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अनादिनाथ की माया

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अनादिनाथ सदाशिव की लीला बडी ही विचित्र है ,विचित्र मायानगरी का निर्माण करती है और यही मायानगरी, महामाया,प्रकृति यह ब्रह्माण्ड है। पौराणिक रूपक कथाएं मूर्त होकर ज्ञानी महात्माओं के मन मे भी घर कर गयी है भारतीय आध्यात्म जगत् मे एक भारी कमी विधमान हैa, यह कर्मकाण्ड और मुक्ति पूजा एवं उनकी विधियों का भण्डार बन गया है । और उन्हें विश्वास हुए है। कि वे सभी तैतींस करेंट देवी- देवतागण इस विशाल ब्रह्माण्ड के भिन्न भिन्न लोको मे रहते है ।a
साधक की तपस्या से प्रसन्न होकर वे आते है और वर देकर चले जाते है। किसी को यह भी विश्वास है ,कि कहीं पर क्षीर सागर है, जिसमे एक विशालकाय शेषनाग की कुड़ली पर विष्णु भगवान शयन करते है और लक्ष्मी जी उनके पैर कराती रहती है।s और वे भक्तों की पुकार सुनकर वे नंगे पांव दौडे चले आते है। इसी प्रकार शिव और देवताओं के बारे मे विश्वास है ।और यह विश्वास इतना प्रबल है, कि इन पर किसी प्रकार की चोट बर्दाश्त नही कर पाते है।
अनेक अन्धीआस्था मे डुबे  हुए अज्ञानता के अन्धकार मे विलोपित स्त्री पुरूषों को इससे चोट पहुंचती है! परन्तु यह वास्तविक सत्य यही हैs कि वे भारी भ्रम मे पडे हुए है यह सब वह नही है, जो वह समझ रहे है।  हमारे देवालयों परमात्मा नही होता मंदिर तो केवल यन्त्र मात्र है ,hजिससे ऊर्जा प्राप्त करके हम ऐश्वर्य वान बनते है ।जब हम किसी देवी देवता की साधना कर रहे होते है।
तो कण कण मे व्याप्त उसकी सुक्ष्म शक्तियों को अपने अन्दर एकत्र कर रहे है। यह हमारी शक्ति को बढाकर हमे दिव्य शक्तियों से सुसज्जित कर देती है ।और इसी का मानसिक प्रतिरूप हमारे सामने प्रकट होता है। इस मायानगरी की माया इतनी सबल हैo कि ज्ञानी महात्माओं के भी ज्ञान को हरण कर लेती हैh और उन्हें भ्रम के माया जाल मे भटकाती है। यह श्रीराम को भी विलाप करने पर विवश कर देती है और पराशर जैसे ऋषि को भी पशु बना देती है। 
 यह वह आधाशक्ति हुए, जिसकी धारा मे सभी बँधे है और इस बात से बेखबर होकर इस जादूनगरी मे भटक रहे है। कि मृत्यु का भयानक जबडा़ उन्हें अपने अन्दर खींचे जा रहा है । इसे समझये  कि जो सत्य को प्रकाशित करता है ,ज्ञान के रूप मे , सुत्रों एवं नियमो के रूप मे आपको प्राप्त होता है o। यह सभी कहते है कि तंत्र की उत्पत्ति सदाशिव से हुई है , लेकिन कोई नही जानना चाहता कि तंत्र क्या है। विधियाँ तंत्र नही है क्योंकि वे अनेक है, मंत्र भी तंत्र नही है क्योंकि वह भी अनेक है । फिर तंत्र क्या है?
सदाशिव से प्रकृति यानि आधाशक्ति की उत्पत्ति होती है , जिसकी माया से यह ब्रह्माण्ड का मायाजाल बनता है । इस मायाजाल मे ही सारे दैवी देवता विशेष बिन्दुओं मे निवास करते है , किन्तु यह मानवाकृति नही है। यहाँ लिंग और योनि का समागमन हो रहा है ।इससे ऊर्जा निकल रही है और यही ऊर्जा शक्ति है जिससे हमारा अस्तित्व है या इस ब्रह्माण्ड का अस्तित्व है यह एक व्यवस्थित ऊर्जा संरचना है। एक दूसरे से जुडा, खोल पर खोल चढाये यह पूरा ऊर्जा परिपथ जलती बुझती धाराओं  मे ऊर्जा का उत्पादन कर रहा है ।
यह नजारा अदभुत है ,तब यह और भी विस्मयकारी लगता है, जब इसकी धाराओ मे सदाशिव की ही लहरें दौडती दृष्टि गत होती है। यह सम्पूर्ण व्यवस्था कैसे उत्पन्न होती है कैसे विकसित होती है यह स्मरण रखिये वह परमात्मा, सदाशिव सब मे विधमान है ,उनसे उत्पन्न होने वाली शक्तियां सबमे व्याप्त रही। उनमें भी जो इनके बारे में जानते नही या निन्दा करने वाले है। kये केवल किसी समुदाय के ही परमात्मा नही है ,ये मच्छर और मछली के भी परमात्मा है।
पृथ्वी, सूर्य, और इस ब्रह्माण्ड सहित सभी ईकाईयों के भी परमात्मा है, यह एक विचित्र तत्त्व है और समस्त लीला इसी से इसी मे इसी के कारण इसी की इच्छा से चलती है उपनिषदों मे भी कहा गया है कि हम क्या बताये वह कैसा है। वैसा कुछ इस संसार मे नही है। वह निर्गुण है निराकार है अदभूत है उसमे चेतना नही है, क्योंकि चेतना भौतिक उत्पत्ति है ।उसकी लीला क्यो है, यह वही जानता है, अर्थात ब्रह्माण्ड और इसकी लीला की उत्पत्ति क्यो होती है, यह वही जानता है । वह सबका जीवनदाता है, सबका भाग्यविधाता है ।
वह अपनी तेज धाराओं से एक ऊर्जा वृक्ष बना रहा है और उस ऊर्जा वृक्ष मे विचित्र लीला चल रही है । सभी इकाइयाँ अपनी अलग अलग अनुभूतियों के मायाजाल मे भटक रही है । यह माया जो कुछ भी नही है ।केवल अनुभूतियों का संसार है, सभी को मोहक लगती है कि वे उसी मे लिप्त होकर संसार को भोगने मे लगे हुए है

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