ताओ कहता है अगर व्यक्ति संभोग में उतावला न हो, केवल गहरे विश्राम में ही शिथिल हो तो वह एक हजार वर्ष जी सकता है। अगर स्त्री और पुरुष एक दूसरे के साथ गहरे विश्राम में हो एक दूसरे में डूबे हों कोई जल्दी न हो, कोई तनाव न हो, तो बहुत कुछ घट सकता है रासायनिक चीजें घट सकती हैं। क्योंकि उस समय दोनों के जीवन-रसों का मिलन होता है दोनों की शरीर-विद्युत, दोनों की जीवन-ऊर्जा का मिलन होता है। और केवल इस मिलन से–क्योंकि ये दोनों एक दूसरे से विपरीत हैं–एक पॉजिटिव है एक नेगेटिव है। ये दो विपरीत धुरव हैं–सिर्फ गहराई में मिलन से वे एक दूसरे को और जीवतंता प्रदान करते हैं।
वे बिना वृद्धावस्था को प्राप्त हुए लंबे समय तक जी सकते हैं। लेकिन यह तभी जाना जा सकता है जब तुम संघर्ष नहीं करते। यह बात विरोधाभासी प्रतीत होती है। जो कामवासना से लड़ रहे हैं उनका वीर्य स्खलन जल्दी हो जाएगा, क्योंकि तनाव ग्रस्त चित्त तनाव से मुक्त होने की जल्दी में होता है।
नई खोजों ने कई आश्चर्य चकित करने वाले तथ्यों को उद्धाटित किया है। मास्टर्स और जान्सन्स ने पहली बार इस पर वैज्ञानिक ढंग से काम किया है कि गहन मैथुन में क्या-क्या घटित होता है। उन्हें यह पता चला कि पचहत्तर प्रतिशत पुरुषों का समय से पहले ही वीर्य-स्खलन हो जाता है। पचहत्तर प्रतिशत पुरुषों का प्रगाढ़ मिलन से पहले ही स्खलन हो जाता है और काम-कृत्य समाप्त हो जाता है। और नब्बे प्रतिशत स्त्रियां काम के आनंद-शिखर ऑरगॉज्म तक पहुंचती ही नहीं, वे कभी शिखर तक गहन तृसिदायक शिखर तक नहीं पहुंचतीं नब्बे प्रतिशत स्त्रियां।
इसी कारण स्त्रियां इतनी चिड़चिड़ी और क्रोधी होती हैं और वे ऐसी ही रहेंगी। कोई ध्यान आसानी से उनकी सहायता नहीं कर सकता, कोइ दर्शन, कोई धर्म, कोई नैतिकता उसे पुरुष–जिसके साथ वह रह रही है–के साथ चैन से जीने में सहायक नहीं हो सकता। और तब उनकी खीझ उनका तनाव…क्योंकि आधुनिक विज्ञान तथा प्राचीन तंत्र दोनों ही कहते हैं कि जब तक स्त्री को गहन काम-तृप्ति नहीं मिलेगी, वह परिवार के लिए एक समस्या ही बनी रहेगी। वह हमेशा झगड़ने के लिए तैयार होगी।
इसलिए अगर तुम्हारी पत्नी हमेशा झगड़े के भाव में रहती है तो सारी बातों पर फिर से विचार करो। केवल पत्नी ही नहीं, तुम भी इसका कारण हो सकते हो। और क्योंकि स्त्रियां काम संवेग, ऑरगॉज्म, तक नहीं पहुंचती, वे काम-विरोधी हो जाती हैं। वे संभोग के लिए आसानी से तैयार नहीं होतीं। उनकी खुशामद करनी पड़ती है; वे काम- भोग के लिए तैयार ही नहीं होतीं। वे इसके लिए तैयार भी क्यों हो उन्हें कभी इससे कोई सुख भी तो प्राप्त नहीं होता। उलटे, उन्हें तो ऐसा लगता है कि पुरुष उनका उपयोग करता है उन्हें इस्तेमाल किया गया है। उन्हें ऐसा लगता है कि वस्तु की भांति उपयोग कर उन्हें फेंक दिया गया है।
पुरुष संतुष्ट है क्योंकि उसने वीर्य बाहर फेंक दिया है। और तब वह करवट लेता है और सो जाता है और पत्नी रोती है। उसका उपयोग किया गया है और यह प्रतीति उसे किसी भी रूप में तृप्ति नहीं देती। इससे उसका पति या प्रेमी तो छुटकारा पाकर हल्का हो गया लेकिन उसके लिए यह कोई संतोषप्रद अनुभव न था।
नब्बे प्रतिशत स्त्रियों को तो यह भी नहीं पता कि ऑरगॉज्म क्या होता है? क्योंकि वे शारीरिक संवेग के ऐसी आनंददायी शिखर पर कभी पहुंचती ही नहीं जहां उनके शरीर का एक-एक तंतु सिहर उठे और एक-एक कोशिका सजीव हो जाए। वे वहां तक कभी पहुंच नहीं पातीं। और इसका कारण है समाज की काम-विरोधी चित्तवृत्ति। संघर्ष करनेवाला मन वहां उपस्थित है इसलिए स्त्री इतनी दमित और मंद हो गई है।
और पुरुष इस कृत्य को ऐसे किए चला जाता है जैसे वह कोई पाप कर रहा हो। वह स्वयं को अपराधी अनुभव करता है वह जानता है ”इसे करना नहीं चाहिए। ” और जब वह अपनी पत्नी या प्रेमिका से संभोग करता है तो वह उस समय किसी महात्मा के बारे में ही सोच रहा होता है। ”कैसे किसी महात्मा क पास जाऊं और किस तरह
काम-वासना से, इस अपराध से, इस पाप से पार हो जाऊं। ”
ओशो, तंत्र
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें
vigyan ke naye samachar ke liye dekhe