श्रीमद्भगवद्गीता का आठवां अध्याय और वृहदारण्यकोपिषद् के छठवें अध्याय के दूसरे ब्राह्मण तथा और भी अनेकों आर्ष-ग्रन्थों के अनुसार सूर्य-चन्द्र लोक में तो युक्तयोगी को भी जाना पड़ता है शरीर छोड़ने के बाद क्रममुक्ति के क्रम में । अच्छा , इनका आध्यात्मिक महत्त्व छोड़कर केवलमेव भौतिक-दृष्टि से भी विचार करे तो सूर्य प्रकाश व चन्द्रमा शीतलता प्रदान करने के बाद भी आपसे बिजली व एसी की भांति बिल नहीं लेते । कहते हैं जितनी पृथ्वी है , उससे तिगुणा जल है , किन्तु उस सामुद्रिक जल से क्या प्रयोजन , जो न पीने के काम आये , न स्नान के और वस्त्र-प्रक्षालनादि के ही ! सूर्य की रश्मियां जब उसी सामुद्रिक-जल को खींचकर मेघमण्डल के फिल्टर में डालती है , और वह जब पुनः धरती पर बरसता है तो पीने-नहाने-वस्त्रादि धोने योग्य होता है । धरती के अंदर जाने पर उसी जल को ट्यूबवेल, कूप , चापाकल आदि के द्वारा लोग प्रयोग में लाते हैं । कुल मिलाकर सूर्य-चन्द्रमा है तो जीवन है , प्राण है , पृथ्वी है । किमधिकम् ये कलियुग के प्रत्यक्ष देवता हैं । इसी उपकार को ध्यान में रखकर भी जब सूर्य-चन्द्र ग्रहणादि का अवसर हो , उस ...
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