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सूक्ष्म शरीर की विशेषताएं:

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------------ *********************************** परम श्रद्धेय ब्रह्मलीन गुरुदेव भगवान पण्डित अरुण कुमार शर्मा काशी की अद्भुत अलौकिक अध्यात्म-ज्ञानगंगा में पावन अवगाहन पूज्यपाद गुरुदेव के श्रीचरणों में कोटि-कोटि नमन 1- सूक्ष्म शरीर की पहली विशेषता यह है कि इच्छानुसार उसकी गति घटायी-बढ़ायी जा सकती है। 2- दूसरी विशेषता यह है कि कोई भी भौतिक वस्तु या पदार्थ उसके मार्ग में बाधक नहीं बन सकता। 3- सूक्ष्म शरीर पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण के प्रभाव से मुक्त रहता है। 4- पृथ्वी के किसी भी भाग में निर्बाध गति से तत्काल पहुंच सकता है सूक्ष्म शरीर। एक बात जानकर हम-आप आश्चर्यचकित होंगे कि पृथ्वी पर जितने भी जीवित मनुष्य हैं, उनसे कहीं अधिक पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण की परिधि में सूक्ष्म शरीरधारी विभिन्न प्रकार की आत्माएं विद्यमान हैं जो पुनः शरीर ग्रहण करने के लिए बराबर प्रयासरत रहती हैं। उन्हीं में बहुत-सी उच्चकोटि की दिव्यात्मायें और योगात्मायें भी हैं जो पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण की सीमा लांघकर पारलौकिक जगत में प्रवेश करने के लिए सचेष्ट हैं। ------------:एक योगात्मा से साक्षात्कार:------------ *********************************** ऐसी ही एक योगात्मा से मेरा साक्षात्कार हुआ। उस समय अपने सूक्ष्म शरीर द्वारा सूक्ष्म जगत के एक सुरम्य और रमणीक वातावरण में विचरण कर रहा था मैं। चारों ओर प्राकृतिक मनोहारी दृश्य थे जिनका अवलोकन करते हुए मैं आगे बढ़ रहा था। तभी मेरी दृष्टि पड़ी एक सूक्ष्म शरीरधारी महापुरुष पर। निश्चय ही वे कोई दिव्य पुरुष थे। उनके शरीर से दिव्य, अलौकिक आभा प्रस्फुटित हो रही थीं। एक वृक्ष के नीचे सिर झुकाए और नेत्र बन्द किए बैठे हुए थे वे। मेरी उपस्थिति का शायद आभास लग गया था उन्हें। सिर उठाकर देखा और देखकर मन्द-मन्द मुस्कराये। ज्ञात हुआ कि पिछले दो सौ वर्ष से रह रहे हैं महाशय सूक्ष्म जगत में। आये थे मेरी ही तरह सूक्ष्म जगत में भ्रमण करने, लेकिन ऐसे फँसे कि वापस ही न लौट सके अपने पार्थिव शरीर में। आश्चर्य हुआ मुझे। कैसे हुआ यह सब ? उन नहापुरुष का नाम था--केशव भट्ट। योगसाधक थे केशव भट्ट। *खेचरी सिद्धि* थी उनको। काशी के दशाश्वमेध घाट के ऊपर एक मकान में रहते थे। गुरु की सेवा करते हुए साधना में आगे बढ़ते जा रहे थे केशव भट्ट। गुरु का नाम था रत्नदेव। वीरशैव सम्प्रदाय के अनुयायी थे वे। आकाश मार्ग से प्रायः भ्रमण किया करते थे रत्नदेव। अपने शिष्य को पूर्ण योगी बना देना चाहते थे वे। क्या पूर्ण योगी बना पाए अपने शिष्य को ? नहीं ! व्याघात उत्पन्न हो गया। जो मेरा उद्देश्य था, वही उद्देश्य था केशव भट्ट का भी। सूक्ष्म जगत में निवास करने वाले महात्माओं और दिव्यात्माओं के साथ सत्संग और ज्ञानार्जन। केशव भट्ट जब शरीर छोड़कर सूक्ष्म शरीर द्वारा सूक्ष्म जगत में भ्रमणार्थ करने निकलते थे, उस समय उनके शरीर की रक्षा उनके गुरु रत्नदेव करते थे। नियम के अनुसार केशव भट्ट निश्चित अवधि में लौट आने का संकल्प करते थे और उसी अवधि में लौट भी आते थे अपने स्थूल शरीर में। एक बात यहाँ बतला देना आवश्यक है कि सूर्योदय के पूर्व जैसा ऊषाकाल का प्रकाश होता है, वैसे ही प्रकाश से भरा रहता है हर समय सूक्ष्म जगत। समय का ज्ञान नहीं होता। वहां काल का प्रभाव अत्यन्त मन्द है। जो काल की गति भूलोक पर है, उससे धीमी गति भावजगत में होती है और जो भाव जगत में काल की गति होती है, उससे भी मन्द गति सूक्ष्म जगत में होती है। इसलिए यहां के चार वर्ष भाव जगत के एक वर्ष के बराबर होते हैं और यहां के 400 वर्ष सूक्ष्म जगत के चार वर्ष के बराबर। जैसे-जैसे सूक्ष्म जगत के आयाम बदले जाते हैं, हम सूक्ष्म से सूक्ष्मतर जगत में प्रवेश करते जाते हैं, समय की गति उतनी ही मन्द से मंदतर होती जाती है। यहां की जिस अवस्था में योगी सूक्ष्म जगत में प्रवेश करता है, बस समझिए उसी अवस्था का होकर रह जाता है सूक्ष्म जगत में। जो योगी अपने जीवन-काल का अधिक समय सूक्ष्म जगत में व्यतीत करता है, उसके शरीर पर काल की गति का प्रभाव अत्यन्त मन्द पड़ता है। दीर्घकाल तक योगी के जीवित रहने का एकमात्र यही रहस्य है। वैसे मैंने (गुरुदेव ने) अपनी पुस्तकों में यथाप्रसंग सूक्ष्म शरीर की चर्चा की है। यहां सूक्ष्म शरीर के सम्बन्ध में एक महत्वपूर्ण बात बतलाना चाहता हूं और वह यह कि सूक्ष्म शरीर में 10 % पृथ्वी तत्व, 20 % मनस्तत्व और शेष 70 % प्राणतत्व रहता है। 10 % पृथिवी तत्व रहने के कारण कभी-कभी सूक्ष्म शरीरधारी आत्माएं दिखलाई दे जाती हैं लोगों को और वह भी कुछ क्षणों के लिए। जैसे स्थूल शरीर में सूक्ष्म शरीर समाहित रहता है, उसी प्रकार सूक्ष्म शरीर में मनोमय शरीर रहता है समाहित। लेकिन प्रतिशत कम होने के कारण उसमें गति नहीं होती और न तो होती है ऊर्जा ही। उसको विशेष यौगिक क्रियाओं से बढ़ाना पड़ता है साधक को। जैसा कि संकेत किया जा चुका है कि सूक्ष्म जगत की सीमा के पार पारलौकिक जगत है और उसके पार हैं विशिष्ट लोक-लोकांतर। sabhar shiv ram tiwari Facebook wall

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