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क्या केवल सेक्स से ही बंधे रह सकते हैं स्त्री और पुरुष

L "क्या केवल सेक्स से ही बंधे रह सकते हैं स्त्री और पुरुष?"


सेक्स यह शब्द सुनते ही बहुत से लोगों के मन में या तो एक तीव्र आकर्षण उत्पन्न होता है या फिर एक प्रकार का झिझक और संकोच। भारतीय समाज में यह विषय आज भी पूरी तरह से खुलकर नहीं बोला जाता, लेकिन यह मानवीय अस्तित्व का एक स्वाभाविक और आवश्यक हिस्सा है। परंतु जब यह प्रश्न उठता है कि क्या केवल सेक्स के आधार पर कोई संबंध टिक सकता है, या क्या एक महिला और पुरुष सिर्फ सेक्स के कारण ही जीवनभर एक-दूसरे से बंधे रह सकते हैं, तब यह मुद्दा केवल शारीरिक नहीं रह जाता यह मानसिक, भावनात्मक, सामाजिक और यहां तक कि आत्मिक स्तर तक पहुंच जाता है।


मानव मनोविज्ञान की गहराई में उतरें तो यह स्पष्ट होता है कि सेक्स, रिश्तों का एक अभिन्न अंग ज़रूर हो सकता है, लेकिन यह रिश्ता बनाए रखने का इकलौता आधार नहीं हो सकता। शुरूआती आकर्षण चाहे जितना भी तीव्र क्यों न हो, समय के साथ उसका असर फीका पड़ता है। यह एक प्रकार का रसायन है, जो संबंध की शुरुआत में बहुत प्रभावशाली होता है, परंतु समय के साथ इसके प्रभाव को बनाए रखने के लिए भावनात्मक समझ, आपसी आदर और मानसिक सामंजस्य की आवश्यकता होती है।


सेक्स से जुड़े हार्मोन जैसे ऑक्सिटोसिन और डोपामिन, व्यक्ति को एक अस्थायी सुख और जुड़ाव का अनुभव जरूर कराते हैं। इन हार्मोनों के कारण दो व्यक्ति एक-दूसरे के बहुत करीब महसूस कर सकते हैं, लेकिन यह निकटता स्थायी तभी हो सकती है जब उनके बीच संवाद, समझ और भरोसा हो। एक रिश्ता, जिसमें केवल शारीरिक संबंध हैं, वह कुछ समय बाद खोखला लगने लगता है, क्योंकि इंसान केवल शरीर नहीं है वह भावनाओं, विचारों, उम्मीदों और आत्मीयता से भी बना है।


एक महिला जब किसी संबंध में होती है, तो सामान्यतः वह सेक्स के साथ-साथ सुरक्षा, स्नेह, समझदारी और सम्मान की अपेक्षा करती है। उसके लिए सेक्स केवल शारीरिक सुख नहीं होता, बल्कि एक गहराई से जुड़ा अनुभव होता है जिसमें वह अपना दिल खोलती है। यदि उसे लगे कि उसके साथ केवल शारीरिक उपयोग हो रहा है और भावनात्मक जुड़ाव नहीं है, तो वह बहुत जल्द उस संबंध से खुद को अलग कर सकती है, चाहे वह कितना भी आकर्षक क्यों न हो।


पुरुषों की बात करें, तो पारंपरिक रूप से समाज ने उन्हें यह सिखाया है कि वे सेक्स को एक प्रमुख आवश्यकता मानें। परंतु आज का पुरुष भी बदल रहा है। वह भी भावनात्मक समर्थन, समझ और अपनापन चाहता है। अकेले सेक्स उसे खुशी नहीं देता वह एक ऐसा रिश्ता चाहता है जिसमें उसे भी सुना जाए, समझा जाए और जहाँ वह अपनी भावनाओं को खुलकर व्यक्त कर सके। यदि ऐसा नहीं होता, तो पुरुष भी उस संबंध से ऊबने लगता है।


अब यदि हम समाज और संस्कृति की बात करें, तो भारतीय सामाजिक व्यवस्था में सेक्स को हमेशा ही विवाह या लंबे रिश्ते के संदर्भ में देखा गया है। यहाँ सेक्स केवल दो शरीरों का मिलन नहीं, बल्कि दो आत्माओं और दो परिवारों के जुड़ाव का प्रतीक माना जाता है। यही कारण है कि जब कोई रिश्ता केवल सेक्स पर आधारित होता है, तो समाज उसे स्थायित्व नहीं देता, बल्कि उसे अस्वीकार कर देता है। यह सामाजिक अस्वीकार्यता कई बार मानसिक और भावनात्मक दबाव बनकर व्यक्ति को भी भीतर से तोड़ने लगती है।


आज के आधुनिक समय में, जब रिश्ते सोशल मीडिया और डेटिंग ऐप्स के जरिए पलक झपकते ही बन और बिगड़ जाते हैं, तब यह सवाल और भी अधिक प्रासंगिक हो जाता है। बहुत से लोग आज इस भ्रम में जी रहे हैं कि शारीरिक आकर्षण और नियमित सेक्स एक मजबूत रिश्ते की निशानी है। लेकिन जब जीवन की वास्तविक कठिनाइयाँ सामने आती हैं जैसे आर्थिक समस्याएं, मानसिक दबाव, पारिवारिक जिम्मेदारियाँ, या स्वास्थ्य से जुड़ी चुनौतियाँ तब यह स्पष्ट हो जाता है कि केवल सेक्स किसी रिश्ते को टिकाए रखने में असमर्थ है।


इसके विपरीत, वे रिश्ते अधिक स्थायी सिद्ध होते हैं जिनमें संवाद होता है, एक-दूसरे की भावनाओं की कद्र होती है, और दोनों साथी मिलकर एक-दूसरे के जीवन को बेहतर बनाने का प्रयास करते हैं। जहाँ केवल सेक्स होता है, वहाँ उत्साह भले हो, परंतु स्थायित्व की गारंटी नहीं होती। वहाँ आकर्षण होता है, पर समर्पण नहीं। वहाँ उत्तेजना होती है, पर समझदारी नहीं।


एक और महत्वपूर्ण पक्ष यह है कि इंसान की आवश्यकताएं समय के साथ बदलती हैं। बीस की उम्र में जो चीज़ें प्राथमिक लगती हैं, चालीस की उम्र में उनका महत्व कम हो जाता है। जैसे-जैसे उम्र बढ़ती है, व्यक्ति सेक्स के बजाय companionship (साथ) की अधिक तलाश करने लगता है। वह चाहता है कि कोई ऐसा हो जो उसे बिना कहे समझे, जो उसकी चुप्पी में भी अर्थ तलाशे, और जिसके साथ वह बिना किसी दिखावे के जी सके। ऐसे में केवल सेक्स पर आधारित रिश्ता उसके लिए सतही और अधूरा हो जाता है।


यहाँ यह भी उल्लेखनीय है कि कुछ रिश्ते ऐसे होते हैं जो सेक्स के बिना भी गहराई से टिके रहते हैं। कुछ जीवनसाथी ऐसे भी होते हैं जो शारीरिक संबंधों के अभाव के बावजूद एक-दूसरे के प्रति पूर्ण रूप से समर्पित रहते हैं, क्योंकि उनके बीच सम्मान, समझ और जीवन के प्रति समान दृष्टिकोण होता है। वहीं, कई बार यह भी देखा गया है कि बहुत अच्छे शारीरिक संबंधों के बावजूद रिश्ते टूट जाते हैं, क्योंकि उनमें वह भावनात्मक परिपक्वता और आपसी समझ नहीं होती।


इसलिए, निष्कर्ष रूप में कहा जा सकता है कि सेक्स एक रिश्ता बनाने का माध्यम हो सकता है, लेकिन उसे बनाए रखने का आधार नहीं। यह रिश्ते को एक शुरुआत दे सकता है, लेकिन उसे जीवनभर की यात्रा में बदलने के लिए उसमें बहुत कुछ और चाहिए संवाद, समझ, संवेदना, साझेदारी और सबसे महत्वपूर्ण, एक-दूसरे के प्रति आत्मीयता और सम्मान। जब तक यह सारे तत्व एक साथ मौजूद न हों, तब तक कोई भी रिश्ता केवल सेक्स के आधार पर नहीं टिक सकता।


यह बात पुरुष और महिला दोनों पर समान रूप से लागू होती है। दोनों को चाहिए शारीरिक संतुष्टि के साथ मानसिक सुकून, आत्मिक जुड़ाव के साथ भावनात्मक गहराई। और जब यह संतुलन बनता है, तभी कोई रिश्ता वास्तव में पूर्ण, संतोषजनक और स्थायी बन पाता है। sabhar public authar Facebook 


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