{{{ॐ}}} # यह विषय हम सीधे-सीधे कुण्डलिनी साधना से जोड़ रहे है। जो भी व्यक्ति साधनाओं में रूचि रखते हैं। वो आज्ञा चक्र पर दस से बीस मिनट ध्यान करें। ध्यान बढ़ने पर या तो यह स्वत: सहस्त्रार पर जाएगा अथवा संकल्प से ले जाना पडे़गा। सहस्त्रार पर भी बीस मिनट ध्यान करें। इस प्रकार प्रतिदिन कम से कम चालीस मिनट एक बार में ध्यान अवश्य करें। ध्यान और बढ़ने पर यह ऊर्जा सहस्त्रार से पीछे की ओर नीचे गिरेगी व मूलाधार तक पहुंचेगी। इस प्रकार एक बार सातों चक्रो में स्फुरणा प्रारम्भ हो जाएगी। यह साधना का प्रथम सोपान है इसके हम ज्ञान खण्ड की संज्ञा दे रहे है। इस सोपान में प्रज्ञा बुद्धि व्यक्ति के भीतर विकसित होने लगती है, सत चित्र, आनन्द से उसका सम्पर्क बनने लगता है। भीतर तरह-तरह का ज्ञान विज्ञान स्फुरित होने लगेगा। कभी-कभी किसी चक्र को ऊर्जा अधिक मिलने से उसकी सिद्धि, शक्ति अथवा विकृति का भी सामना करना पड़ेगा। किसी-किसी चक्र में ऊर्जा के भवंर से व्यक्ति को कुछ कठिनार्ईयों का सामना भी करना पड़ेगा। रास्ता बनाने के लिए ऊर्जा जोर मारती है व मीठे-मीठे अथवा कभी...
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