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अक्तूबर, 2013 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

अब 'इलेक्ट्रॉनिक रक्त' से चलेगा कंप्यूटर

आईटी क्षेत्र की दिग्गज कंपनी आईबीएम ने एक ऐसे नए कंप्यूटर का नमूना पेश किया है जो मनुष्य के मस्तिष्क की संरचना से प्रेरित है. इस कंप्यूटर की ख़ास बात यह है कि यह 'इलेक्ट्रॉनिक रक्त' से संचालित होगा. क्लिक करें आईबीएम  का कहना है कि कंपनी ने प्रकृति से प्रेरणा लेते हुए इंसान के दिमाग़ जैसा ही  क्लिक करें कंप्यूटर  बनाने की कोशिश की है जो तरल पदार्थ से ऊर्जा पाकर संचालित होता है. र मनुष्य के  क्लिक करें दिमाग़  में बिल्कुल छोटी-सी जगह में असाधारण गणना की ताक़त होती है और इसमें केवल 20 वॉट की ऊर्जा का इस्तेमाल होता है. आईबीएम की कोशिश है कि उसके नए कंप्यूटर में भी ऐसी ही क्षमता हो. इस कंप्यूटर के नए रिडॉक्स फ्लो तंत्र (यह एक रासायनिक प्रतिक्रिया है जिसमें एक बार ऑक्सीकरण हुआ तो इसकी उल्टी प्रतिक्रिया में इसमें कमी आती है) के जरिए कंप्यूटर में इलेक्ट्रोलाइट 'रक्त' का प्रवाह होता है और जिससे इस कंप्यूटर को बिजली मिलती है. इलेक्ट्रॉनिक रक्त यह इलेक्ट्रोलाइट 'रक्त' दरअसल ऐसा द्रव है जिससे बिजली का प्रवाह होता है. तकनीकी क्षेत्र की इस दिग्गज कंप

समुद्र में ब्लैक होल्स

ब्रह्मांड की तरह समुद्र में भी ब्लैक होल्स हैं. वैज्ञानिकों के अनुसार अंतरिक्ष और समुद्र में पाए जाने वाले ब्लैक होल्स की गणितीय गणना एक जैसी है. (भंवर) शहरों से भी बड़े हैं. इनकी चपेट में आने पर कुछ भी नहीं बच पाता है. इस खोज से समुद्र के कचरे से निपटने, हिमखंडों के पिघलने, समुद्र के तापमान में परिवर्तन आने आदि से संबंधित शोध में महत्वपूर्ण मदद मिलेगी. अंतरिक्ष में पाए जाने वाले ब्लैक होल्स के करीब जो भी वस्तु आती है, उसे वे अपने में खींच लेते हैं. इन ब्लैक होल्स के केंद्र में इतना अधिक गुरुत्वाकर्षण होता है कि अपने आसपास की रोशनी, आकाशीय पिंड आदि तक को अपने में खींच लेते हैं और फिर इनका अस्तित्व हमेशा के लिए खत्म हो जाता है. ईटीएच ज्यूरिक के वैज्ञानिकों को अपने नवीनतम खोज में पता चला है कि दक्षिणी अटलांटिक महासागर में भी ब्लैक होल्स (भंवर) हैं. समुद्र की इन ब्लैक होल्स की गणितीय गणना आकाशीय ब्लैक होल्स की तरह की जा सकती है. समुद्र के ब्लैक होल्स के केंद्र में गुरुत्वाकर्षण इतना अधिक होता है कि इनके करीब का पानी भी इनमें समा जाता है. वैज्ञानिकों के अनुसार समुद्र के इ

पेड़ों में छिपे सोने के छोटे-छोटे कणों का पता चला

मेलबर्न : केवल परिकथाओं में ही सोने के पेड़ उगते थे लेकिन अब यह परिकल्पना हकीकत में बदल गई है। ऑस्ट्रेलियाई वैज्ञानिकों ने पेड़ों में सोने जैसी कीमती धातु की तलाश कर ली है।  पर्थ के शोधकर्ताओं ने यूकेलिप्टस के पेड़ों में छिपे सोने के छोटे-छोटे कणों का पता लगाया है। यह एक ऐसी खोज है जो भविष्य में इस कीमती धातु के भंडार खोजने में मददगार हो सकती है।  एक रिपोर्ट के अनुसार, कॉमनवेल्थ साइंटिफिक एंड इंडस्ट्रियल रिसर्च ऑर्गनाइजेशन के शोधकर्ताओं ने कहा कि उनका मानना है कि जो पेड़ स्वर्ण भंडारों वाली भूमि के ऊपर उगे हैं, उनकी जड़ें काफी गहराई में हैं। सूखे के दौरान ये जड़ें नमी की तलाश में गहराई में छिपे सोने को चूस लेती हैं। सीएसआईआरओ के भूरसायन वैज्ञानिक मेल्वन लिंटर्न ने कहा कि हम इसकी उम्मीद नहीं कर रहे थे। पत्तियों में सोने के कण मिलना हमारे लिए वाकई एक अद्भुत अवसर था। sabhar : http://zeenews.india.com उन्होंने कहा कि हमने जिन पेड़ों पर शोध किया, उन्होंने यह सोना लगभग 30 मीटर की गहराई से लिया था। यह गहराई किसी दस मंजिला इमारत की उंचाई के बराबर होगी। (एजेंसी)

जापान में बना पहला एंफ़िबियस रोबोट

जापानी वैज्ञानिकों ने पहला एंफ़िबियस रोबोट (जलस्थलचर रोबोट) का निर्माण किया है जो मानव के नियंत्रण में रहकर परमाणु बिजलीघर "फुकुशिमा-1" में उच्च विकिरण की स्थितियों में काम करने में सक्षम होगा।   तिबा प्रौद्योगिकी संस्थान के विशेषज्ञों ने इस रोबोट का प्रदर्शन किया है। इस राहतकर्ता-रोबोट का नाम "सकुरा" है जो सीढ़ियों पर चढ़ तथा उतर सकता है और जल के नीचे भी काम कर सकता है। परमाणु बिजलीघर "फुकुशिमा-1" के कई तहख़ानों और नालियों में रेडियोधर्मी जल भरा हुआ है। आम मनुष्य वहाँ राहत-कार्य नहीं कर सकता है। इससे पहले भी जापान के विभिन्न वैज्ञानिक संगठनों में भी ऐसे रोबोटों का निर्माण किया जाता रहा है लेकिन वे रोबोट ज़्यादा देर तक काम नहीं कर पाते थे। sabhar :  http://hindi.ruvr.ru और पढ़ें:  http://hindi.ruvr.ru/news/2013_09_27/244333221/

एंड्रॉयड की ऐसी रंगीन दुनिया, क्या आपने देखी है

स्मार्ट डिजिटल कैमरा आपको जानकर आश्चर्य होगा कि एंड्रॉयड का दायरा लगातार बढ़ता जा रहा है। स्मार्टफोन और टैबलेट से बाहर निकल कर एंड्रॉयड अब कैमरों में भी पहुंच चुका है। कुछ साल पहले तक डिजिटल कैमरे से फोटो खींचना बड़ी कामयाबी माना जाता था, लेकिन बदलते वक्त के साथ कैमरों की जगह स्मार्टकैमरों ने ले ली। सैमसंग और निकॉन ने स्मार्टकैमरे लॉन्च करके दुनियाभर में तहलका मचा दिया था। निकॉन का कूलपिक्स एस800सी 16 मेगापिक्सल वाला कैमरा है, जिसमें 10 एक्स ऑप्टिकल जूम के अलावा वे सभी फीचर हैं, जो किसी स्मार्टकैमरा में होते हैं। यह कैमरा एंड्रॉयड 2.3 वर्जन को सपोर्ट करता है। इसके अलावा इसमें गूगल प्ले स्टोर से फोटो एडिटिंग एप्स भी डाउनलोड कर सकते हैं। वहीं, सैमसंग के गैलेक्सी कैमरा में 16 मेगापिक्सल का कैमरा है, जिसमें 1.4 गीगाह‌र्ट्ज क्वैडकोर प्रोसेसर है और एंड्रॉयड के 4.1 जैलीबीन ओएस को सपोर्ट करता है। इन कैमरों से यूजर फोटोग्राफ्स को सीधे सोशल नेटवर्किंग पर भी शेयर कर सकते हैं। स्मार्ट माइक्रोवेव कभी आपने सोचा है कि क्या एंड्रॉयड माइक्रोवेव ओवन में भी इंटीग्रेट हो सकेगा। जी हां, आपका फ

दिमाग के रहस्य खोलने के लिए सबसे बड़ा दांव

इंसानी दिमाग़ को समझने के लिए दस साल तक चलने वाली एक अरब पाउंड (करीब 99 अरब रुपये) लागत की परियोजना पर काम शुरू हो गया है. दुनिया के 135 संस्थानों से जुड़े वैज्ञानिक इस परियोजना में भाग ले रहे हैं जिसका नाम है दि ह्यूमन ब्रेन प्रोजेक्ट (एचबीपी). इनमें से ज़्यादातर वैज्ञानिक यूरोपीय हैं. यह हर साल प्रकाशित हज़ारों न्यूरोसाइंस के शोधपत्रों से दिमाग पर शोध के आंकड़ों का डाटाबेस भी तैयार करेगा.इसका उद्देश्य एक ऐसी तकनीक विकसित करना है जिससे दिमाग की कंप्यूटर से नकल तैयार की जा सके. ईपीएल, स्विट्ज़रलैंड में एचबीपी के निदेशक प्रोफ़ेसर हेनरी मार्कराम कहते हैं, "ह्यूमन ब्रेन प्रोजेक्ट पूरी तरह नई कंप्यूटर साइंस टेक्नोलॉजी बनाने की कोशिश है ताकि हम सालों से दिमाग के बारे में जुटाई जा रही सारी जानकारियों को एकत्र कर सकें." नक्शा बनाना संभव नहीं प्रोफ़ेसर मार्कराम कहते हैं, "हमें अब यह समझने लगना चाहिए कि इंसान का दिमाग इतना ख़ास क्यों होता है, ज्ञान और व्यवहार के पीछे का मूल ढांचा क्या है? दिमागी बीमारियों का निदान कैसे किया जाए और दिमागी गणना के आधार पर नई तकनीकों का

किसी भी भाषा को ट्रांसलेट कर देगा ये इंटेलिजेंट चश्मा

टोक्यो.  जापान ने एक ऎसा चश्मा तैयार किया है जिसको पहनकर आप किसी भी भाषा को आसानी से पढ सकते हैं, क्योँकि यह चश्मा किसी भी भाषा को ट्रांसलेट कर आपके सामने पेश कर सकता है और आप आसानी से इस चश्मे को पहनकर किसी भी भाषा को आसानी से पढ सकते हैं. आपकी जानकारी के लिये बता दें कि यह चश्मा पर्यटकों के लिए वरदान साबित हो सकता है. इस तकनीक से विदेश यात्रा करने वाले पर्यटकों, रेस्त्रां का मैन्यू और अन्य दस्तावेज को तुरंत पढने में सहायता मिलेगी. जापान की एक बडी मोबाइल ऑपरेटर कंपनी का कहना है कि उसने एक ऎसा चश्मा तैयार किया है जो अपरिचित शब्दों की एक सूची का अनुवाद कर सकता है. खबर के अनुसार कंपनी का कहना है कि उसका यह इंटेलीजेंट चश्मा किसी भी अपरिचित शब्दों की अनुवादित छवि पेश कर सकता है. यह चश्मा देखने के काम आने के साथ-साथ आभासी चित्रों की भी हेरफेर करने में सहायक है. कंपनी के अनुसार इस तकनीक को जापान के एक कंज्यूमर इलेक्ट्रॉनिक शो सीटैक-2013 में प्रदर्शित किया जाएगा. कंपनी का कहना है कि यह चश्मा, जिस पर अभी शोध जारी है, उपभोक्ता की अपनी भाषा में अनुवादित विषयवस्तु प्रस्तुत कर सकता है. गूगल

भविष्य की दुनिया क्या कनेक्टेड होगी?

भविष्य की पीढ़ियां जिस दुनिया में रहेंगी वे हर लिहाज़ से ज़्यादा कनेक्टेड (जुड़ी हुई) होंगी. लेखक टेड विलियम्स पूछते हैं कि क्या ये एक जुड़ी हुई दुनिया यानी कनेक्टेड वर्ल्ड कैसे हमारे समाज और हमें बदल देगी. "तर्कशील व्यक्ति दुनिया के हिसाब से खुद को ढाल लेता है जबकि अविवेकी व्यक्ति दुनिया को अपने हिसाब से ढालने की कोशिश करता है. इसलिए जितनी भी तरक्की है वह अविवेकी मनुष्य पर निर्भर है." जॉर्ज बर्नार्ड शॉ भले ही हम उन्हें तब महसूस नहीं कर पाते हैं जब वे घटित हो रहे होते हैं.तकनीक के हर बड़े क़दम ने मानव समाज को व्यापक रूप में बदला है. इसलिए ही हम जानते हैं कि वे बड़े तकनीकी बदलाव थे. निजी विचार और समूह जेबीएस हेल्डेन के ब्रह्मांड के बारे में दिए गए प्रसिद्ध वक्तव्य में कहा जाए तो, 'भविष्य आपकी कल्पना से अलग नहीं होगा बल्कि जितनी आप कल्पना कर सकते हैं उससे बहुत अलग होगा.' हम सामाजिक प्राणी हैं लेकिन भिन्न होने के ख़तरे तब से कम हुए हैं जब से व्यक्तिवाद हमारे समाज और स्वयं हम में बड़ी ताक़त बनता चला गया है. भविष्य की दुनिया ज़्यादा कनेक्टेड होगी नवीन

कपड़े जो राह दिखाएंगे और ना गुम होंगे

मचीना ऐसी जैकेट बना रही हैं जिससे संगीत पैदा किया जा सके चेन्नई में इंजीनियरिंग छात्राओं ने छेड़खानी करने वालों को  क्लिक करें करंट मारने वाले अंतर्वस्त्र बनाए तो ज़्यादातर लोगों को पहली बार पता चला कि तकनीक का इस्तेमाल कपड़ों में कितने काम का हो सकता है. लेकिन दुनिया भर में पहनने योग्य तकनीक को लेकर कई तरह के प्रयोग किए जा रहे हैं. कंपनी की सह संस्थापक लिंडा मचीना कहती हैं, “हम एक कार्यक्रम में गए और देखा कि एक व्यक्ति सिर्फ़ कंप्यूटर से संगीत बजा रहा था.”कैलिफ़ोर्निया की एक नई कंपनी मचीना मेक्सिकन कारीगरों का इस्तेमाल कर एक ऐसी जैकेट तैयार कर रही हैं जो संगीत पैदा कर सके. व कहती हैं, “हमने सोचा कि ऐसी चीज़ बनाई जाए जिससे संगीतकार अपने शरीर का इस्तेमाल कर ही संगीत पैदा कर सके.“ जैकेट से संगीत उनकी जैकेट में कपड़ों के नीचे चार लचीले सेंसर हैं. एक एक्सलेरोमीटर मीटर है जो आपकी बांह की हरकत को भांप लेता है. एक जॉयस्टिक है और चार दबाने वाले बटन हैं. पहनने वाले की ज़रूरत के अनुसार सेंसर और बटन जैसे चाहे लगाए जा सकते हैं. यह एक इंटरफ़ेस सॉफ्टवेयर से कंप्यूटर या मोबाइल फ़

पहनने वाली तकनीक से बदलेगी दुनिया?

गूगल ग्लास से पहले की दुनिया की ऐसी नहीं थी, जैसी अब हो गई है. इस ग्लास के इस्तेमाल से आप फोटो ले सकते हैं, मैसेज भेज सकते हैं. इससे दिशा का पता चल सकता है और दूसरी तमाम चीजें भी कर सकते हैं. क्लिक करें ऐसे में वाकई में गूगल ग्लास अविश्वसनीय चीज है. गूगल ग्लास उन पहनने  वाली तकनीकों में शामिल है जिसके जरिए माना जा रहा है कि आम लोगों का जीवन बदल सकता है. हालांकि इस मुद्दे पर अभी बहस जारी है कि कंप्यूटर और इंसानों के नजदीकी बढ़ने से किस तरह के सकारात्मक बदलाव होंगे, इन तकनीकों के बाज़ार और कारोबार के बारे में ज़्यादा चर्चा देखने को नहीं मिलती. 'तकनीक से हैप्पी बर्थडे' " कल्पना कीजिए, एक शख्स बॉयलर को पकड़े हुए है, वह एक भारी उपकरण के नीचे है और उसे अपने हाथों के सहारे से उसे पकड़े रहना है, इसके बावजूद वह कंप्यूटिंग वातावरण में काम कर सकता है. " वेद सेन, प्रमुख, मोबिलिटी विभाग, कॉग्निजेंट टेक्नॉलॉजी सोल्यूशन हालांकि अभी वियरेबल टेक्नॉलॉजी (ऐसी तकनीक जिसे पहनना संभव होगा) के शुरुआती दिन हैं लेकिन ढेरों ऐसी कंपनियां हैं जो इसके कारोबार पर ध