epigenetic Reprogramming?) हमारे DNA में मौजूद जीन उम्र के साथ नहीं बदलते, लेकिन उन्हें ऑन/ऑफ करने वाले एपिजेनेटिक मार्क्स उम्र के साथ खराब होने लगते हैं। इसी बदलाव को हम एजिंग (Aging) कहते हैं। एपिजेनेटिक रीप्रोग्रामिंग में वैज्ञानिक विशेष जीन (जिन्हें Yamanaka Factors कहा जाता है) को सक्रिय करते हैं, जो इन पुराने एपिजेनेटिक मार्क्स को रीसेट कर द...

एक ही चेतना : ब्रह्मांड का मूल स्वरूप

  एक ही चेतना : ब्रह्मांड का मूल स्वरूप हममें से अधिकांश लोग अपने को एक अलग “मैं” मानकर जीते हैं — एक शरीर, एक मन, एक कहानी। लेकिन जब हम गहराई में उतरते हैं — चाहे ध्यान की शांति में, चाहे क्वांटम भौतिकी के सूक्ष्म जगत में — तो एक ही बात बार-बार सामने आती है: सारा ब्रह्मांड एक ही चेतना का खेल है। वही चेतना जो इस समय आपके भीतर ये शब्द पढ़ रही है, वही चेतना दूर किसी तारे के कोर में हाइड्रोजन को हीलियम में बदल रही है। वही चेतना किसी गली के कुत्ते के भीतर भूख का अहसास बनकर दौड़ रही है और किसी पेड़ की पत्तियों में क्लोरोफिल के रूप में सूर्य का प्रकाश सोख रही है। यह चेतना कोई “चीज़” नहीं है जिसे हम कहीं रख सकें। यह अनुभव करने वाली ऊर्जा है — वह जीवंतता जो हर परमाणु में कंपन कर रही है।  लहर और सागर का पुराना दृष्टांत आज भी जीवित है उपनिषदों ने हजारों साल पहले कहा था — “तत्त्वमसि” (तू वही है)। आधुनिक भौतिकी भी अब उसी निष्कर्ष पर पहुँच रही है, बस अलग भाषा में। क्वांटम उलझाव ( Quantum Entanglement ) बताता है कि दो कण एक-दूसरे से अरबों प्रकाश-वर्ष दूर भी हो सकते हैं, फिर भी एक का माप तुर...