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शक्ति की उपासना ही अघोर की अपनी क्रिया है

     ब्रम्हांड की जो परा अपरा शक्ति है उससे जुडना ही अपने आप को जोड़ना ही योग है।सभी सूर्यांन्शियो को अपने क्षात्र धर्म के पताका तर आना चाहिए। हमारे देश में जो एक सौ आठ शक्ति पीठेंहैं।वह परा अपरा इसी विद्या के पाठशाला और उच्च विद्या के विद्यालय है।जिसे स्वयं शिव ने स्थापित किया था।जो शिव शिवा वंशजों को पूर्णत्व प्राप्त करने हेतु ही थे।तथा ग्यारह शिव लिंगो की स्थापना ब्रम्हवंशियो को वैष्णव विद्या ब्रम्ह विद्या को प्राप्त करने के केन्द्र स्थापित किए थे।पर अब विद्या शिक्षा दीक्षा का आडंबर मात्र रह गया है। धनोपार्जन हेतु लोग गुरु गद्दी तिकड़म से अपने लेते हैं।ऐसा में आचरण नहीं होता।सनातन बहुत सी विद्याओं का लोप हो गया है।अब विद्वानों द्वारा उन विद्याओं का शोध कर प्रगट करना अनिवार्य हो गया है। वैदिक मंत्रों के रहस्य को जाने शोध करें। प्रत्येक गांव तथा ब्लाक में एक पीठ स्थापित कर वहां पांच वर्ष से दस वर्ष के बच्चों को क्षात्रावास में प्राकृतिक परिवेश में रखकर उत्तम गुरुओ द्वारा संस्कारिक ्शारीरिक व्यवहारिक वआध्यात्मिक भाषाओ ज्ञान विज्ञान की शिक्षा देनी चाहिए।योग का संयम नियम का...

भैरव रहस्य

 [[[नमःशिवाय]]]                 श्री गुरूवे नम                            भैरव रहस्य    अनेक साधक भैरव को शिव का अवतार मानते दार्शनिक दृष्टि से यह कथन उसी प्रकार का है कि जिस प्रकार प्रणाम को विष्णु और रुद्र को शिव के रूप में समझा जाता है इस दृष्टिकोण में प्रत्येक साधक की है और प्रत्येक शक्ति का भगवती गुण की दृष्टि से इस भैरव शिव की प्रचंड शक्तियों के नायक है इन्हें उनके गुणों का नायक माना जाता है इनका रूप बड़ा भयंकर है किंतु यह स्मरण रखना चाहिए कि जीव में स्थित यह गुण भी कार्य सिद्धि एवं मनोनुकूल ता प्राप्ति में सहायक सिद्ध होता है ब्रह्मांड में इनकी व्यापक सकता है इनके अनेक रूप हैं जैसे काल भैरव रूद्र भैरव बटुक भैरव आदि। इनकी साधना अर्धरात्रि में मां काली की साधना की भांति शमशान में जाकर करनी चाहिए भैरव की साधना से सभी मनोकामना पूर्ण होती हैं व्यक्तिगत में प्रभाव दृष्टि में सम्मोहन ललाट में वशीकरण विद्या का वास होता है शरीर में असाधारण बल उत्पन्न होता है । वामा...

राजयोग तन्त्रमं:मस्तिष्क के सूक्ष्म केन्द्रों को जागृत करके दूर की स्थिति को जान सकते हैं

  मस्तिष्क के सूक्ष्म केन्द्रों को जागृत करके दूर की स्थिति को जान सकते हैं। रेडियो टेलीविजन मोबाइल फोन की तरह देखा सुना जा सकता है। यहां तक कि अपने पूर्वजों पीरों पैगम्वरों के संवाद सुन सकते हैं। प्रकृति के अदृश्य भेदों को जान सकते हैं। अपनी आभा प्राण उर्जा को सघन व विस्तृत कर सकते हैं। तथा सूक्ष्म शरीर से समूचे ब्रम्हांड में विचरण कर सकते हैं। लौकिक पारलौकिक कार्यों का सम्पादन कर सकते हैं। यह सूक्ष्म तथा स्थूल शरीर समूचे ब्रम्हांड का एक नमूना है।जो ब्रम्हांड में तमाम ग्रह नक्षत्र बिखरे पड़े हैं, जिनका आदि अंत का पता नहीं है,उसी ब्रम्हांड की एक छोटी सी आकृति यह हमारी मानव काया है।योग की व्यापक क्रियाओं को पूर्ण रूपेण केवल अघोरेश्वर ही जान पाते हैं। क्योंकि अघोरेश्वर सदा से अनादि काल से अघोरेश्वर ही होते हैं समय समय पर अपने योग्य सन्तानों दीक्षा देने के लिए धरा पर अवतरित होते हैं।इसीसे सनातन विद्या आज तक धरती पर है। साधारण लोग तो तमाम भ्रान्तियों में ही फंस जाते हैं। ईश्वर द्वारा हमको प्रदान की गयी साधन स्वरूप यह काया,यह दिव्य शरीर,अजीमो अज़ीम यह रूहेपैकर,मानव विज्ञान के परे की बात...

AdSense Changing Publisher Revenue Share Structure

AdSense Changing Publisher Revenue Share Structure AdSense announced it is changing publisher revenue share structure to pay per per impression. Some say this could be better   AdSense announced it is changing publisher revenue share structure to pay per per impression. Some say this could be better Google announced that it is changing how it pays AdSense publishers, no longer paying per click and switching to exclusively paying on a per impression model. The announcement assures publishers that the amounts publishers receive should remain the same for most publishers. Google explained that these changes will go into effect in early 2024. A blog post on the AdSense blog advised publishers that they are making two changes: Revenue-share structure will be updated Publishers will be paid by impression According to AdSense, publishers have pocketed 68% of the ad revenue. Payments under the new payment structure should, according to AdSense, result in publishers receiving “about 68% of ...

आज की जानकारी पीपल, पाकड़, बरगद और गूलर के बीजों के द्वारा पौधा उगाने के विधि के विषय में-

 # #क्या आप लोगों ने कभी पीपल, पाकड़, बरगद और गूलर के बीजों से पौधा उगाकर पौधारोपड़ कियें है। Bhartiya Van-upvan  भारतीय वन-उपवन ग्रुप में बहुत लोगों की मान्यता है कि पीपल, पाकड़ , बरगद के पेड़ रोपित नहीं किए जाते हैं, वो अपने आप ही उगते है क्योंकि अनेकों पक्षियों के द्वारा इन वृक्षों के फलों को खाने के कारण पेट में ही पीपल, पाकड़, बरगद और गूलर के बीज़ पोषित होते है और उन पक्षियों के बिष्ट या मल के प्रसार के कारण ही इधर उधर उगते हैं। #और इस तरह से उगने वाले पौधों में ये मान्यता कुछ ग़लत नहीं है बिल्कुल सही है। #लेकिन जिस तरह से इस पृथ्वी पर हम मानव गतिविधियों के द्वारा निरंतर खत्म हो रहे जीवनदायिनी जंगलों एवं वृक्षों के पर बात करें तो पीपल पाकड़ और बरगद के वृक्षों को उगने के लिए पक्षियों के बिष्ट या मल पर निर्भर नहीं रहना चाहिए अब समय आ गया है कि इन वृक्षों को बीज से उगाकर अधिकतम पौधारोपण करने की। #तो आइए जानते हैं कि पीपल पाकड़ और बरगद के बीजों से पौधे कैसे उगाएं और यह हमारा पर्सनल एक्सपीरियंस है- #सबसे पहले तो हमें इन पीपल पाकड़ बरगद और गूलर के वृक्षों के नीचे जाकर इनके बीजो...

भारतीय संस्कृति

  1. अंको का अविष्कार 307 ई. पूर्व भारत में हुआ 2. शून्य का अविष्कार भारत में आर्यभट्ट ने किया 3. अंकगणित का अविष्कार पूर्व भास्कराचार्य ने किया 4. बीज गणित का अविष्कार भारत में आर्यभट्ट ने किया 5. सर्वप्रथम ग्रहों की गणना आर्यभट्ट ने 499 ई. पूर्व में की 6. भारतीयों को त्रिकोणमिति व रेखागणित का 2,500 ई.पूर्व से ज्ञान था 7. समय और काल की गणना करने वाला विश्व का पहला कैलेण्डर र भारत में लतादेव ने 505 ई. पूर्व सूर्य सिद्धान्त नामक अपनी पुस्तक में वर्णित किया  8. न्यूटन से भी पहले गुरूत्वाकर्षण का सिद्धान्त भारत में भास्कराचार्य ने प्रतिपादित किया 9. 3,000 ई. पूर्व लोहे के प्रयोग के प्रभाव वेदों में वर्षित है अशोक स्तम्भ इसका स्पष्ट प्रमाण है 10. लिम्का बुक ऑफ रिकॉर्डस् के अनुसार 400 ई. पूर्व सुश्रूत (भारतीय चिकित्सक) द्वारा सर्वप्रथम प्लास्टिक सर्जरी का प्रयोग किया गया 11. विश्व का पहला विश्वविद्यालय तक्षशिला के रूप में 700 ई. पूर्व भारत में स्थापित था जहाँ दुनिया भर के 10,500 विद्यार्थी 60 विषयों का अध्ययन करते थे 12. सूर्य से पृथ्वी पर पहुँचने वाले प्रकाश की गति की गणना सर्वप्र...

अष्टांग हृदयम (Astang hrudayam) और इस पुस्तक में उन्होंने बीमारियों को ठीक करने के लिए 7000 सूत्र लिखें थे

हार्ट अटैक..हमारे  देश  भारत  में  3000 साल  पहले  एक  बहुत  बड़े ऋषि  हुये  थे..उनका  नाम  था महाऋषि वागवट  जी उन्होंने एक   पुस्तक   लिखी थी जिसका  नाम  है अष्टांग हृदयम (Astang    hrudayam) और  इस  पुस्तक  में  उन्होंने बीमारियों  को  ठीक  करने  के लिए 7000 सूत्र  लिखें  थे  यह  उनमें  से  ही  एक  सूत्र है वागवट  जी  लिखते  हैं  कि कभी  भी  हृदय  को  घात  हो रहा  है मतलब  दिल  की  नलियों  मे blockage  होना  शुरू  हो  रहा   है ! तो  इसका  मतलब  है  कि रक्त  (blood)  में , acidity (अम्लता )  बढ़ी  हुई  है अम्लता  आप  समझते  हैं जिसको  अँग्रेजी  में  कहते  हैं acidity  अम्लता  दो  तरह  की  होती है एक...