{{{ॐ}}} # मनस शरीर यानि मनोमय शरीर का विकास साधना के द्वारा किया जाता है यह इक्कीस वर्ष के बाद विकसित हो सकता है इसे विकसित होने सअतीन्द्रिय शक्ति आ जाती है जैसे सम्मोहन ,दुर संरेक्षण दसरो का मनपढ़ लेना शरीर से बहार निकल कर यात्रा करना अपने को शरीर से अलग करना वनस्पतियो के गुण पता लगना उपयोग करना आदि। चरक और सुश्रुत ने इसी सिद्धि से शरीर के बारिक से बारिक अंगो का भी वर्णन किया था। सुषुम्ना नाडी़ ,कुण्डलिनी और षट् चक्रों को विज्ञान अभी भी नही खोज पाया। इन विचार तरगों का प्रभाव पदार्थ पर भी पडता है संकल्प से वस्तु हिलाई व तोडी जा सकती है। विज्ञान ने भी इसके कई प्रयोग किये है योग की समस्त सिद्धियाँ जो पांतजलयोग दर्शन मे दी गयी है वे इसी शरीर के विकसित होने से आ जाती है कुण्डलिनी भी इसी शरीर की घटना है। जादु चमत्कार इसी का विकास है और इसका केन्द्र है अनाहत च...
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