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आदिशक्ति

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                                                                        #आदिशक्ति

हमारा शरीर एक ऊर्जा परिपथ से संचालित होता है इसका ऊर्जा चक्र निर्धारित है जो प्रकृति ने किया हुआ है इसी ऊर्जा चक्र के कारण उसे सभी कर्म करने होते हैं ऊर्जा चक्र की इस व्यवस्था से हमारे संघर्षशील कर्म के द्वारा तकनीकी द्वारा ऊर्जा चक्र में परिवर्तित किया जा सकता हैa क्या इसे सिद्ध किया जा सकता है जैसा संस्कृत की हुआ है ऐसे तो बिल्कुल भी नहीं क्योंकि यह विवरण अधूरी हैं यह ऐसे शिष्यों को लिखाएं गये या रटाये गए नियम है जो प्रारंभिक सभी तकनीकों को सीख चुके होते हैं।
 जो सभी सिद्धियों के लिए सर्वप्रथम आवश्यक है। ईष्ट कोई भी हो यदि उसकी आराधना करने वाला उसमें सचमुच डूबता है तो उसी भाव को प्राप्त होगा अर्थात उस भाव की प्रवृत्ति बन जाती है भाव गहन है मानसिक शक्ति है एकाग्र होती है  वह एकाग्र होगी तो शक्तिशाली होगी यह शक्तिशाली हुई तो शरीर कि ऊर्जा तंत्र शक्तिशाली होगा। भाव बिना कोई सिद्धि नहीं होती भाव गहन नहीं है तो विस्मृति नहीं तो सिद्धि भी नहीं कई लाख मंत्र जपने और हजारों यज्ञ साधना करने का भी कोई लाभ नहीं भाव बिना पुजा भी नही है यहां तक कि भाव बिना भौतिक कर्म भी नहीं इसलिए जो आप कर रहे हैं sउसके प्रति विश्वास का प्रबल होना और उस भाव में विलीन हो जाना उस भाव की सिद्धि है यही इसमें वर्गीकरण है।
इसी शारीरिक प्राकृतिक ऊर्जा संरक्षण को तंत्र कहा जाता है इसमें जितनी तकनीकी प्रयुक्त की जाती है वह सभी इसी पर पद की संभावित तकनीक है जो ब्रह्मांड इस तकनीक पर क्रिया कर रहा है एक कान से लेकर जीव तक पृथ्वी से लेकर सूर्य तक न केवल एक ही उर्जा संरचना में बंधे हुए हैं बल्कि क्रियाशीलता की तकनीक भी सब में एक ही है।
यह तकनीकी तंत्र योग सिद्धि साधना सभी में प्रयुक्त की जाती है सैद्धांतिक रूप से सभी एक स्थान पर प्रयोग एक तकनीक भी ने पर प्रक्रिया वही है गणना करने का नियम वही है बस तरीका अलग है लोग राम के ध्यान में डूबता है वह भी अच्छा परिणाम पाता है जो कृष्ण या दुर्गा के भी कोई खुदा का नाम लेकर ध्यान कोई परब्रह्म कह कर उस में लिप्त होना चाहता है इन सब को लाभ होता है।
पर यह सब उसने आदिशक्ति भगवती परांबा का ही विस्तृत रूप है जिसे लोग विभिन्न नाम लेकर उसके भाव में डूबते हैं और हमने वही प्रक्रिया होती हैh लोग मानसिक संतुष्टि से उत्पन्न आत्मबल की बात करने लगते हैं पर यह केवल इतना ही नहीं यह तो ऊर्जा का परिपथ जो हमारे शरीर के अंदर व्याप्त है यह भाव की गहनता है से उस भाव की उर्जा का शक्तिशाली और तीन केंद्रीय करण कर सकता है।
 इससे दिव्य शक्तियां उत्पन्न होने लगती है यह केवल इतना ही है कि हमारे शरीर में भाव जितना गहन होगा उसके ऊर्जा उत्पादन बिंदुओं में उतनी तीव्रता से उर्जा का उत्सर्जन होगा इससे शरीर के गुण परिवर्तित होने लगेंगे और बढ़ी हुई तरंगों को यदि वह व्यक्ति केंद्रीय कृत कर सकता है तो उसमें अतींद्रिय क्षमता विकसित होगी इन तरंगों को बढ़ाकर अंतिम सत्य को अनुभूत करने के लिए अतींद्रिय शक्तियां प्राप्त करना इन सभी पूजा-पाठ तंत्र योग साधना सिद्धि किस विषय से मार्ग कोई भी हो सभी का उद्देश्य उस परमात्मा सदाशिव में जाकर समाप्त हो जाता है और यही आदि शक्ति भी है ।
क्या यह विज्ञान है अब प्रश्न उठता है कि आखिर यह विज्ञान क्या है क्या इसकी कोई तर्कसंगत वैज्ञानिक व्याख्या हो सकती है हालांकि इस विज्ञान का महत्व पूर्ण विवरण लुप्त हो चुका है विश्वशम स्तरीय और पूर्ण रूप से स्पष्ट नहीं है जो आज उपलब्ध है इसका कारण केवल इतना है कि समाज के चोर उचक्के इस महाशक्तिशाली विज्ञान के नियमों एवं जानकारियों का प्रयोग विनाश में करने लगे।
सनातन धर्म की यह व्याख्या प्रकृति का शाश्वत धर्म है आज की भाषा में कहें तो प्रकृति की संपूर्ण ऊर्जा संरचना उसकी उत्पत्ति और क्रिया के सिद्धांत एक सूत्र का विवरण  है oकि ज्ञान जो भारत में प्राचीन काल में ब्रह्म ज्ञान तत्वज्ञान परमात्मा ज्ञान के नाम से प्रसिद्ध था और अति गोपनीय था आज लुप्त हो चुका है उसी परमात्मा के ब्रह्म ज्ञान को जाना अत्यंत जाकर है ।
वह तत्व ही सत्य है वहीं विभू है यह सृष्टि उस तत्व से उत्पन्न होने वाली एक मरीचिका है जीव की इंद्रियों की क्षमता बहुत अल्प है यह झूठे संकेत भेजते हैं इन ठगों की ही माया यह सृष्टि है यह सभी जो तर्कशास्त्र नीति शास्त्र भावुकता कल्याण भाव से भरे मनुष्य के अंदर आस्थाओं से यह बात करते रहे अर्थात एक विकसित संस्कृति हजारों वर्ष तक एक मूर्खता के पीछे दीवानी रही जो मानव भय का परिणाम है।
अर्थात परमात्मा खुदा या गॉड या जो भी आप उसे कह लें लेकिन यह भय नहीं सत्य है वेद इस इसे तत्व परम तत्व परमात्मा पुरूष आदि कहा गया है और इसे शुन्य अर्थात जीरो कहा गया है वही आदिशक्ति है इसी शुन्य से असंख्य के संख्याएं जन्म ले रही हैंk शैवमार्गी इस तत्व को सदाशिव कहते हैं यहां शिव शांति और निष्क्रियता का प्रतीक तत्व है।
यह सृष्टि उसी निष्क्रिय तत्व में बनने वाला एक भंवर है उस उर्जा भंवर की उत्पत्ति कैसे होती है यह किस ऊर्जा संरचना से बनता है यह उस उर्जा संरचना के बनने का कारण क्या है यह सब पहली पोस्टों में भी लिखा जा चुका है और यही जगन्यमाता आदिशक्ति है sabhar sakti upasak agyani Facebook wall

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