**************************** भाग --02 ********* परम श्रद्धेय ब्रह्मलीन गुरुदेव पण्डित अरुण कुमार शर्मा के श्रीचरणों में कोटि-कोटि नमन -----:भगवान् का विचार क्यों ?::----- ****************************** यदि भगवान् पर विचार करना है तो हमें सभी पूर्व मतों से दूरी बनानी पड़ेगी। तटस्थ रहना होगा। तटस्थ ठीक उसी तरह जैसे नदी के किनारे खड़ा वृक्ष बहती हुई धारा के प्रति तटस्थ रहता है। हमें भी उसी तरह से उनके प्रति निरपेक्ष रहना है, तभी ईमानदारी से इस बिंदु पर विचार हो सकता है। हम किसी मत पर न तो आस्था रखें और न अनास्था। तभी हम भगवान् के सही स्वरूप को जान-समझ सकते हैं। भगवान् के बारे में हम क्यों विचार करें ? यह भी एक उचित तर्क है। अगर हम अपने अस्तित्व, मति, गति को आकस्मिक मान लें तो फिर भगवान् पर विचार करना आवश्यक नहीं। लेकिन अध्यात्म और विज्ञान--दोनों का कहना है कि कोई भी कार्य बिना कारण के संभव नहीं है । फिर हमारे अस्तित्व का क्या कारण है ? हर वस्तु का एक कारण होता है और उन सभी कारणों का भी एक कारण हो
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