आप संगीत में रुचि रखते हैं, संगीत साधना(रियाज)करना चाहते हैं।
आप चित्रकार हैं, सुंदर चित्र बनाना चाहते हैं।
आप किसी समस्या के समाधान के लिए गहन चिंतन मनन करना चाहते हैं। और आपके आसपास कोई नकारात्मक सोच वाला ,चिढ़चिढ़े स्वभाव का व्यक्ति हो ,वह कुढ़ते हुये बड़बड़ा रहा हो तो आप ठीक से अपना काम नहीं कर सकते।
जो आपसे चिढ़ते हैं वे आपके कार्य में बाधा डालने का हरसंभव प्रयास करते हैं।
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लोग विशिष्ट कार्यो़ के लिए विशेष स्थान का चयन करते हैं।ताकि अवांछित लोग उनके कार्य में बाधक न बन सकें।
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अति महत्वपूर्ण कार्यों के संबंध में योजनाओं को यथासंभव गोपनीय रूप से पूरा करने का प्रयास करते हैं।
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ऋषि मुनि गहन वनों में गुफाओं में साधना के लिए स्थान इसीलिए चुनते थे।ताकि वहाँ अवांछित नकारात्मक सोचवाले लोगों से दूर रहा जा सके।
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भाव बहुत शक्तिशाली होते हैं।सारा खेल भाव ऊर्जा का ही है।अतः अपने लक्ष्य के अनुकूल भाव वालों के सानिध्य में रहना,तथा अपने लक्ष्य के प्रतिकूल भाव वाले नकारात्मक सोच वालों से दूर रहना होता है।
जब भाव बहुत सघन हो जायें तो साकार हो जाते हैं।अतः अपनी भावदशा के प्रति सचेत रहना होता है।सदैव सकारात्मक भाव दशा में रहना होता है।
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हमारी भावदशा हमारे आसपास विशेष आभामंडल को निर्मित करती है।जो हमारे संपर्क में आने वालों को प्रभावित करती है।
जैसी मनसा वैसी दशा का सूत्र पुरखे पहले ही बता गए हैं।
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अनुकूल समान भाव विचार वालों के संपर्क में हमारा आभामंडल पुष्ट होता है।इसीलिए हम ऐसी स्थिति में सुख का अनुभव करते हैं।
विपरीत प्रतिकूल भाव विचार वालों के बीच हमारा आभामंडल खंडित होता है।अतः हम इस स्थिति में दुख का अनुभव करते हैं।
जबतक हम पूर्णतः स्वयं की भावदशा पर मजबूत नियंत्रण करने में सक्षम नहीं ह़ो तबतक लोगों से मिलने जुलने पर विशेष सतर्कता आवश्यक होती है।
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साभार ऋतु सिंह सिसोदिया फेस बुक वॉल
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